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Allahabad High Court: गाजियाबाद में ट्रैफिक सिग्नल का नया टेंडर जारी करने पर रोक

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Published : May 22, 2023, 10:59 PM IST

सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट गाजियाबाद नगर निगम को बड़ा झटका दिया है. कोर्ट ने ट्रैफिक सिग्नल को लेकर नया टेंडर जारी करने पर रोक लगा दी है. साथ ही एक सप्ताह में जवाब मांगा है.

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गाजियाबाद/नोएडा/ प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गाजियाबाद नगर निगम को ट्रैफिक सिग्नल का नया टेंडर जारी करने पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने मौके पर यथास्थिति कायम रखने तथा मामले की सुनवाई के दौरान किसी तीसरे पक्ष का हित सृजित नहीं करने का निर्देश दिया है. साथ ही नगर निगम सहित अन्य सभी पक्षों से इस मामले में एक सप्ताह में जवाब मांगा है. शिव शक्ति ड्रीम हाउस प्राइवेट लिमिटेड की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने दिया है.

कंपनी का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी का कहना था कि 2017 में नगर निगम गाजियाबाद में याची की कंपनी को शहर में ट्रैफिक सिग्नल संचालित करने का ठेका दिया था. ठेके में शर्त थी कि यह आरंभ में 6 वर्ष के लिए होगा, मगर संतोषजनक कार्य होने पर इसे आगे 6 वर्ष के लिए और बढ़ाया जा सकेगा. ठेका मिलने के बाद याची ने इस पर भारी निवेश किया, मगर अब नगर निगम ने नया टेंडर जारी करने का निर्णय लिया है.

याची का कहना था कि यह उचित नहीं है और सिर्फ इस आधार पर नया टेंडर जारी किया जा रहा है कि नए टेंडर से और ज्यादा राजस्व आ सकता है. जबकि, याची ने ठेका और अगले 6 वर्ष के लिए जारी रहने की उम्मीद में भारी निवेश किया है. कोर्ट ने प्रकरण को विचारणीय मानते हुए नगर निगम गाजियाबाद सहित सभी पक्षों से एक सप्ताह में जवाब तलब किया है.

यह भी पढ़ेंः BJP Mega Plan: मोदी सरकार के नौ साल पूरे होने पर BJP करेगी उपलब्धियों का बखान, पीएम करेंगे बड़ी रैली

पावर ऑफ अटॉर्नी पंजीकरण पर रोक के मामले में हस्तक्षेप से इनकारः वहीं, एक दूसरे मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गौतमबुद्धनगर और गाजियाबाद में जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी पंजीकृत करने पर रोक लगाने की मांग के लिए दाखिल याचिका पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. कोर्ट कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से संपत्ति बेचने को वैध करार दिया है. ऐसे में इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती.

यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र एवं न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने तहसील बार एसोसिएशन गांधीनगर गाजियाबाद और सोसायटी फॉर वायस ऑफ ह्यूमन राइट्स एंड जस्टिस की याचिकाओं को खारिज करते हुए दिया है. कोर्ट ने गाजियाबाद में पावर ऑफ अटॉर्नी से फर्जी ट्रांजेक्शन कर प्रदेश के बाहर की संपत्तियां बेचकर सरकार को स्टाम्प शुल्क का नुकसान पहुंचाने की जांच कर रही एसआईटी को चार माह में रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है.

यह भी पढ़ेंः Internal conflict in Tripura BJP : मणिपुर के बाद त्रिपुरा भाजपा में भी 'बवाल', बिप्लब देब दिल्ली तलब

कोर्ट ने कहा कि याचिका जनहित को लेकर दाखिल नहीं की गई है. कोई भी पीड़ित व्यक्ति न्यायालय नहीं आया है. प्रदेश के महानिदेशक पंजीकरण ने हलफनामा दाखिल कर बताया कि प्रदेश में कुल 92,520 पावर ऑफ अटॉर्नी पंजीकृत हुई हैं. इनमें 53,013 पावर ऑफ अटॉर्नी गाजियाबाद व 10,374 गौतमबुद्ध नगर की हैं. सदर तहसील गाजियाबाद की 29,425 पावर ऑफ अटॉर्नी से दूसरे प्रदेशों की संपत्तियां बेची गई हैं. इससे राज्य को वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा है और विवाद उत्पन्न हैं. कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि सरकार ने स्वयं कहा है कि पावर ऑफ अटॉर्नी पंजीकृत करने पर रोक नहीं है. बोगस ट्रांजेक्शन पर नियंत्रण के लिए एसआईटी जांच कर रही है.

गाजियाबाद/नोएडा/ प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गाजियाबाद नगर निगम को ट्रैफिक सिग्नल का नया टेंडर जारी करने पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने मौके पर यथास्थिति कायम रखने तथा मामले की सुनवाई के दौरान किसी तीसरे पक्ष का हित सृजित नहीं करने का निर्देश दिया है. साथ ही नगर निगम सहित अन्य सभी पक्षों से इस मामले में एक सप्ताह में जवाब मांगा है. शिव शक्ति ड्रीम हाउस प्राइवेट लिमिटेड की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने दिया है.

कंपनी का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी का कहना था कि 2017 में नगर निगम गाजियाबाद में याची की कंपनी को शहर में ट्रैफिक सिग्नल संचालित करने का ठेका दिया था. ठेके में शर्त थी कि यह आरंभ में 6 वर्ष के लिए होगा, मगर संतोषजनक कार्य होने पर इसे आगे 6 वर्ष के लिए और बढ़ाया जा सकेगा. ठेका मिलने के बाद याची ने इस पर भारी निवेश किया, मगर अब नगर निगम ने नया टेंडर जारी करने का निर्णय लिया है.

याची का कहना था कि यह उचित नहीं है और सिर्फ इस आधार पर नया टेंडर जारी किया जा रहा है कि नए टेंडर से और ज्यादा राजस्व आ सकता है. जबकि, याची ने ठेका और अगले 6 वर्ष के लिए जारी रहने की उम्मीद में भारी निवेश किया है. कोर्ट ने प्रकरण को विचारणीय मानते हुए नगर निगम गाजियाबाद सहित सभी पक्षों से एक सप्ताह में जवाब तलब किया है.

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पावर ऑफ अटॉर्नी पंजीकरण पर रोक के मामले में हस्तक्षेप से इनकारः वहीं, एक दूसरे मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गौतमबुद्धनगर और गाजियाबाद में जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी पंजीकृत करने पर रोक लगाने की मांग के लिए दाखिल याचिका पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. कोर्ट कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से संपत्ति बेचने को वैध करार दिया है. ऐसे में इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती.

यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र एवं न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने तहसील बार एसोसिएशन गांधीनगर गाजियाबाद और सोसायटी फॉर वायस ऑफ ह्यूमन राइट्स एंड जस्टिस की याचिकाओं को खारिज करते हुए दिया है. कोर्ट ने गाजियाबाद में पावर ऑफ अटॉर्नी से फर्जी ट्रांजेक्शन कर प्रदेश के बाहर की संपत्तियां बेचकर सरकार को स्टाम्प शुल्क का नुकसान पहुंचाने की जांच कर रही एसआईटी को चार माह में रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है.

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कोर्ट ने कहा कि याचिका जनहित को लेकर दाखिल नहीं की गई है. कोई भी पीड़ित व्यक्ति न्यायालय नहीं आया है. प्रदेश के महानिदेशक पंजीकरण ने हलफनामा दाखिल कर बताया कि प्रदेश में कुल 92,520 पावर ऑफ अटॉर्नी पंजीकृत हुई हैं. इनमें 53,013 पावर ऑफ अटॉर्नी गाजियाबाद व 10,374 गौतमबुद्ध नगर की हैं. सदर तहसील गाजियाबाद की 29,425 पावर ऑफ अटॉर्नी से दूसरे प्रदेशों की संपत्तियां बेची गई हैं. इससे राज्य को वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा है और विवाद उत्पन्न हैं. कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि सरकार ने स्वयं कहा है कि पावर ऑफ अटॉर्नी पंजीकृत करने पर रोक नहीं है. बोगस ट्रांजेक्शन पर नियंत्रण के लिए एसआईटी जांच कर रही है.

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