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PM Uday Yojana: दिल्ली में अनधिकृत कॉलोनियों में साढ़े तीन साल में सिर्फ साढ़े 18 हजार रजिस्ट्री, 2019 में लॉन्च हुई थी योजना

दिल्ली की अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले लोगों के लिए केंद्र सरकार द्वारा लाई गई पीएम उदय योजना का लोगों को कुछ खास लाभ नहीं मिल पाया है. योजना के तहत इन कॉलोनियों में रहने वाले लोगों को अपने घर की रजिस्ट्री कराकर मालिकाना हक मिलने देने की बात कही गई थी, लेकिन यह योजना दिल्ली विकास प्राधिकरण के अफसरों की लापरवाही की भेंट चढ़ रही है. आइए जानते हैं इसके पीछे का कारण...

Only 18 and half thousand registries were done
Only 18 and half thousand registries were done
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Published : Jun 25, 2023, 4:42 PM IST

नई दिल्ली: 2020 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए अक्टूबर 2019 में केंद्र सरकार ने दिल्ली की 1,731 अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले करीब 4 लाख से अधिक लोगों के लिए पीएम उदय योजना लॉन्च की थी. इसके तहत अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले लोगों को अपने घर और प्लॉट की रजिस्ट्री करवाने और उनका मालिकाना हक देने का ऐलान किया गया था. इससे इन कालोनियों में रहने वाले लाखों लोगों उम्मीद जगी थी कि रजिस्ट्री होने से उनकी कॉलोनी का तेजी से विकास हो सकेगा.

लोगों को यह भी उम्मीद थी कि कॉलोनियों में सड़क और सीवर जैसी बुनियादी सुविधाएं सुचारू हो सकेंगी तो उनके घर की कीमत भी बढ़ेगी, जिससे वे अपने घरों पर बैंकों से ऋण लेने के हकदार भी हो जाएंगे. लेकिन दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) अफसरों की मनमानी के कारण यह योजना परवान नहीं चढ़ सकी.

ऐसे रद्द किए गए आवेदन: योजना के तहत लोग अपने घरों की रजिस्ट्री करवाने के लिए डीडीए में आवेदन करते रहे और अधिकारी आवेदनों को धड़ाधड़ रद्द करते रहे. कभी कागजों में कमी बताकर तो कभी जीआईएस सर्वे का हवाला देकर लोगों के आवेदन रद्द किए गए. इसका नतीजा यह हुआ कि योजना लॉन्च होने के साढ़े तीन साल बाद भी इस योजना के तहत सिर्फ साढ़े 18 हजार घरों की ही रजिस्ट्री हो सकी है. इस मामले में डीडीए का पक्ष जानने के लिए जब डीडीए के पीआरओ को कॉल किया गया तो उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया.

जानें पूरे आंकड़ें
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लोगों ने लिया था हाथों हाथ: दरअसल, पीएम उदय योजना केंद्रीय आवासन एवं शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने अक्टूबर 2019 में जब लॉन्च की थी. उस समय आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने विरोध भी किया था. इसके बावजूद इन कॉलोनियों में रहने वाले लोगों ने इस योजना को हाथों हाथ लिया था. दरअसल राजनितिक दलों को आशंका थी कि कुछ माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को इसका फायदा मिलेगा. हालांकि इस योजना का न तो भाजपा को कुछ खास लाभ मिला और न ही जनता को.

क्या कहते हैं डीडीए के सूत्र: इस बारे में डीडीए के सूत्रों का कहना है कि योजना में जिन अधिकारियों को तैनात किया गया है, उनमें से ज्यादातर अधिकारी अन्य विभागों से प्रतिनियुक्ति पर आए हैं. प्रतिनियुक्ति पर आने वाले अधिकारी दो या तीन साल तक ही यहां रहते हैं और अन्य विभागों से आने के कारण उनको रजिस्ट्री और पूरी प्रक्रिया को समझने में काफी वक्त लगता है. चूंकि उन्हें वापस अपने पुराने विभाग में जाना होता है, इसलिए वे काम को पूरी गंभीरता से नहीं कर पाते हैं. साथ ही उनकी जवाबदेही भी काम होती है, इसलिए भी रजिस्ट्री का काम प्रभावित हो रहा है.

यह है रजिस्ट्री की प्रक्रिया: सबसे पहले संबंधित व्यक्ति को अपने प्लॉट या घर से संबंधित दस्तावेज के साथ डीडीए में रजिस्ट्री के लिए आवेदन करना पड़ता है. इसमें उस एड्रेस पर बने आधार कार्ड, बिजली का बिल, पानी का बिल आदि की छायाप्रति भी देनी होती है. इसके बाद एक निश्चित फीस लेकर डीडीए जीआईएस सर्वे करता है. इसमें सत्यापन होने के बाद प्लॉट के साइज और उस एरिया के रेट के आधार पर शुल्क लेकर डीडीए रजिस्ट्री की अनुमति देता है. इसके बाद संबंधित सब रजिस्ट्रार कार्यालय में प्लॉट की रजिस्ट्री होती है.

यह भी पढ़ें-Water Logging In Delhi: बारिश के बाद ओखला मोड़ के पास जलभराव से लोग परेशान

क्या है जीआईएस सर्वे: जीआईएस संरचनात्मक डाटाबेस पर आधारित एक भू-विज्ञान सूचना प्रणाली है. यह भौगोलिक सूचनाओं के आधार पर जानकारी प्रदान करती है. संरचनात्मक डाटाबेस तैयार करने के लिए वीडियो, भौगोलिक फोटोग्राफ और जानकारियों के आधार का कार्य करती हैं. नगर निगम, राजस्व विभाग और विभिन्न शहरों के विकास प्राधिकरण भूमि का रकबा, लोकेशन आदि निर्धारित और सत्यापित करने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल करते हैं.

यह भी पढ़ें-गाजियाबादः अंकुर विहार के एक घर में मिला दंपति का शव, पति यूपी पुलिस तो पत्नी RAF में थी तैनात

नई दिल्ली: 2020 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए अक्टूबर 2019 में केंद्र सरकार ने दिल्ली की 1,731 अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले करीब 4 लाख से अधिक लोगों के लिए पीएम उदय योजना लॉन्च की थी. इसके तहत अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले लोगों को अपने घर और प्लॉट की रजिस्ट्री करवाने और उनका मालिकाना हक देने का ऐलान किया गया था. इससे इन कालोनियों में रहने वाले लाखों लोगों उम्मीद जगी थी कि रजिस्ट्री होने से उनकी कॉलोनी का तेजी से विकास हो सकेगा.

लोगों को यह भी उम्मीद थी कि कॉलोनियों में सड़क और सीवर जैसी बुनियादी सुविधाएं सुचारू हो सकेंगी तो उनके घर की कीमत भी बढ़ेगी, जिससे वे अपने घरों पर बैंकों से ऋण लेने के हकदार भी हो जाएंगे. लेकिन दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) अफसरों की मनमानी के कारण यह योजना परवान नहीं चढ़ सकी.

ऐसे रद्द किए गए आवेदन: योजना के तहत लोग अपने घरों की रजिस्ट्री करवाने के लिए डीडीए में आवेदन करते रहे और अधिकारी आवेदनों को धड़ाधड़ रद्द करते रहे. कभी कागजों में कमी बताकर तो कभी जीआईएस सर्वे का हवाला देकर लोगों के आवेदन रद्द किए गए. इसका नतीजा यह हुआ कि योजना लॉन्च होने के साढ़े तीन साल बाद भी इस योजना के तहत सिर्फ साढ़े 18 हजार घरों की ही रजिस्ट्री हो सकी है. इस मामले में डीडीए का पक्ष जानने के लिए जब डीडीए के पीआरओ को कॉल किया गया तो उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया.

जानें पूरे आंकड़ें
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लोगों ने लिया था हाथों हाथ: दरअसल, पीएम उदय योजना केंद्रीय आवासन एवं शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने अक्टूबर 2019 में जब लॉन्च की थी. उस समय आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने विरोध भी किया था. इसके बावजूद इन कॉलोनियों में रहने वाले लोगों ने इस योजना को हाथों हाथ लिया था. दरअसल राजनितिक दलों को आशंका थी कि कुछ माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को इसका फायदा मिलेगा. हालांकि इस योजना का न तो भाजपा को कुछ खास लाभ मिला और न ही जनता को.

क्या कहते हैं डीडीए के सूत्र: इस बारे में डीडीए के सूत्रों का कहना है कि योजना में जिन अधिकारियों को तैनात किया गया है, उनमें से ज्यादातर अधिकारी अन्य विभागों से प्रतिनियुक्ति पर आए हैं. प्रतिनियुक्ति पर आने वाले अधिकारी दो या तीन साल तक ही यहां रहते हैं और अन्य विभागों से आने के कारण उनको रजिस्ट्री और पूरी प्रक्रिया को समझने में काफी वक्त लगता है. चूंकि उन्हें वापस अपने पुराने विभाग में जाना होता है, इसलिए वे काम को पूरी गंभीरता से नहीं कर पाते हैं. साथ ही उनकी जवाबदेही भी काम होती है, इसलिए भी रजिस्ट्री का काम प्रभावित हो रहा है.

यह है रजिस्ट्री की प्रक्रिया: सबसे पहले संबंधित व्यक्ति को अपने प्लॉट या घर से संबंधित दस्तावेज के साथ डीडीए में रजिस्ट्री के लिए आवेदन करना पड़ता है. इसमें उस एड्रेस पर बने आधार कार्ड, बिजली का बिल, पानी का बिल आदि की छायाप्रति भी देनी होती है. इसके बाद एक निश्चित फीस लेकर डीडीए जीआईएस सर्वे करता है. इसमें सत्यापन होने के बाद प्लॉट के साइज और उस एरिया के रेट के आधार पर शुल्क लेकर डीडीए रजिस्ट्री की अनुमति देता है. इसके बाद संबंधित सब रजिस्ट्रार कार्यालय में प्लॉट की रजिस्ट्री होती है.

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क्या है जीआईएस सर्वे: जीआईएस संरचनात्मक डाटाबेस पर आधारित एक भू-विज्ञान सूचना प्रणाली है. यह भौगोलिक सूचनाओं के आधार पर जानकारी प्रदान करती है. संरचनात्मक डाटाबेस तैयार करने के लिए वीडियो, भौगोलिक फोटोग्राफ और जानकारियों के आधार का कार्य करती हैं. नगर निगम, राजस्व विभाग और विभिन्न शहरों के विकास प्राधिकरण भूमि का रकबा, लोकेशन आदि निर्धारित और सत्यापित करने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल करते हैं.

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