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हाथ नहीं तो क्या पैर तो हैं... जिंदगी की जंग में ऐसे आगे बढ़ रहे गाजियाबाद के संजय

Interesting story of Sanjay: गाजियाबाद के संजय की पांच साल की उम्र में ट्रेन से एक्सीडेंट होने पर अपने दोनों हाथ खो दिए थे. उसके बाद भी वह बिना संसाधनों के आगे बढ़ते हैं और कामयाब होते हैं.

हाथ नहीं तो क्या पैर तो हैं...
हाथ नहीं तो क्या पैर तो हैं...
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Dec 27, 2023, 4:48 PM IST

Updated : Dec 27, 2023, 5:56 PM IST

हाथ नहीं तो क्या पैर तो हैं...

नई दिल्ली/गाजियाबाद: एक कहावत है मंजिल उन्हें मिलती है जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता हौसले से उड़ान होती है. यह कथन गाजियाबाद के एक शख्स पर फीट बैठता है. दरअसल, एक इंसान जिसने बचपन में ही अपने दोनों हाथ खो दिए. हाथ ना होने से जिंदगी मुश्किल हो गई थी. लेकिन हौसला, लगन और मेहनत से अपने पैरों को ही हाथ बनाकर अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर रहा है.

जिला एमएमजी अस्पताल के सामने लकड़ी का छोटा सा खोखा रखा हुआ है. ये छोटा सा खोखा संजय के लिए सब कुछ है. संजय की पांच साल की उम्र रही होगी जब उन्होंने ट्रेन से एक्सीडेंट होने पर अपने दोनों हाथ खो दिए थे. हालांकि इस घटना के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी. स्कूल जाते रहे. पैर से ही लिखा करते थे. स्कूल में उनकी क्लास में पढ़ने वाले बच्चे उनका मजाक उड़ाया करते थे. पांचवीं कक्षा में पढ़ाई छोड़ दी.

इसके बाद वह अपने बड़े भाई की मैकेनिक की दुकान पर जाकर बैठने लगे. वहां थोड़े वक्त में थोड़ा बहुत काम सीखा, लेकिन काम कैसे किया जाए यह एक बड़ी मुसीबत थी. फिर पैरों से ही औजार पकड़ने शुरू किए. जो औजार बड़े भाई हाथ से पकड़ते थे. उन सभी औजारों को संजय पैर से पकड़ कर काम करना सीख लिया. जिंदगी मुश्किल थी फिर भी उन्होंने अपना काम करने की सोची.

''जितना पंचर बनाने में एक सामान्य आदमी को समय लगता है उतनी ही समय में मैं भी लेता हूं. 20 सालों से इसी खोखे पर काम कर रहा हुूं. मैं आज अपने पैरों पर खड़ा हूं और अपना परिवार संभाल रहा हूं."

संजय

संजय बताते हैं कि उन्होंने काम सीखने के बाद एमएमजी अस्पताल के सामने लकड़ी का छोटा सा खोखा रखा. काम शुरू कर दिया, लेकिन काम शुरू करने के बाद सबसे बड़ी चुनौती थी कि ग्राहकों को कैसे यह भरोसा दिलाया जाए कि उनका काम ठीक से करूंगा. शुरुआत में परेशानी आई फिर धीरे-धीरे ग्राहकों को भी भरोसा होने लगा. हमेशा यही कोशिश की कि ग्राहक को ऐसा एहसास ना हो कि मेरे हाथ नहीं है तो काम ठीक से नहीं हो सकता.

हाथ नहीं तो क्या पैर तो हैं...

नई दिल्ली/गाजियाबाद: एक कहावत है मंजिल उन्हें मिलती है जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता हौसले से उड़ान होती है. यह कथन गाजियाबाद के एक शख्स पर फीट बैठता है. दरअसल, एक इंसान जिसने बचपन में ही अपने दोनों हाथ खो दिए. हाथ ना होने से जिंदगी मुश्किल हो गई थी. लेकिन हौसला, लगन और मेहनत से अपने पैरों को ही हाथ बनाकर अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर रहा है.

जिला एमएमजी अस्पताल के सामने लकड़ी का छोटा सा खोखा रखा हुआ है. ये छोटा सा खोखा संजय के लिए सब कुछ है. संजय की पांच साल की उम्र रही होगी जब उन्होंने ट्रेन से एक्सीडेंट होने पर अपने दोनों हाथ खो दिए थे. हालांकि इस घटना के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी. स्कूल जाते रहे. पैर से ही लिखा करते थे. स्कूल में उनकी क्लास में पढ़ने वाले बच्चे उनका मजाक उड़ाया करते थे. पांचवीं कक्षा में पढ़ाई छोड़ दी.

इसके बाद वह अपने बड़े भाई की मैकेनिक की दुकान पर जाकर बैठने लगे. वहां थोड़े वक्त में थोड़ा बहुत काम सीखा, लेकिन काम कैसे किया जाए यह एक बड़ी मुसीबत थी. फिर पैरों से ही औजार पकड़ने शुरू किए. जो औजार बड़े भाई हाथ से पकड़ते थे. उन सभी औजारों को संजय पैर से पकड़ कर काम करना सीख लिया. जिंदगी मुश्किल थी फिर भी उन्होंने अपना काम करने की सोची.

''जितना पंचर बनाने में एक सामान्य आदमी को समय लगता है उतनी ही समय में मैं भी लेता हूं. 20 सालों से इसी खोखे पर काम कर रहा हुूं. मैं आज अपने पैरों पर खड़ा हूं और अपना परिवार संभाल रहा हूं."

संजय

संजय बताते हैं कि उन्होंने काम सीखने के बाद एमएमजी अस्पताल के सामने लकड़ी का छोटा सा खोखा रखा. काम शुरू कर दिया, लेकिन काम शुरू करने के बाद सबसे बड़ी चुनौती थी कि ग्राहकों को कैसे यह भरोसा दिलाया जाए कि उनका काम ठीक से करूंगा. शुरुआत में परेशानी आई फिर धीरे-धीरे ग्राहकों को भी भरोसा होने लगा. हमेशा यही कोशिश की कि ग्राहक को ऐसा एहसास ना हो कि मेरे हाथ नहीं है तो काम ठीक से नहीं हो सकता.

Last Updated : Dec 27, 2023, 5:56 PM IST
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