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चांदनी चौक: रमज़ान में गरीबों को मुफ्त खाना खिलाकर नेकी कमा रहे रोज़ेदार

मटिया महल में खाने के काफी होटल हैं. जिन पर स्थानीय लोगों के साथ-साथ पर्यटक भी आते हैं. होटलों के आगे एक झुंड में कुछ लोग बैठे दिखे. ये लोग इस उम्मीद में यहां बैठे थे कि कोई नेक इंसान आएगा और इनको एक वक्त की रोटी खिलाएगा.

चांदनी चौक: रमज़ान में गरीबों को मुफ्त खाना खिलाकर नेकी कमा रहे रोज़ेदार
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Published : May 10, 2019, 10:48 AM IST

नई दिल्ली: रमज़ान का महीना नेकी और इबादत का होता है. इस पाक महीने में मुसलमान जहां एक तरफ नमाज़ पढ़ कर इबादत करते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ गरीबों की मदद कर नेकी कमाते हैं. नेकी का एक ऐसा ही नजारा पुरानी दिल्ली में देखने को मिला.

दिल्ली का चांदनी चौक आज भी अपनी ऐतिहासिक धरोहर के लिए जाना जाता है. देश विदेश से यहां करोड़ों सैलानी मुगलों की बनाई गई आलीशान इमारतों का दीदार करने आते हैं.

रमजान के महीने में इंसानियत का एक पाक नजारा यहां देखने को मिला है. चांदनी चौक का मटिया महल एक मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है. जहां पर रमजान की रौनक देखते ही बनती है.

मटिया महल में खाने के काफी होटल हैं. जिन पर स्थानीय लोगों के साथ-साथ पर्यटक भी आते हैं. होटलों के आगे एक झुंड में कुछ लोग बैठे दिखे. ये लोग इस उम्मीद में यहां बैठे थे कि कोई नेक इंसान आएगा और इनको एक वक्त की रोटी खिलाएगा.

चांदनी चौक में गरीबों को मुफ्त भोजन कराते हैं लोग

सड़क के दोनों तरफ खाने के होटल थे और दोनों तरफ एक जैसा ही नजारा था. दोनों तरफ झुंड में लोग बैठे हुए थे. रमज़ान के इस पाक महीने में पर्यटक और स्थानीय लोग इन लोगों को इंसानियत के तौर पर खाना खिलाते हैं.

जब हमने होटल वाले से इस पर बातचीत की तो उन्होंने बताया कि हमारे यहां जो भी लोग होटल में खाना खाने आते हैं उनका अक्सर झुंड में बैठे इन लोगों की तरफ ध्यान जाता है और वो इन्हें खाना खिलाते हैं.

इस महंगाई के दौर में 20 रुपए में भर पेट खाना मिल पाना बहुत मुश्किल है, लेकिन पुरानी दिल्ली में 20 रुपए में खाना मिल जाता है. ये सुविधा आम तौर पर सभी होटलों पर उपलब्ध है.

होटल पर काम करने वाले लोग बताते हैं कि लोग यहां आते हैं और वो 20 रुपए में दो रोटी और सब्जी खरीदकर इन लोगों को दे देते हैं. जिस-जिस को मिलता जाता है वो यहां से खाना लेकर उठ जाता है.

जिसकी जैसी हैसियत होती है वो उसी हिसाब से इन लोगों को खाना खिलाता है. कोई इंसान 2 लोगों को खाना खिला पाता है तो कोई 50 लोगों को एक बार में खाना खिला कर चला जाता है.

चांदनी चौक के मटिया महल में आज भी इंसानियत जिंदा है आज भी लोग उन लोगों की परवाह करते हैं जिनके पास ना रहने को घर है और ना ही खाने को दो वक्त की रोटी.

नई दिल्ली: रमज़ान का महीना नेकी और इबादत का होता है. इस पाक महीने में मुसलमान जहां एक तरफ नमाज़ पढ़ कर इबादत करते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ गरीबों की मदद कर नेकी कमाते हैं. नेकी का एक ऐसा ही नजारा पुरानी दिल्ली में देखने को मिला.

दिल्ली का चांदनी चौक आज भी अपनी ऐतिहासिक धरोहर के लिए जाना जाता है. देश विदेश से यहां करोड़ों सैलानी मुगलों की बनाई गई आलीशान इमारतों का दीदार करने आते हैं.

रमजान के महीने में इंसानियत का एक पाक नजारा यहां देखने को मिला है. चांदनी चौक का मटिया महल एक मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है. जहां पर रमजान की रौनक देखते ही बनती है.

मटिया महल में खाने के काफी होटल हैं. जिन पर स्थानीय लोगों के साथ-साथ पर्यटक भी आते हैं. होटलों के आगे एक झुंड में कुछ लोग बैठे दिखे. ये लोग इस उम्मीद में यहां बैठे थे कि कोई नेक इंसान आएगा और इनको एक वक्त की रोटी खिलाएगा.

चांदनी चौक में गरीबों को मुफ्त भोजन कराते हैं लोग

सड़क के दोनों तरफ खाने के होटल थे और दोनों तरफ एक जैसा ही नजारा था. दोनों तरफ झुंड में लोग बैठे हुए थे. रमज़ान के इस पाक महीने में पर्यटक और स्थानीय लोग इन लोगों को इंसानियत के तौर पर खाना खिलाते हैं.

जब हमने होटल वाले से इस पर बातचीत की तो उन्होंने बताया कि हमारे यहां जो भी लोग होटल में खाना खाने आते हैं उनका अक्सर झुंड में बैठे इन लोगों की तरफ ध्यान जाता है और वो इन्हें खाना खिलाते हैं.

इस महंगाई के दौर में 20 रुपए में भर पेट खाना मिल पाना बहुत मुश्किल है, लेकिन पुरानी दिल्ली में 20 रुपए में खाना मिल जाता है. ये सुविधा आम तौर पर सभी होटलों पर उपलब्ध है.

होटल पर काम करने वाले लोग बताते हैं कि लोग यहां आते हैं और वो 20 रुपए में दो रोटी और सब्जी खरीदकर इन लोगों को दे देते हैं. जिस-जिस को मिलता जाता है वो यहां से खाना लेकर उठ जाता है.

जिसकी जैसी हैसियत होती है वो उसी हिसाब से इन लोगों को खाना खिलाता है. कोई इंसान 2 लोगों को खाना खिला पाता है तो कोई 50 लोगों को एक बार में खाना खिला कर चला जाता है.

चांदनी चौक के मटिया महल में आज भी इंसानियत जिंदा है आज भी लोग उन लोगों की परवाह करते हैं जिनके पास ना रहने को घर है और ना ही खाने को दो वक्त की रोटी.

Intro:रमजान का महीना नेक अमाल और इबादत का होता है इस पाक महीने में मुसलमान जहां एक तरफ नमाज और कुरान पढ़ कर इबादत करते हैं तो वहीं दूसरी तरफ गरीबों की मदद कर नेकी कमाते हैं. नेकी का एक ऐसा ही नजारा पुरानी दिल्ली में देखने को मिला जोकि एहसास कराता है कि इस दुनिया में आज भी इंसानियत जिंदा है.


Body:दिल्ली का चांदनी चौक आज भी अपनी ऐतिहासिक धरोहर के लिए जाना जाता है देश विदेश से यहां करोड़ों सैलानी मुगलों द्वारा बनाई गई आलीशान इमारतों का दीदार करने आते हैं.

रमजान के महीने में इंसानियत का एक आश्चर्यजनक नजारा देखने को मिला, चांदनी चौक स्थित मटिया महल एक मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है जहां पर रमजान की रौनक देखते ही बनती है.

मटिया महल में एक आश्चर्यजनक दृश्य देखने को मिला, क्षेत्र में खाने के काफी होटल हैं जिन पर स्थानीय लोगों के साथ साथ पर्यटक भी आते हैं, होटलों के आगे एक झुंड में कुछ लोग बैठे दिखे, यह लोग इस उम्मीद में यहां बैठे थे कि कोई नेक इंसान आएगा और इनको एक वक्त की रोटी मुहैया कराएगा.

सड़क के दोनों तरफ खाने की होटल थे और दोनों तरफ एक जैसा ही नजारा था, दोनों तरफ झुंड में लोग बैठे हुए थे.

रमजान के इस पाक महीने में पर्यटक और स्थानीय लोग इन लोगों को इंसानियत के तौर पर खाना खिलाते हैं, आइए जानते हैं किस तरह से इन लोगों को खाना खिलाया जाता है.

जब हमने होटल वाले से इस पर बातचीत की तो उसने कहा कि हमारे यहां जो भी लोग होटल में खाना खाने आते हैं उनका अक्सर झुंड में बैठे इन लोगों की तरफ ध्यान जाता है और वह इन्हें खाना खिलाते हैं.

इस महंगाई के दौर में ₹20 में पेट भर खाना मिल पाना बहुत मुश्किल है लेकिन पुरानी दिल्ली में अगर आप हैं तो आप ₹20 में एक इंसान को खाना खिला सकते हैं यह सुविधा आम तौर पर सभी होटलों पर उपलब्ध है, होटल वाले ने बताया लोग यहां आते हैं और वह ₹20 में दो रोटी और सब्जी खरीदते हैं जो कि इन लोगों को दे देते हैं जिस जिस को मिलता जाता है वह यहां से खाना लेकर उठ जाता है. जिसकी जैसी हैसियत होती है वह उसी हिसाब से इन लोगों को खाना खिलाता है कोई इंसान 2 लोगों को खाना खिला पाता है तो कोई 50 लोगों को एक बार में खाना खिला कर चला जाता है.


Conclusion:चांदनी चौक के मटिया महल में आज भी इंसानियत जिंदा है आज भी लोग उन लोगों की परवाह करते हैं जिनके पास न रहने को घर है और ना ही खाने को दो वक्त की रोटी हालांकि यह सिलसिला साल भर चलता है लेकिन रमजान में इसमें बढ़ोतरी हो जाती है.
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