नई दिल्ली: मीर तक़ी मीर को ख़ुदा-ए-सुख़न यानी शायरी का ईश्वर कहा जाता है. मीर को दिल्ली से मोहब्बत थी. जब दिल्ली की बुरी हालत देखी तो उनसे रहा नहीं गया. उन्होंने लिखा, 'दिल्ली जो कभी शहर था आलम-में-इंतेख़ाब, रहने वाले हैं उसी उजड़े दयार के' मीर ने ये शेर 18वीं शताब्दी में लिखा था. आज भी अगर आप गाजीपुर में कूड़े का पहाड़ देखेंगे तो ज़ुबान पर ये शेर आ ही जाएगा.
हर दिन अपने घर से कूड़ा-कचरा निकालते हुए शायद हमने कभी न सोचा हो कि इतना-सा कूड़ा जमा होकर पहाड़ की शक्ल भी ले सकता है.
65 मीटर ऊंचा कूड़े का पहाड़
पूर्वी दिल्ली के गाजीपुर में एक ऐसा ही कूड़े का ढेर बनकर खड़ा है. जो दूर से किसी गंगनचुम्बी पहाड़ जैसा प्रतीत होता है.
हमने तो नहीं ही सोचा, हमारी सरकारों ने भी इसके बारे में नहीं सोचा. शायद तभी दिल्ली में 65 मीटर ऊंचा कूड़े का पहाड़ बन गया.
सोचा तो क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने भी नहीं होगा. क़ुतुब मीनार की आधारशिला रखते समय कि दिल्ली वालों के घरों से निकला कूड़ा उसके विश्व प्रसिद्ध मीनार की ऊंचाई को भी चुनौती देने लगेगा. गाजीपुर कूड़े का पहाड़ क़ुतुब मीनार से महज 8 मीटर छोटा है.
यह सिर्फ कूड़े का पहाड़ भर नहीं है, बल्कि इसे जहरीला पहाड़ भी कह सकते हैं. ऐसा भी नहीं है कि यह शहर से बाहर है.
हो चुके हैं कई हादसे
70 एकड़ में फैले इस कूड़े के पहाड़ के चारों तरफ रिहायशी इलाका है. अब तक यहां कई घटनाएं घट चुकी हैं. हर बार कुछ दिनों की एहतियात के बाद फिर सिस्टम कूड़े के ढेर को क़ुतुब मीनार से ऊंचा करने की होड़ में लग जाता है.
1 सितंबर 2017 को गाजीपुर लैंडफिल साइट के कूड़े के पहाड़ का एक हिस्सा भरभरा कर गिर गया था. उसमें दो लोगों की मौत हो गई थी और 5 लोग घायल हो गए थे.
उसके बाद तत्काल कदम उठाते हुए दिल्ली के उपराज्यपाल, दिल्ली सरकार समेत एमसीडी के तमाम आला अधिकारियों ने सर्वसम्मति से फैसला किया कि गाजीपुर की लैंडफिल साइट पर कूड़ा डंप नहीं किया जाएगा.
बन रहा है पहाड़ पर पहाड़!
वो आदेश भी हाथी दांत निकले. ईटीवी भारत के कैमरे ने ग्राउंड रिपोर्ट में कूड़े के उस पहाड़ पर दर्जनों ट्रकों को कूड़ा डंप करने के दौरान आते-जाते कैद किया.
गौर करने वाली बात यह है कि इस चुनावी मौसम में न तो पूर्वी दिल्ली के लिए और न ही पूरी दिल्ली के लिए यह मुद्दा है. न तो जानलेवा कूड़े से बचाव की बात है और ना ही अब नए तरीके से पैदा हो रहे कूड़ों के निस्तारण की.
स्थानीय लोगों का जीना मुहाल
ईटीवी भारत ने गाजीपुर कूड़े के पहाड़ की ग्राउंड रिपोर्ट की. जिसमें हमने सबसे पहले वहां कूड़े के पहाड़ के ठीक सामने रह रहे लोगों से बातचीत की.
स्थानीय लोगों का साफ तौर पर कहना था कि यह कूड़ा उनकी जान का दुश्मन है. ना सिर्फ गंदगी और बदबू के रूप में बल्कि सांसो में भी कूड़े के पहाड़ के जरिए वे ज़हर भर रहे हैं.
जिस जगह हम लोगों से बातचीत कर रहे थे, वह गाजीपुर मंडी के डेरी फार्म का इलाका था. यहां पर लोग गाय पालते हैं और दूध का व्यापार करते हैं.
इन लोगों को 6 महीने पहले एक सपना दिखाया गया था कि वहां पर गोबर गैस प्लांट बनेगा. इसके लिए जमीन भी एक्वायर कर ली गई और तार की फेंसिंग भी हो गई.
गोबर गैस प्लांट अब भी वादों में ही है. इन लोगों के पास गोबर के इस्तेमाल का कोई माध्यम नहीं है.
एक तो सामने कूड़े के पहाड़ की गंदगी और दूसरा गोबर की गंदगी, कुल मिलाकर इन्होंने अपनी जो व्यथा कथा सुनाई, उसका सार यही है कि इनका जीना मुहाल है.
पहाड़ पर सांस लेना मुश्किल
हमने कूड़े के पहाड़ पर चढ़कर देखने की कोशिश की कि किस तरह यहां पर कूड़ा डंप किया जाता है. किस तरह हमारे आपके घरों से निकला कूड़ा धीरे-धीरे एक जानलेवा पहाड़ में तब्दील हो जाता है.
जब हम कूड़े के पहाड़ के बीचो-बीच पहुंचे, तब वहां सांस लेना बेहद मुश्किल हो रहा था. हमने कोशिश की कि कूड़े के पहाड़ के ऊपर तक पहुंचे लेकिन वहां इतनी बदबू थी और हवा के साथ नाक में जा रहे इतने कूड़े के कण थे कि हम आगे नहीं बढ़ सके..
लेकिन वहीं पर हमें अंदाजा लग गया कि कूड़े के पहाड़ के ठीक सामने रहने वाले लोगों को कितनी तकलीफें होती होंगी. वहां कूड़ा डाल कर आ रहे एक ट्रक वाले से हमने बातचीत की.
उसका कहना था कि कुछ दिनों पहले तक जब वहां पर कीचड़ था और पानी जमा था, तब कूड़ा डालने में परेशानी होती थी, लेकिन अब ठीक है.
उसने यह भी बताया कि अब कूड़ा लेकर आने वाली गाड़ियों में से ज्यादातर गाड़ियां रीसायकल प्लांट में जाती हैं. हमने रीसायकल प्लांट में भी जाकर वहां की स्थिति देखनी चाही, लेकिन वहां के जूनियर इंजीनियर (जेई) ने हमें इसकी अनुमति नहीं दी.
28 फीसदी कूड़े का होता है निस्तारण
आंकड़ों के लिहाज से अगर हम कूड़ों की रिसाइक्लिंग की हकीकत देखें तो देश में जितना कूड़ा पैदा होता है उसका 68 फीसदी हिस्सा जमा होकर ऐसे पहाड़ों की शक्ल लेता है और केवल 28 प्रतिशत कूड़ों का नगर पालिकाएं निस्तारण कर पाती हैं.
हालांकि यह कूड़े का पहाड़ एक दिन में ही नहीं बन गया. हर दिन दिल्ली 10 हजार टन कूड़ा पैदा करती है, जिसे पिछले 11 बरस से ऐसी तीन जगहों पर डंप किया जा रहा है. इनमें से करीब 3 हजार टन कूड़ा हर दिन यहां गाजीपुर में ही गिराया जाता है.
गौर करने वाली बात यह भी है कि गाजीपुर, ओखला और भलस्वा दिल्ली के तीनों डंपिंग ग्राउंड की क्षमता 2006 में ही सीमा को पार कर चुकी है, लेकिन अभी भी वहां हमें कूड़े के पहाड़ पर धड़ल्ले से कूड़ा लदे ट्रक चलते नजर आए.
आंकड़े जो डराते हैं
इस कूड़े के पहाड़ की भयावहता जाननी हो, तो हमें डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट देखनी चाहिए. रिपोर्ट बताती है कि कूड़े का निस्तारण हो जाए तो 22 बीमारियों से हर घंटे 5, हर दिन 285, हर महीने 6849 और हर बरस 2 लाख 51 हजार भारतीयों को मरने से बचाया जा सकता है.
हम सहज अंदाजा लगा सकते हैं कि 70 एकड़ में फैला 65 मीटर ऊंचा कूड़े का यह पहाड़ इस आंकड़े में कितना योगदान दे रहा होगा.
अगर जल्द से जल्द सरकार और व्यवस्था के स्तर पर इसे लेकर कोई ठोस फैसला नहीं होता है, तो यह स्थानीय लोगों के लिए तो जानलेवा साबित होता ही रहेगा. ऊंचाई के मामले में क़ुतुब मीनार को भी मात दे देगा. और हम जॉ निसार अख़्तर का ये शेर गुनगुनाते रहेंगे, 'दिल्ली कहाँ गईं तिरे कूचों की रौनक़ें, गलियों से सर झुका के गुज़रने लगा हूँ मैं'