नई दिल्ली/गाजियाबाद: हिंदू धर्म में सावन का महीना बेहद खास माना गया है. हिंदू पंचांग का यह 5वां महीना भोलेनाथ को समर्पित होता है. मान्यता है कि इस महीने में भगवान शंकर की विधि-विधान से पूजा की जाए तो वह अत्यंत प्रसन्न होते हैं और मनोवांछित सभी कामनाओं की पूर्ति होती है. भगवान शिव के भक्तों के लिए पूरा महीना खास होता है.
गाजियाबाद की मेरठ रोड पर कावड़ियों का जनसैलाब उमड़ता शुरू हो गया है. कांवड़िए हरिद्वार से गंगाजल लेकर वापस लौट रहे हैं. कांवड़ मार्ग पर अलग-अलग उम्र के कावड़िए चलते दिखाई दे रहे हैं. इन्हीं में कुछ कावड़ी ऐसे भी हैं, जिनको देख सभी की आंखें चौक जाती हैं. कावड़ यात्रा में जहां एक तरफ बुजुर्ग महिलाएं और दिव्यांग नजर आ रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ मासूम बच्चे भी पूरे जोश और श्रद्धा के साथ कांवड़ ला रहे हैं.
कांवड़ यात्रा को लेकर बच्चों में भी उत्साह: दिल्ली के शाहदरा इलाके के रहने वाले शिव भक्त आशु अपने परिवार के साथ हरिद्वार से कावड़ ला रहे हैं. आशु के साथ उनकी पत्नी और एक मासूम बेटा है. अपने माता-पिता के साथ उनका पांच साल का बेटा पैदल कावड़ यात्रा करते हुए हरिद्वार से आ रहा है. पांच साल का मासूम जब कंधे पर कांवड़ रखकर कावड़ यात्रा करता है तो उसे देखकर हर कोई चौक जाता है. लोग उसके साथ फोटो खींच आते हैं.
आशु और उनकी पत्नी एक दिन में तकरीबन 30 से 40 किलोमीटर का रास्ता पैदल चलकर तय करते हैं. आशु को कहना है कि भगवान भोलेनाथ द्वारा दी गई शक्ति के चलते ही ऐसा संभव हो पा रहा है कि 5 साल का मासूम इतना लंबा रास्ता पैदल चलकर तय कर रहा है. उनके मासूम बेटे ने जिद की थी कि इस बार कावड़ लेने वह अपने माता-पिता के साथ जाएगा जिसमें पति पत्नी अपने बच्चे को साथ लेकर आए हैं.
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नहीं थकते बालकों के नन्हे पांव: दिल्ली के मंगोलपुरी के रहने वाले शिव भक्त भगवान दास भी अपने पूरे परिवार के साथ हरिद्वार से कावड़ लेकर आ रहे हैं. भगवान दास के साथ उनकी पत्नी उनका 14 साल का बेटा और 4 साल का बेटा कांवड़ ला रहे हैं. 5 जुलाई को भगवानदास अपने परिवार के साथ हरिद्वार से कावड़ लेकर निकले थे. हफ्ते भर हफ्ते भर पैदल यात्रा करते हुए आज परिवार गाजियाबाद में दाखिल हुआ है. भगवान दास का कहना है कि भोले बाबा की कृपा है जिसकी वजह से आज पूरा परिवार कांवड़ ला रहा है.
हरिद्वार से दिल्ली की दूरी तकरीबन पौने दो सौ किलोमीटर है. कावड़ियों को इस दूरी को पैदल तय करने में तकरीबन 1 हफ्ते से 10 दिन का वक्त लगता है. ऐसे में चार पांच साल के मासूम बच्चों के द्वारा इस दूरी को पैदल तय करना अपने आप में बहुत बड़ी बात है.
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