नई दिल्ली: इस्कॉन द्वारका श्री श्री रुक्मिणी द्वारकाधीश मंदिर में 4 मई को धुमधाम से नरसिंह चतुर्दशी उत्सव मनाया जा गया. इस दौरान सुबह 8 से 9 बजे तक भक्त मित्र प्रभु द्वारा नृसिंह देव भगवान की कथा की गई, जिसमें भक्त प्रह्लाद के पिता हिरण्यकशिपु के दिए कष्टों और एक भक्त के रूप में प्रह्लाद की भगवान कृष्ण के प्रति अगाध आस्था और विश्वास का वर्णन किया गया. इसी दिन भगवान कृष्ण ने भक्त प्रह्रलाद की रक्षा हेतु हिरण्यकशिपु के संहार के लिए नृसिंह रूप धारण किया था.
असुर कुल में जन्म लेने के बावजूद उनकी भगवान कृष्ण में अटूट श्रद्धा थी. इसी वजह से बचपन से ही उन्हें अपने पिता हिरण्यकशिपु की अनेक यातनाएं सहनी पड़ीं, लेकिन अंत में भक्त की आस्था और विश्वास की जीत हुई और भगवान कृष्ण ने स्वयं उनकी रक्षा की. इसी उपलक्ष्य में वैसाख मास की चतुर्दशी को ‘नृसिंह चतुर्दशी’ मनाई जाती है.
नरसिंह चतुर्दशी के दिन भगवान कृष्ण राजमहल के खंभे से एक अद्भुत रूप, आधे मनुष्य तथा आधे सिंह के रूप में प्रकट हुए थे. हिरण्यकशिपु ने हज़ारों साल तपस्या कर ब्रह्मा से अमरता का वरदान मांगा कि न मैं सुबह मरूं न शाम को, न अंदर मरूं न बाहर, न ऊपर मरूं न नीचे, न दिन में मरूं न रात में, न अस्त्र से मरूं न शस्त्र से, न पशु से मरूं न मनुष्य से, न भूमि में मरूं न आकाश में और बारह महीने में भी कभी न मरूं. इस तरह वह अमर होना चाहता था, लेकिन भगवान कृष्ण ने ब्रह्मा के वरदान को भी अक्षुण्ण रखा और अपने भक्त की आस्था और विश्वास को भी बरकरार रखा. उन्होंने संध्या के समय का चयन कर हिरण्यकशिपु के महल की दहलीज़ पर उसे अपनी गोद में रखकर अपने नाखूनों से उसे चीर डाला था.
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इस उत्सव के मौके पर शाम 4 बजे कीर्तन से कीर्तन का आरंभ हुआ, जिसके बाद बच्चों के लिए मुखौटा कार्यशाला आयोजित की गयी और फिर शाम 6 बजे महा-अभिषेक किया गया. शाम 7 बजे भोग अर्पण के बाद महाआरती व उसके बाद प्रसादम का वितरण किया गया.
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