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दिल्ली दंगा: हिंसा की याद से सिहर जाते हैं गढ़ी गांववासी - delhi riots

घोंडा विधानसभा में लगने वाला पुराना गढ़ी मेडु गांव भी पिछले दिनों हुई हिंसा में दंगाइयों का निशाना बना था. इस गांव में अल्पसंख्यकों के गिने चुने मकान ही मौजूद है, लेकिन 24-25 फरवरी को गांव में हुए हिंसा के तांडव में अल्पसंख्यकों के मकानों को दंगाइयों ने लूटपाट करके आग के हवाले कर दिया था.

north east Delhi Violence
दिल्ली हिंसा
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Published : Mar 16, 2020, 3:38 PM IST

Updated : Mar 16, 2020, 6:17 PM IST

नई दिल्ली: उत्तर पूर्वी दिल्ली के खजूरी चौक से कुछ दूरी पर मौजूद गढ़ी मेडु गांव भी दिल्ली हिंसा के दौरान दंगाइयों की करतूतों का शिकार बना था. हालात ये है कि हिंसा होने के इतने दिन बाद आज भी इस गांव के अल्पसंख्यक समुदाय के लोग इलाके में हुई हिंसा के बारे में बात करते हुए ही सिहर जाते हैं.

हिंसा की याद से सिहर जाते हैं गढ़ी गांववासी

गांव में दंगाइयों ने जिस कदर का तांडव मचाया उसका सबूत वहां मौजूद जले हुए मकान, दुकान और वर्कशॉप आज भी चीख-चीख कर दे रहे हैं.



गढ़ी मेडु गांव में जलाए गए घर

खजूरी चौक से कुछ फासले पर ही मौजूद घोंडा विधानसभा में लगने वाला पुराना गढ़ी मेडु गांव भी पिछले दिनों हुई हिंसा में दंगाइयों का निशाना बना था. इस गांव में अल्पसंख्यकों के गिने चुने मकान ही मौजूद है, लेकिन 24-25 फरवरी को गांव में हुए हिंसा के तांडव में अल्पसंख्यकों के मकानों को दंगाइयों ने लूटपाट करके आग के हवाले कर दिया. गांव में मौजूद 25-30 मकानों को जिस ढंग से हिंसा का शिकार बनाया गया. बस यही अंदाज लगता है कि दंगाई जान बूझकर गांव में दहशत बनाना चाहते थे.

'डर के साए में कटी हिंसा की वो रात'

गांव के पीड़ितों ने बताया कि जिस दिन दिल्ली के दूसरे हिस्सों में हिंसक वारदातें हुई. ठीक इसी तरह 24 फरवरी की शाम से ही गांव की फिजा में भी जहर घुल गया था. गांव में हुड़दंगियों की टोलियां लोगों के घरों के बाहर जाकर हंगामा करने लगी थी.

ये लोग ना केवल नारे लगा रहे थे. बल्कि दरवाजों पर लाठी डंडों, हॉकी से भी वार करके वहां मौजूद लोगों को गांव छोड़ने के लिए ललकार रहे थे. पीड़ितों की मानें तो वो रात गांव में मौजूद लोगों ने खुद को घरों में कैद करके काटी. सारी रात लोग ऊपरवाले का नाम लेते रहे और कुछ लोग तो घरों को छोड़कर वहां से परिवार के साथ निकल गए.



पहले की लूटपाट, फिर किया आग के हवाले


पीड़ितों का कहना था कि अगले दिन सुबह से ही दंगाईयों ने तांडव मचाना शुरू कर दिया था. घरों के दरवाजे तोड़कर लूटपाट करने लगे. जिसके हाथ जो भी कीमती सामान हाथ लगा लूटकर ले गया.

लूटपाट का ये सिलसिला दिनभर चला और फिर शाम होते-होते दंगाइयों के समूह ने आगजनी शुरू कर दी. लूटपाट का शिकार बनाये गए घरों में एक के बाद करके आग लगाई जाने लगी. देखते ही देखते गांव के ये घर धूं-धूं कर जलने लगे.



किराए के मकानों में नहीं लगाई आग
जैसा कि बताया जा रहा है यह गांव गुर्जर बहुल्य है ऐसे में यहां संपत्तियां भी उन्ही की ज्यादा हैं. ऐसे में बहुत से लोगों ने अपने घरों की किराय पर भी दिया हुआ है. बताया जाता है कि दंगाइयों को यह बात भी बखूबी पता थी कि कौन से मकानों में अल्पसंख्यक परिवार किराय पर रहते हैं, लिहाजा उन घरों में सिर्फ लूटपाट हो की गई.

घरों में आग नहीं लगाई गई.इस बात से यह तो साफ है कि गांव में दंगा मचाने वाले कोई नए नहीं थे बल्कि गांव और आसपास के इलकों से पहुंचे जानकार ही रहे होंगे,जिन्होंने पूरी तसल्ली करके गांव में चुनिंदा घरों को ही हिंसा का शिकार बनाया.



डर का माहौल बनाने का था मकसद
पुराना गढ़ी मेडु गांव में पहले ही मुस्लिम समुदाव के सिर्फ 25-30 मकान ही मौजूद थे और जो लोग यहां सालों से रहते चले आ रहे थे. वो भी बेहद गरीब तबके से थे. कुछ ही लोग ऐसे होंगे जिन्होंने यहां अपनी जगह में वर्कशॉप लगाए हुए थे.

पहले ही इस गांव में रहने वालों की हिम्मत थी, लेकिन आजतक भी कभी यहां कोई गड़बड़ी नहीं हुई. ऐसे में आखिर दंगाइयों ने डरे लोगों को और डराने के लिए इतनी बड़ी हिंसा क्यों कि जबकि यहां रहने वाले तो पहले ही दबकर रहते थे.


नई दिल्ली: उत्तर पूर्वी दिल्ली के खजूरी चौक से कुछ दूरी पर मौजूद गढ़ी मेडु गांव भी दिल्ली हिंसा के दौरान दंगाइयों की करतूतों का शिकार बना था. हालात ये है कि हिंसा होने के इतने दिन बाद आज भी इस गांव के अल्पसंख्यक समुदाय के लोग इलाके में हुई हिंसा के बारे में बात करते हुए ही सिहर जाते हैं.

हिंसा की याद से सिहर जाते हैं गढ़ी गांववासी

गांव में दंगाइयों ने जिस कदर का तांडव मचाया उसका सबूत वहां मौजूद जले हुए मकान, दुकान और वर्कशॉप आज भी चीख-चीख कर दे रहे हैं.



गढ़ी मेडु गांव में जलाए गए घर

खजूरी चौक से कुछ फासले पर ही मौजूद घोंडा विधानसभा में लगने वाला पुराना गढ़ी मेडु गांव भी पिछले दिनों हुई हिंसा में दंगाइयों का निशाना बना था. इस गांव में अल्पसंख्यकों के गिने चुने मकान ही मौजूद है, लेकिन 24-25 फरवरी को गांव में हुए हिंसा के तांडव में अल्पसंख्यकों के मकानों को दंगाइयों ने लूटपाट करके आग के हवाले कर दिया. गांव में मौजूद 25-30 मकानों को जिस ढंग से हिंसा का शिकार बनाया गया. बस यही अंदाज लगता है कि दंगाई जान बूझकर गांव में दहशत बनाना चाहते थे.

'डर के साए में कटी हिंसा की वो रात'

गांव के पीड़ितों ने बताया कि जिस दिन दिल्ली के दूसरे हिस्सों में हिंसक वारदातें हुई. ठीक इसी तरह 24 फरवरी की शाम से ही गांव की फिजा में भी जहर घुल गया था. गांव में हुड़दंगियों की टोलियां लोगों के घरों के बाहर जाकर हंगामा करने लगी थी.

ये लोग ना केवल नारे लगा रहे थे. बल्कि दरवाजों पर लाठी डंडों, हॉकी से भी वार करके वहां मौजूद लोगों को गांव छोड़ने के लिए ललकार रहे थे. पीड़ितों की मानें तो वो रात गांव में मौजूद लोगों ने खुद को घरों में कैद करके काटी. सारी रात लोग ऊपरवाले का नाम लेते रहे और कुछ लोग तो घरों को छोड़कर वहां से परिवार के साथ निकल गए.



पहले की लूटपाट, फिर किया आग के हवाले


पीड़ितों का कहना था कि अगले दिन सुबह से ही दंगाईयों ने तांडव मचाना शुरू कर दिया था. घरों के दरवाजे तोड़कर लूटपाट करने लगे. जिसके हाथ जो भी कीमती सामान हाथ लगा लूटकर ले गया.

लूटपाट का ये सिलसिला दिनभर चला और फिर शाम होते-होते दंगाइयों के समूह ने आगजनी शुरू कर दी. लूटपाट का शिकार बनाये गए घरों में एक के बाद करके आग लगाई जाने लगी. देखते ही देखते गांव के ये घर धूं-धूं कर जलने लगे.



किराए के मकानों में नहीं लगाई आग
जैसा कि बताया जा रहा है यह गांव गुर्जर बहुल्य है ऐसे में यहां संपत्तियां भी उन्ही की ज्यादा हैं. ऐसे में बहुत से लोगों ने अपने घरों की किराय पर भी दिया हुआ है. बताया जाता है कि दंगाइयों को यह बात भी बखूबी पता थी कि कौन से मकानों में अल्पसंख्यक परिवार किराय पर रहते हैं, लिहाजा उन घरों में सिर्फ लूटपाट हो की गई.

घरों में आग नहीं लगाई गई.इस बात से यह तो साफ है कि गांव में दंगा मचाने वाले कोई नए नहीं थे बल्कि गांव और आसपास के इलकों से पहुंचे जानकार ही रहे होंगे,जिन्होंने पूरी तसल्ली करके गांव में चुनिंदा घरों को ही हिंसा का शिकार बनाया.



डर का माहौल बनाने का था मकसद
पुराना गढ़ी मेडु गांव में पहले ही मुस्लिम समुदाव के सिर्फ 25-30 मकान ही मौजूद थे और जो लोग यहां सालों से रहते चले आ रहे थे. वो भी बेहद गरीब तबके से थे. कुछ ही लोग ऐसे होंगे जिन्होंने यहां अपनी जगह में वर्कशॉप लगाए हुए थे.

पहले ही इस गांव में रहने वालों की हिम्मत थी, लेकिन आजतक भी कभी यहां कोई गड़बड़ी नहीं हुई. ऐसे में आखिर दंगाइयों ने डरे लोगों को और डराने के लिए इतनी बड़ी हिंसा क्यों कि जबकि यहां रहने वाले तो पहले ही दबकर रहते थे.


Last Updated : Mar 16, 2020, 6:17 PM IST
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