नई दिल्ली/गाजियाबाद: देशभर में 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है. 3 मई 1999 को कारगिल युद्ध की शुरुआत हुई थी. करीब ढाई महीने चला कारगिल युद्ध 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ था. इस दौरान भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय को सफलतापूर्वक अंजाम दिया था. भारत में जब-जब भी कारगिल का जिक्र होता है तब-तब शौर्य गाथाएं सामने आती है. कारगिल विजय दिवस पर आपको ऐसी ही एक जांबाज महिला मेडिकल अधिकारी की दास्तां से रूबरू कराएंगे, जिन्होंने युद्ध के दौरान घायल सैनिकों का इलाज किया था.
कारगिल युद्ध में अहम योगदान: डॉ मेजर प्राची गर्ग ने 1997 में भारतीय सेना में बतौर मेडिकल अधिकारी शामिल हुई थी. सेना में करीब साढ़े पांच साल सेवाएं देने के दौरान उन्होंने कारगिल युद्ध में भी अहम योगदान दिया था. युद्ध के दौरान मेजर प्राची की द्रास सेक्टर में बतौर महिला मेडिकल अधिकारी तैनाती थी. युद्ध के दौरान उन्होंने करीब 200 घायल सैनिकों का इलाज किया.
लोगों की मदद करना पसंद: डॉ मेजर गर्ग बताती हैं कि बचपन से ही उन्हें लोगों की मदद करना बेहद पसंद था. इसलिए उन्होंने डॉक्टरी की पढ़ाई का मन बनाया. एमबीबीएस करने के बाद अरुणाचल प्रदेश में उन्होंने एक संस्था के साथ जुड़कर लोगों को निशुल्क इलाज उपलब्ध कराया. उसके बाद उन्होंने रेड क्रॉस सोसाइटी से जुड़कर भी कई महीने तक काम किया. देश प्रेम और सेवा के जज्बे के चलते भारतीय सेना ज्वाइन करने का मन बनाया. 1997 में सेना में बतौर महिला मेडिकल अधिकारी शामिल हो गई.
युद्ध के दिनों को याद करके नम हो जाती हैं आंखें: कारगिल युद्ध के दौरान युद्ध क्षेत्र में बिताए गए दिनों को याद करते हुए आज भी मेजर प्राची की आंखें नम हो जाती है. प्राची बताती हैं युद्ध के दौरान उनकी तैनाती 8 माउंटेन डिवीजन के आर्टलेरी ब्रिगेड के साथ थी. जो तंगमर्ग में था. तंगमर्ग से वह फिर द्रास सेक्टर में पहुंचे थे. इस दौरान एक वाकिए को याद करते हुए प्राची बताती हैं कि युद्ध के दौरान शेलिंग शैलिंग हो रही थी. जिसमें एक साथ 40 कैजुअल्टी हुई थी. इस दौरान कई गंभीर रूप से घायल हुए सैनिकों का इलाज किया गया. जबकि, कई उनकी आंखों के सामने वीरगति को प्राप्त हो गए. आज भी वह इन लम्हों को याद कर गमगीन हो जाती हैं कि वह देश के कई जांबाज सैनिकों को नहीं बचा पाई थी.
पैसे कमाना नहीं लोगों की सेवा करना है लक्ष्य: सेना से रिटायरमेंट के बाद भी डॉक्टर मेजर प्राची का देश प्रेम और देश सेवा का जज्बा कम नहीं हुआ है. मौजूदा समय में भी वह एक चैरिटेबल अस्पताल की बागडोर बतौर CEO संभाल रही हैं. जहां लोगों को निशुल्क परामर्श, तीन दिन की निशुल्क दवाई आधे दामों पर साथ ही विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य जांच आदि उपलब्ध कराई जाती है.
मेजर प्राची बताती हैं एमबीबीएस में एडमिशन लेने से पहले ही उन्होंने यह तय कर लिया था कि उनका लक्ष्य डॉक्टर बनकर लोगों की मदद करना है ना कि धन अर्जित करना. अगर आज भी उन्हें सेना में जाने का या फिर काम करने का मौका मिलेगा तो वे उसे गर्व से एक्सेप्ट करेंगी.
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