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World Thalassemia Day: जानिए बच्चों में जन्म से होने वाली इस गंभीर बीमारी के लक्षण और इलाज के बारे में - थैलेसीमिया क्या है

हर वर्ष आठ मई को वर्ल्ड थैलेसीमिया डे मनाया जाता है. थैलेसीमिया बच्चों को उनके माता-पिता से मिलने वाला एक अनुवांशिक रोग है. इसकी पहचान बच्चों में तीन महीने के होने पर ही होती है. इस बीमारी का पता चलने के बाद भी बच्चे को इससे बचाया नहीं जा सकता है.

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Published : May 8, 2023, 10:37 AM IST

नई दिल्ली: दुनिया भर में प्रति वर्ष आठ मई को वर्ल्ड थैलेसीमिया डे मनाया जाता है. इसको मनाने का कारण बच्चों में होने वाली इस आनुवंशिक बीमारी के बारे में लोगों को जागरूक करना और इसके इलाज के बारे में बताना है. यह ऐसी बीमारी है कि माता पिता दोनों में इस बीमारी का पता चलने के बाद भी बच्चे को इससे बचाया नहीं जा सकता.

थैलेसीमिया क्या है
मैक्स अस्पताल वैशाली में पीडियाट्रिक हेमेटोलॉजिस्ट एवं ऑनकोलॉजिस्ट डॉ. रोहित कपूर ने बताया कि थैलेसीमिया बच्चों को उनके माता-पिता से मिलने वाला एक अनुवांशिक रोग है. इसकी पहचान बच्चों में तीन महीने के होने पर ही होती है. हालांकि ये रोग बच्चों में बचपन से होता है. लेकिन इसके लक्षण बच्चों में तीन महीने पर उभरने लगते हैं. एक रक्त रोगों के एक समूह को संदर्भित करता है जो एक या अधिक सामान्य ग्लोबिन श्रृंखलाओं के कम या अनुपस्थित संश्लेषण की विशेषता है.

थैलेसीमिया के लक्षण
खून की अधिक कमी होना, बच्चों का उम्र के हिसाब से धीमे विकास होना, सर्दी जुकाम बने रहना, पीलिया होना, कई तरह के संक्रमण होना, कमजोरी और उदासी रहना, बार बार बीमार होना, सांस लेने में तकलीफ होना, खून चढ़ाने की बार-बार जरूरत होना.

थैलेसीमिया से बचाव
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष एवं बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अश्वनी गोयल बताते हैं कि बच्चे को एक बार थैलेसिमिया होने के बाद उसको पूरी तरह से खत्म करना मुश्किल होता है. बहुत महंगा इलाज होने के कारण यह आम आदमी की पहुंच से दूर है. थैलेसीमिया से बचाव के लिए शादी से पहले महिला और पुरुष दोनों की जांच कराएं. गर्भावस्था के दौरान भी इसकी जांच कराएं. मरीज का हिमोग्लोबिन 11-12 बनाए रखने की कोशिश करें. समय पर दवाइयां और पूरा इलाज लें.

किन बच्चों को थैलेसिमिया का अधिक खतरा
महिला एवं बांझपन रोग विशेषज्ञ डा. चंचल शर्मा बताती हैं कि अगर महिला और पुरुष दोनों को हल्का थैलेसिमिया होता है तो उनके बच्चों में अधिक तीव्र थैलेसिमिया होने का पूरा खतरा होता है. महिला और पुरुष दोनों में से एक को हल्का थैलेसिमिया है तो बच्चे में थैलेसिमिया होने का खतरा नहीं होता है.

थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे को खाने में क्या दें
डॉ. रोहित कपूर के अनुसार थैलेसिमिया पीड़ित बच्चों को आहार में डेयरी उत्पाद (दूध, दही, छाछ आदि), अनाज, फल और सब्जियां. साथ ही आयरन युक्त खाद्य पदार्थों के अत्यधिक सेवन से बच्चों को बचाना चाहिए. जैसे लाल मांस, बीन्स, किशमिश, खजूर, गुड़, बादाम और हरी सब्जियों में अधिक आयरन होता है.
लोहे के बर्तनों में खाना पकाने से भी बचें. खाने के साथ चाय पीना या कॉफी पीना मददगार हो सकता है, क्योंकि ये टैनिन आयरन के अवशोषण को कम कर सकता है.

थैलेसीमिया वाले बच्चों का भविष्य
डॉक्टर अश्वनी गोयल बताते हैं कि थैलेसिमिया से पीड़ित बच्चों के इलाज में अधिक खून और दवाइयों की जरूरत होती है. इसलिए इसका इलाज कराना सभी के लिए संभव नहीं होता है. इसलिए 12 से 15 वर्ष की उम्र तक बच्चों की मौत हो जाती है. सही और नियमित इलाज होने पर बच्चे के 25 साल या इससे अधिक उम्र तक जीने की संभावना रहती है. जैसे जैसे उम्र बढ़ती जाती है तो खून की जरूरत भी बढ़ती जाती है. इसलिए समय पर बीमारी की पहचान होना बहुत जरूरी है.

ये भी पढ़ेंः सांसद बृजभूषण शरण सिंह बोले- सुप्रीम कोर्ट जो फैसला देगा, मंजूर होगा

थैलेसीमिया का प्रभावी इलाज
अस्थि मज्जा ट्रांसप्लांटेशन एक तरह का ऑपरेशन है. यह थैलेसिमिया के इलाज के लिए काफी फायदेमंद होता है. लेकिन इसका खर्च काफी ज्यादा होता है. थैलेसीमिया, सिकल सेल, सिकलथेल और डचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी) ऐसी बीमारियां हैं जिनका इलाज आज भी दुर्लभ है.

ये भी पढ़ेंः जन चेतना अभियान में केजरीवाल सरकार पर बरसी बीजेपी, कहा- दिल्ली की जनता को आप ने दिया धोखा

नई दिल्ली: दुनिया भर में प्रति वर्ष आठ मई को वर्ल्ड थैलेसीमिया डे मनाया जाता है. इसको मनाने का कारण बच्चों में होने वाली इस आनुवंशिक बीमारी के बारे में लोगों को जागरूक करना और इसके इलाज के बारे में बताना है. यह ऐसी बीमारी है कि माता पिता दोनों में इस बीमारी का पता चलने के बाद भी बच्चे को इससे बचाया नहीं जा सकता.

थैलेसीमिया क्या है
मैक्स अस्पताल वैशाली में पीडियाट्रिक हेमेटोलॉजिस्ट एवं ऑनकोलॉजिस्ट डॉ. रोहित कपूर ने बताया कि थैलेसीमिया बच्चों को उनके माता-पिता से मिलने वाला एक अनुवांशिक रोग है. इसकी पहचान बच्चों में तीन महीने के होने पर ही होती है. हालांकि ये रोग बच्चों में बचपन से होता है. लेकिन इसके लक्षण बच्चों में तीन महीने पर उभरने लगते हैं. एक रक्त रोगों के एक समूह को संदर्भित करता है जो एक या अधिक सामान्य ग्लोबिन श्रृंखलाओं के कम या अनुपस्थित संश्लेषण की विशेषता है.

थैलेसीमिया के लक्षण
खून की अधिक कमी होना, बच्चों का उम्र के हिसाब से धीमे विकास होना, सर्दी जुकाम बने रहना, पीलिया होना, कई तरह के संक्रमण होना, कमजोरी और उदासी रहना, बार बार बीमार होना, सांस लेने में तकलीफ होना, खून चढ़ाने की बार-बार जरूरत होना.

थैलेसीमिया से बचाव
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष एवं बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अश्वनी गोयल बताते हैं कि बच्चे को एक बार थैलेसिमिया होने के बाद उसको पूरी तरह से खत्म करना मुश्किल होता है. बहुत महंगा इलाज होने के कारण यह आम आदमी की पहुंच से दूर है. थैलेसीमिया से बचाव के लिए शादी से पहले महिला और पुरुष दोनों की जांच कराएं. गर्भावस्था के दौरान भी इसकी जांच कराएं. मरीज का हिमोग्लोबिन 11-12 बनाए रखने की कोशिश करें. समय पर दवाइयां और पूरा इलाज लें.

किन बच्चों को थैलेसिमिया का अधिक खतरा
महिला एवं बांझपन रोग विशेषज्ञ डा. चंचल शर्मा बताती हैं कि अगर महिला और पुरुष दोनों को हल्का थैलेसिमिया होता है तो उनके बच्चों में अधिक तीव्र थैलेसिमिया होने का पूरा खतरा होता है. महिला और पुरुष दोनों में से एक को हल्का थैलेसिमिया है तो बच्चे में थैलेसिमिया होने का खतरा नहीं होता है.

थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे को खाने में क्या दें
डॉ. रोहित कपूर के अनुसार थैलेसिमिया पीड़ित बच्चों को आहार में डेयरी उत्पाद (दूध, दही, छाछ आदि), अनाज, फल और सब्जियां. साथ ही आयरन युक्त खाद्य पदार्थों के अत्यधिक सेवन से बच्चों को बचाना चाहिए. जैसे लाल मांस, बीन्स, किशमिश, खजूर, गुड़, बादाम और हरी सब्जियों में अधिक आयरन होता है.
लोहे के बर्तनों में खाना पकाने से भी बचें. खाने के साथ चाय पीना या कॉफी पीना मददगार हो सकता है, क्योंकि ये टैनिन आयरन के अवशोषण को कम कर सकता है.

थैलेसीमिया वाले बच्चों का भविष्य
डॉक्टर अश्वनी गोयल बताते हैं कि थैलेसिमिया से पीड़ित बच्चों के इलाज में अधिक खून और दवाइयों की जरूरत होती है. इसलिए इसका इलाज कराना सभी के लिए संभव नहीं होता है. इसलिए 12 से 15 वर्ष की उम्र तक बच्चों की मौत हो जाती है. सही और नियमित इलाज होने पर बच्चे के 25 साल या इससे अधिक उम्र तक जीने की संभावना रहती है. जैसे जैसे उम्र बढ़ती जाती है तो खून की जरूरत भी बढ़ती जाती है. इसलिए समय पर बीमारी की पहचान होना बहुत जरूरी है.

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थैलेसीमिया का प्रभावी इलाज
अस्थि मज्जा ट्रांसप्लांटेशन एक तरह का ऑपरेशन है. यह थैलेसिमिया के इलाज के लिए काफी फायदेमंद होता है. लेकिन इसका खर्च काफी ज्यादा होता है. थैलेसीमिया, सिकल सेल, सिकलथेल और डचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी) ऐसी बीमारियां हैं जिनका इलाज आज भी दुर्लभ है.

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