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राजधानी में असहनशीलता के कारण चाकूबाजी की बढ़ती जा रही है घटनाएं, जानें कैसे थमेगा सिलसिला? - सावधानी से रोकी जा सकती हैं वारदातें

दिल्ली में चाकूबाजी की वारदात लगातार हो रही हैं. लोग छोटी-छोटी बातों को लेकर एक दूसरे पर चाकू से हमला कर देते हैं. पिछले दिनों हत्या का मामला तो देशभर में चर्चा का विषय बना रहा. पिछले एक महीने में दिल्ली में लगभग 12 से ज्यादा चाकूबाजी की घटनाएं सामने आई हैं. चाकूबाजी के बढ़ते मामलों की वजह पर ETV भारत ने कुछ एक्सपर्ट्स से बात की है, जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर..

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Published : Jun 23, 2023, 6:44 PM IST

नई दिल्ली: असहनशीलता और क्षणिक गुस्से के कारण देश की राजधानी दिल्ली अब चाकूबाजी और हत्या की राजधानी बनती जा रही है. राजधानी दिल्ली में पिछले दो माह में चाकूबाजी की घटनाओं में कई लोगों की जान तो गई ही है. इससे लोगों में दिल्ली की छवि भी खराब हुई है. इसके अलावा चाकूबाजी की कुछ घटनाओं पर राजनीति भी हो रही है. चाकू मारने वाला कौन है और मरने वाला किस धर्म से है, इस लेखा-जोखा के साथ राजनीतिक दल बयानबाजी करते रहे और वारदातें होती रहीं. लेकिन इसका सबसे ज्यादा नुकसान उन परिवारों को हुआ जिन्होंने इन वारदातों में अपनों को खोया है.

असहनशीलता और गुस्सा सबसे बड़ा कारण: दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड डीसीपी एवं एडवोकेट एलएन राव ने बताया कि आजकल लोगों में असहनशीलता बढ़ती जा रही है. छोटी-छोटी बात पर लोगों में इतना गुस्सा आ जाता है कि वह एक दूसरे की हत्या तक करने पर उतारू हो जाते हैं. सबसे दुखद बात तो यह है कि ऐसा होते हुए देखकर भी लोग अनदेखा करते हैं. राजधानी दिल्ली में ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं, जिसमें यदि वारदात के वक्त राहगीरों ने या आसपास के लोगों ने हस्तक्षेप किया होता तो वारदात होने से बचाया जा सकता था. एलएन राव ने बताया कि चाकूबाजी की घटनाएं अधिक होने का कारण यह है कि चाकू आसानी से उपलब्ध होता है. सब्जी की दुकान से लेकर घर के किचन तक और छोटी मोटी दुकानों तक पर यह मिल जाता है और क्षणिक गुस्से में भी लोग चाकूबाजी कर देते हैं.

दिल्ली में बीते दिनों चाकूबाजी की घटनाएं
दिल्ली में बीते दिनों चाकूबाजी की घटनाएं

सावधानी से रोकी जा सकती हैं वारदातें: दिल्ली पुलिस के विशेष आयुक्त पद से सेवानिवृत्त मुकेश कुमार मीणा ने बताया कि चाकूबाजी की घटनाएं बहुत आम हो गई हैं. इनमें बहुत सी घटनाएं त्वरित लड़ाई-झगड़े के दौरान होती हैं. वहीं, कुछ घटनाएं ऐसी होती है, जिसमें साजिश के तहत पहले से ही आरोपी पूरी तैयारी के साथ चाकू लेकर आते हैं और वारदात करते हैं. मुकेश मीणा ने बताया कि हर घटना पुलिस नहीं रोक सकती है. ऐसी घटनाओं से बचने के लिए बच्चों को शुरू से ही सहनशीलता और एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव की शिक्षा देना होगा. परिवारों में बड़े बुजुर्ग इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

दिल्ली में बीते दिनों चाकूबाजी की घटनाएं
दिल्ली में बीते दिनों चाकूबाजी की घटनाएं
पुराने अपराधियों पर निगाह रखी जाए तो रुकेंगी वारदात: एलएन राव ने बताया कि पुलिस अगर कुछ सावधानी बरते तो ऐसी घटनाओं पर कुछ हद तक लगाम लग सकती है. पुलिस को चाहिए कि वह ऐसे लोगों पर निगाह रखे जो लोग पहले आपराधिक वारदात में शामिल हो चुके हैं. ऐसे अपराधी जो बार-बार अपराध करते हैं और जेल जा चुके हैं, उन पर भी पुलिस को नजर रखना चाहिए. वहीं, अपराधिक मामलों की सुनवाई तेज होनी चाहिए क्योंकि यदि पीड़ित को न्याय मिलने में बहुत लंबा समय लग गया तो वह फैसला नजीर नहीं बन पाता है. अपराधी व्यक्ति को सजा मिलती है तो अन्य लोगों को भी इस बात का सबक मिलता है कि अपराध करेंगे तो कानून उन्हें सजा जरूर देगा. इससे लोगों के बीच कानून का भय भी बना रहता है.

साइकोपैथिक पर्सनालिटी की पहचान करना जरूरी: साइकोलॉजिस्ट पल्लवी जोशी ने बताया कि कुछ लोग ऐसे होते हैं जो बार-बार और आदतन अपराध करते हैं. उन्हें अपने कृत्य पर कोई पछतावा नहीं होता है. पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है. जेल से आने के बाद फिर वह अपराध करना शुरू कर देते हैं. ऐसे लोगों को साइकोपैथिक पर्सनालिटी कहा जाता है. अपराध करने वाले ऐसे लोगों पर सख्त कानूनी कार्रवाई हो और समय पर सजा मिले तो सुधार हो सकता है.

समाज में हर व्यक्ति को इस बात का एहसास होना चाहिए कि अपराध करेंगे तो सजा जरूर मिलेगी. ऐसे अपराधिक वारदातों के पीछे सामाजिक कारण भी होते हैं. व्यक्ति का पालन पोषण किस माहौल में हुआ है, उसे कैसी शिक्षा मिली है, यह सब काफी महत्वपूर्ण होता है. हिंसक वीडियो गेम और फिल्म देखने वाले बच्चों में हिंसा की भावना जल्दी विकसित होती है. इसलिए माता-पिता को ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे ऐसी फिल्में या वीडियो गेम न देखें जिनमें गलत और हिंसा करने वालों को भी हीरो के रूप में प्रस्तुत किया जाता है.

नई दिल्ली: असहनशीलता और क्षणिक गुस्से के कारण देश की राजधानी दिल्ली अब चाकूबाजी और हत्या की राजधानी बनती जा रही है. राजधानी दिल्ली में पिछले दो माह में चाकूबाजी की घटनाओं में कई लोगों की जान तो गई ही है. इससे लोगों में दिल्ली की छवि भी खराब हुई है. इसके अलावा चाकूबाजी की कुछ घटनाओं पर राजनीति भी हो रही है. चाकू मारने वाला कौन है और मरने वाला किस धर्म से है, इस लेखा-जोखा के साथ राजनीतिक दल बयानबाजी करते रहे और वारदातें होती रहीं. लेकिन इसका सबसे ज्यादा नुकसान उन परिवारों को हुआ जिन्होंने इन वारदातों में अपनों को खोया है.

असहनशीलता और गुस्सा सबसे बड़ा कारण: दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड डीसीपी एवं एडवोकेट एलएन राव ने बताया कि आजकल लोगों में असहनशीलता बढ़ती जा रही है. छोटी-छोटी बात पर लोगों में इतना गुस्सा आ जाता है कि वह एक दूसरे की हत्या तक करने पर उतारू हो जाते हैं. सबसे दुखद बात तो यह है कि ऐसा होते हुए देखकर भी लोग अनदेखा करते हैं. राजधानी दिल्ली में ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं, जिसमें यदि वारदात के वक्त राहगीरों ने या आसपास के लोगों ने हस्तक्षेप किया होता तो वारदात होने से बचाया जा सकता था. एलएन राव ने बताया कि चाकूबाजी की घटनाएं अधिक होने का कारण यह है कि चाकू आसानी से उपलब्ध होता है. सब्जी की दुकान से लेकर घर के किचन तक और छोटी मोटी दुकानों तक पर यह मिल जाता है और क्षणिक गुस्से में भी लोग चाकूबाजी कर देते हैं.

दिल्ली में बीते दिनों चाकूबाजी की घटनाएं
दिल्ली में बीते दिनों चाकूबाजी की घटनाएं

सावधानी से रोकी जा सकती हैं वारदातें: दिल्ली पुलिस के विशेष आयुक्त पद से सेवानिवृत्त मुकेश कुमार मीणा ने बताया कि चाकूबाजी की घटनाएं बहुत आम हो गई हैं. इनमें बहुत सी घटनाएं त्वरित लड़ाई-झगड़े के दौरान होती हैं. वहीं, कुछ घटनाएं ऐसी होती है, जिसमें साजिश के तहत पहले से ही आरोपी पूरी तैयारी के साथ चाकू लेकर आते हैं और वारदात करते हैं. मुकेश मीणा ने बताया कि हर घटना पुलिस नहीं रोक सकती है. ऐसी घटनाओं से बचने के लिए बच्चों को शुरू से ही सहनशीलता और एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव की शिक्षा देना होगा. परिवारों में बड़े बुजुर्ग इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

दिल्ली में बीते दिनों चाकूबाजी की घटनाएं
दिल्ली में बीते दिनों चाकूबाजी की घटनाएं
पुराने अपराधियों पर निगाह रखी जाए तो रुकेंगी वारदात: एलएन राव ने बताया कि पुलिस अगर कुछ सावधानी बरते तो ऐसी घटनाओं पर कुछ हद तक लगाम लग सकती है. पुलिस को चाहिए कि वह ऐसे लोगों पर निगाह रखे जो लोग पहले आपराधिक वारदात में शामिल हो चुके हैं. ऐसे अपराधी जो बार-बार अपराध करते हैं और जेल जा चुके हैं, उन पर भी पुलिस को नजर रखना चाहिए. वहीं, अपराधिक मामलों की सुनवाई तेज होनी चाहिए क्योंकि यदि पीड़ित को न्याय मिलने में बहुत लंबा समय लग गया तो वह फैसला नजीर नहीं बन पाता है. अपराधी व्यक्ति को सजा मिलती है तो अन्य लोगों को भी इस बात का सबक मिलता है कि अपराध करेंगे तो कानून उन्हें सजा जरूर देगा. इससे लोगों के बीच कानून का भय भी बना रहता है.

साइकोपैथिक पर्सनालिटी की पहचान करना जरूरी: साइकोलॉजिस्ट पल्लवी जोशी ने बताया कि कुछ लोग ऐसे होते हैं जो बार-बार और आदतन अपराध करते हैं. उन्हें अपने कृत्य पर कोई पछतावा नहीं होता है. पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है. जेल से आने के बाद फिर वह अपराध करना शुरू कर देते हैं. ऐसे लोगों को साइकोपैथिक पर्सनालिटी कहा जाता है. अपराध करने वाले ऐसे लोगों पर सख्त कानूनी कार्रवाई हो और समय पर सजा मिले तो सुधार हो सकता है.

समाज में हर व्यक्ति को इस बात का एहसास होना चाहिए कि अपराध करेंगे तो सजा जरूर मिलेगी. ऐसे अपराधिक वारदातों के पीछे सामाजिक कारण भी होते हैं. व्यक्ति का पालन पोषण किस माहौल में हुआ है, उसे कैसी शिक्षा मिली है, यह सब काफी महत्वपूर्ण होता है. हिंसक वीडियो गेम और फिल्म देखने वाले बच्चों में हिंसा की भावना जल्दी विकसित होती है. इसलिए माता-पिता को ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे ऐसी फिल्में या वीडियो गेम न देखें जिनमें गलत और हिंसा करने वालों को भी हीरो के रूप में प्रस्तुत किया जाता है.

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