नई दिल्ली: दिल्ली की सभी अस्पतालों में अलग-अलग तरह के स्पेशल क्लीनिक खोल कर लोगों के स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सुविधाएं बढ़ाई जा रही है. 17 सितंबर को राम मनोहर लोहिया (आरएमएल) अस्पताल में ट्रांसजेंडर्स के लिए विशेष क्लीनिक का उद्घाटन किया गया. इसमें ट्रांसजेंडर को हर शुक्रवार को दो बजे से चार बजे तक स्वास्थ्य सुविधाएं मिलेंगी.
वहीं, राजधानी के अलग-अलग अस्पतालों में बुजुर्गों के लिए, महिलाओं के लिए, टीबी के मरीजों के लिए, हीमोफीलिया मरीजों के लिए, हार्ट वाल्व डलवाने वाले मरीजों के लिए, महिला मोहल्ला क्लीनिक, रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं को होने वाली समस्याओं और सेक्स वर्कर्स के लिए अलग-अलग स्पेशल क्लीनिक संचालित किए जा रहे हैं. हालांकि इन, तमाम तरह की सुविधा शुरू होने के बाद भी और भी कई तरह की सुविधा शुरू होने की दरकार है.
पुरुषों के लिए स्पेशल क्लीनिक होना जरूरी: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की ऑर्गन डोनेशन कमेटी के अध्यक्ष डॉ अनिल गोयल का कहना है कि महिलाओं के लिए अलग-अलग श्रेणी में कई तरह के विशेष क्लीनिक शुरू किए गए हैं. लेकिन, अभी तक स्पेशल पुरुष क्लीनिक की शुरुआत होना बाकी है. इसलिए पुरुष क्लीनिक भी खोलने की जरूरत है, जिनमें जाकर पुरुष अपनी सेक्सुअल प्रॉब्लम्स, शारीरिक प्रॉब्लम्स और अन्य तरह के गुप्त रोगों की खुलकर बात कर इलाज करा सकें. अभी पुरुष क्लीनिक ना होने की वजह से मरीज अस्पताल की ओपीडी में जाते हैं, लेकिन वहां भीड़ होने की वजह से वह डॉक्टर से खुलकर बात नहीं कर पाते हैं.
आईएमए क्लीनिक खोलने की दिशा में कर रहा काम: विशेष तौर पर सेक्स संबंधी समस्याओं को लेकर पुरुष ज्यादा शर्माते हैं. इन मरीजों का का इलाज यूरोलॉजिस्ट, एंड्रोलॉजिस्ट और सेक्सोलॉजिस्ट करते हैं. सरकारी और निजी अस्पतालों में इस तरह के क्लीनिक खोलने की जरूरत है. उन्होंने बताया कि आईएमए इस दिशा में काम कर रहा है.
डॉक्टर गोयल कहते हैं कि सेक्स संबंधी समस्याओं की वजह से लोगों की शादीशुदा जिंदगी में बहुत सारी समस्याएं आती है. समस्या का समाधान न होने पर तलाक तक हो जाता है. गुप्त रोगों की समस्या को लेकर के बहुत सारे निजी क्लीनिक लोगों का इलाज तो कर रहे हैं, लेकिन उनका इलाज बहुत महंगा होने के कारण हर कोई उसको वहन नहीं कर सकता है. इसलिए पुरुष क्लीनिक खोलने की भी जरूरत है.
इहबास अस्पताल के पूर्व निदेशक डॉक्टर निमिष देसाई कहना है कि स्पेशल क्लीनिक खोलना अच्छी बात है. लेकिन, इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी है कि कहीं दूसरी सुविधाओं पर इसका असर न पड़े. क्योंकि सरकारी अस्पतालों में हमेशा मैनपावर की कमी रहती है, जो डॉक्टर ओपीडी में बैठता है उसको स्पेशल क्लिनिक में भी बैठना होता है. ऐसे में कहीं ऐसा न हो कि स्पेशल क्लीनिक और ओपीडी दोनों का काम बढ़ने से सेवाओं की गुणवत्ता में कमी आए.
ये भी पढ़ें: