नई दिल्लीः हर साल आज ही के दिन यानि 1 मई को दुनियाभर में अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है. इस मौके पर मजदूरों के हित और अधिकारों के बारे में लोगों को शिक्षित किया जाता है, लेकिन सोचने की बात यह है कि मजदूर दिवस के महत्व से अनजान एक मजदूर वर्ग ऐसा भी है, जो दिहाड़ी या प्रवासी मजदूर के तौर पर काम करता है. कोरोना महामारी के दौरान लगे पहले लॉकडाउन ने दिहाड़ी और प्रवासी मजदूरों की रोजगार की नींव को हिला कर रखा दिया था. 3 साल बीतने के बाद अब धीरे-धीरे मजदूर फिर आजीविका के लिए बड़े शहरों का रुख करने लगे हैं. ETV भारत की टीम ने दिल्ली में कुछ निर्माण मजदूरों से बात करके जानने की कोशिश कि वह मजदूर दिवस को किस तरह मनाते हैं? उनको इसके बारे में कितनी जानकारी है?
"हाथों में है लाठी, मजबूत उनकी कद काठी,
हर बाधा को वो कर देता है दूर, दुनिया उनको कहती है मजदूर"
मध्यप्रदेश की रहने वाली सुमन ने बताया कि वह बीते 10 साल से दिल्ली में दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करती हैं. उनको मजदूर दिवस के बारे में कुछ भी नहीं मालूम है. इतने साल में किसी ने उनको मजदूर दिवस के बारे में बताया भी नहीं. सुमन ने बताया कि उनको किसी भी तरह की सरकारी सुविधा का भी फायदा नहीं मिलता है. एक दिन में 300 से 350 रूपए तक की दिहाड़ी मिलती है. सुमन के दो बच्चे हैं. दोनों गांव में रहते हैं. वह अपने बच्चों से दो महीने में एक बार ही मिल पाती है.
सुमन के नजदीक बैठे एक अन्य निर्माण मजदूर ने बताया कि महिला मजदूरों को पुरुष मजदूरों की तुलना में कम मजदूरी का भुगतान किया जाता है. उनका कहना है कि एक समान काम के लिए महिलाओं को 50 रूपये कम दिए जाते हैं. 55 वर्षीय मिठ्ठू राम ने बताया कि उन्होंने आज पहली बार ही मजदूर दिवस का नाम सुना है. मिठ्ठू बीते 48 साल से दिल्ली में दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करते आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि फिलहाल उनके पास कोई मजदूर कार्ड भी नहीं है, जिससे वह मजदूरों को मिलने वाली सरकारी सुविधाओं का फायदा उठा सके.
ज्ञात हो कि सीएम अरविंद केजरीवाल की अध्यक्षता में बीते 24 अप्रैल को श्रम विभाग की हुई उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक में दिल्ली में पंजीकृत निर्माण मज़दूरों के कल्याण के लिए कई अहम निर्णय लिए गए थे. इस दौरान सीएम अरविंद केजरीवाल ने पंजीकृत सभी 13 लाख निर्माण श्रमिकों को ग्रुप लाइफ इंश्योरेंस, डीटीसी बसों में फ्री यात्रा के लिए पास, रियायती घर और हॉस्टल की सुविधा मुहैया कराने के सख्त निर्देश दिए थे. इसके अलावा, श्रमिकों को टूलकिट देने और उनके लिए बड़े स्तर पर स्किल डिवेलपमेंट प्रोग्राम चलाने का भी निर्णय लिया गया था.
कंस्ट्रक्शन साइट पर दिहाड़ी मजदूरी करने वाले शिव बहादुर शाह ने बताया कि उनको मजदूर दिवस के बारे में कुछ भी नहीं मालूम है. कोरोना के दौरान मजदूरों ने अपने अपने गांव का रुख किया था. इनमें एक मजदूर हैं अशोक कुमार. उत्तर प्रदेश में इटावा के रहने वाले अशोक एक मिठाई की दुकान पर मजदूर के तौर पर काम करते हैं. जब हमने उनसे पूछा कि क्या आपको मालूम है मजदूर दिवस क्या होता है? तो उनका कहना था कि वह ऐसे किसी भी दिवस के बारे में नहीं जानते हैं.
भारत की आबादी आज 130 करोड़ से अधिक है, जिनमें दिहाड़ी मजदूरों की संख्या बहुत बड़ी है. वहीं कोरोना महामारी के दौरान साल 2019-2021 तक 1.12 लाख दिहाड़ी मजदूरों ने अपनी जीवनलीला को खुद ही समाप्त कर लिया. कोरोना के समय लॉकडाउन के दौरान 2020 में बड़ी संख्या में दिहाड़ी मजदूर अपने घरों को लौट गए थे. दरअसल, बीते 15 फरवरी 2023 को केंद्रीय श्रम मंत्री भूपेंद्र यादव ने लोकसभा को बताया कि साल 2019 में 32,563, 2020 में 37,666 और 2021 में 42,004 दिहाड़ी मजदूरों की मौत आत्महत्या के कारण हुई. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के हवाले से उन्होंने कहा कि इस अवधि के दौरान 66,912 गृहिणी, 53,661 स्वरोजगार करने वाले व्यक्ति, 43,420 वेतनभोगी व्यक्ति और 43,385 बेरोजगार व्यक्ति भी आत्महत्या कर चुके हैं.
क्या कहना है मजदूर यूनियनों का?
दिल्ली में दिहाड़ी और अन्य मजदूरों की आवाज उठाने वाले मजदूर संगठन All India Trade Union Congress (AITUC) की जनरल सेक्रेटरी अमरजीत कौर ने ETV भारत को बताया कि दिल्ली सरकार के तमाम दावों के बाद अभी भी मजदूरों को न्यनूतम मजदूरी से वंचित रखा जा रहा है. उनका कहना है कि दिल्ली सरकार के तमाम दावों के बाद अभी तक मजदूरों को न्यनूतम मजदूरी नहीं मिल पा रही है.
उल्लेखनीय है कि 20 अप्रैल 2023, दिल्ली सरकार द्वारा बढ़ाई गई न्यूनतम वेतन की नई दरें लागू की गई हैं. इसके अनुसार अब कुशल मजदूर के मासिक वेतन को 20,357 रुपए से बढ़ाकर 20,903 रुपए करते हुए 546 रुपए की बढ़ोतरी की है. अर्ध कुशल मजदूरों के मासिक वेतन को 18,499 रुपए से बढ़ाकर 18,993 रुपए कर 494 रुपए की बढ़ोतरी की है. वहीं अकुशल मजदूरों के मासिक वेतन में 16,792 रुपए से बढ़ाकर 17,234 रुपए करते हुए 442 रुपए की बढ़ोतरी की गयी है.
कब से और क्यों मनाया जाता है मजदूर दिवस?
प्रत्येक वर्ष 1 मई को ‘अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस’ यानी ‘वर्ल्ड लेबर डे’ मनाया जाता है. इस दिन को सेलिब्रेट करने के पीछे का खास मकसद होता है दुनिया भर में मजदूरों, श्रमिकों द्वारा किए जाने वाले प्रत्येक कार्यों, उनकी मेहनत, उनकी उपलब्धियों के प्रति सम्मान व्यक्त करना. आज के दिन मजदूरों के अधिकारों, हक के लिए आवाज उठाना और मजदूर संगठनों को मजबूत बनाना इस दिन का मुख्य उदेश्य है. इतना ही नहीं, दुनिया भर में मौजूद मजदूरों की मौजूदा समस्याओं, परेशानियों में सुधार लाना, लोगों को मजदूरों के प्रति जागरूक करने के लिए कई काम किए जाते हैं.
इस दिन की शुरुआत अमेरिका के शिकागो शहर से हुई, जहां 1986 को मजदूरों ने अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाते हुए आंदोलन किया. 15-15 घंटे काम करने वाले मजदूर अपने 8 घंटे के कार्य दिवस के लिए हड़ताल पर थे. इस दौरान लाठीचार्ज और पुलिस फायरिंग में बहुत से मजदूरों की जान चली गई और सैकड़ों लोग घायल हो गए. घटना के 3 साल बाद 1889 में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन की बैठक हुई. इसमें तय किया गया कि हर मजदूर से प्रतिदिन 8 घंटे ही काम लिया जाएगा. वहीं सम्मेलन के बाद 1 मई को मजदूर दिवस मनाने का फैसला लिया गया. इस दिन हर साल मजदूरों को छुट्टी देने का भी फैसला लिया गया. बाद में अमेरिका के मजदूरों की तरह अन्य कई देशों में भी 8 घंटे काम करने के नियम को लागू कर दिया गया.
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