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बढ़ती आबादी से स्वास्थ्य के क्षेत्र में और बढ़ेंगी चुनौतियां, पहले से ही मानकों के अनुरूप नहीं है स्वास्थ्य ढांचा

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Published : Apr 25, 2023, 8:27 PM IST

भारत आबादी के मामले में चीन को पछाड़ कर पहले स्थान पर पहुंच गया है. वहीं अब बढ़ती आबादी का बोझ भारत के स्वास्थ्य ढांचे पर पड़ रहा है. आबादी के बढ़ते दबाव के चलते मौजूदा स्वास्थ्य सुविधाएं कम पड़ रही हैं.

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नई दिल्ली: दुनिया में भारत के आबादी के मामले में नंबर वन बनने के बाद कई छेत्रों में में चुनौतियां बढ़ने वाली है. इसमें से सबसे प्रमुख है स्वास्थ्य का क्षेत्र. विशेषज्ञों का कहना है कि हमारे देश का स्वास्थ्य ढांचा तो पहले से ही कमजोर है. बढ़ती हुई आबादी के कारण लगातार स्वास्थ्य ढांचे पर दबाव बढ़ता जा रहा है. अगर हम स्वास्थ्य ढांचे की बात करें तो देश की राजधानी दिल्ली में ही अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं, लेकिन आबादी के बढ़ते दबाव और देश भर से यहां इलाज के लिए आने वाले मरीजों के चलते ये सुविधाएं कम पढ़ जाती हैं.

हालांकि, दिल्ली सरकार लगातार दिल्ली के स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने और उसे विश्वस्तरीय बनाने को लेकर दावे करती आ रही है. अन्य राज्यों की तुलना में दिल्ली की सुविधाएं बेहतर तो हैं, लेकिन लगातार आबादी के बढ़ते दबाव के चलते यह सुविधाएं कम पड़ती जाती हैं. अगर सरकार किसी अस्पताल में मरीजों के लिए 500 बेड बढ़ाती है तो उससे पहले ही अस्पताल में चार हजार मरीज इलाज के लिए लाइन में लगे होते हैं.

दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में 24 घंटे इलाज के लिए मरीजों को भटकते हुए देखा जा सकता है. अभी सरकार जीडीपी का कुल तीन से चार प्रतिशत बजट ही स्वास्थ्य पर खर्च करती है. सरकार को सात प्रतिशत से अधिक बजट खर्च करना चाहिए. इतना बजट खर्च करने से स्वास्थ्य ढांचे में तेजी से बढ़ोत्तरी हो सकेगी. अगर हम दिल्ली की ही बात करें तो यहां की स्वास्थ्य सेवाएं भी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानकों पर खरी नहीं उतरती हैं.

WHO के मानकों पर नहीं खरा उतरा भारत: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष डॉ. शरद अग्रवाल का कहना है कि डब्ल्यूएचओ के मानक के अनुसार देश में एक हजार की आबादी पर आधुनिक चिकित्सा पद्धति का एक डॉक्टर होना चाहिए, लेकिन इस मामले में हम अभी बहुत पीछे हैं. डॉ. शरद अग्रवाल का कहना है कि आबादी का दबाव बढ़ना भी एक विषय है, लेकिन हमारे देश में अभी तक ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों तक स्वास्थ्य सुविधाएं अभी नहीं पहुंची हैं.

शहरों में भी पर्याप्त स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं. डॉ. शरद ने बताया कि देश में 70 प्रतिशत जनसंख्या को स्वास्थ्य सेवाएं निजी डॉक्टरों द्वारा उपलब्ध कराई जाती हैं. उन्होंने बताया कि सरकार स्वास्थ्य की नीतियां बनाने में आईएमए के सुझावों पर अमल नहीं करती है. इस वजह से स्वास्थ्य के क्षेत्र में तैयार की जा रही योजनाएं प्रभावी रूप से लागू नहीं हो पाती हैं.

नए डाक्टरों के तैयार करने में हो रही देरी: आईएमए अध्यक्ष ने कहा कि कोरोना काल की वजह से मेडिकल की परीक्षाएं समय से नहीं होने के कारण भी नए डाक्टरों के तैयार होने में भी देरी हुई है. रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण यूक्रेन में पढ़ाई कर रहे मेडिकल छात्रों की पढ़ाई भी भी बीच में छूट गई है. इनका भी अभी तक देश में आगे की पढ़ाई के लिए समायोजन नहीं हो पाया है.

वहीं, विदेश से एमबीबीएस की पढ़ाई करके लौटे दिल्ली के छात्रों की अभी तक इंटर्नशिप भी शुरू नहीं हो पाई है. इन सभी समस्याओं का समाधान न होने की वजह से भी डाक्टरों के कई बैच स्वास्थ्य सेवा में आने का इंतजार कर रहे हैं. इन सभी समस्याओं का समाधान होने के बाद ही स्वास्थ्य सेवा के ढ़ांचे में कुछ बढ़ोत्तरी होगी.

टीबी जैसी बीमारी को भी नियंत्रित नहीं कर पाया है भारत: मौलाना आजाद मेडिकल कालेज में कम्यूनिटी मेडिसिन की डायरेक्टर प्रोफेसर रहीं एवं कोविड इंडिया टास्क फोर्स की सदस्य डॉ. सुनीता गर्ग का कहना है कि आबादी बढ़ने से मरीज भी बढ़ेंगे. उन्होंने बताया कि विकसित देशों में सिर्फ गैर संक्रामक बीमारियों का खतरा है तो वहीं भारत में गैर संक्रामक और संक्रामक दोनों तरह की बीमारियों का खतरा है. अभी हम टीबी जैसी बीमारी को भी नियंत्रित नहीं कर पाए हैं, जो एक संक्रामक रोग ही है. ऐसे में बढ़ती आबादी स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर एक बड़ी चुनौती भी लेकर आ रही है.

इसके अलावा देश में गैर संक्रमक बीमारियों डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, कैंसर, हायपरटेंशन जैसी बीमारियां भी बढ़ रही हैं. कैंसर के इलाज के लिए तो देश में स्वास्थ्य ढ़ांचा अभी बहुत कम है. गिने चुने सरकारी अस्पतालों में ही रेडियोथेरेपी की सुविधा उपलब्ध है. देश भर से मरीज दिल्ली में रेडियोथेरेपी के लिए आते हैं, जिन्हें कई-कई महीने लंबी तारीख मिलती है.

दिल्ली राज्य कैंसर संस्थान के निदेशक डॉ. किशोर सिंह का कहना है कि आबादी अधिक होने से बुजुर्गों की संख्या भी बढ़ेगी और बुजुर्गों में ही अधिक बीमारियां होती हैं. एक उम्र के बाद लोग अपनी सेहत पर बहुत कम ही ध्यान दे पाते हैं. इसलिए बुजुर्गों को होने वाली बीमारियां जैसे डिमेंशिया, अस्थमा, हार्ट की बीमारी, मोटापा आदि बढ़ते हैं. इन बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए हेल्थी लाइफ स्टाइल रखना होगा. इसके लिए जागरूकता बढ़ानी होगी.

देश में कैंसर के इलाज को लेकर स्वास्थ्य सुविधाएं बहुत कम: डॉ. किशोर सिंह ने बताया कि देश में कैंसर के इलाज को लेकर सिर्फ अभी आठ राज्यों में ही मानक पूरे हुए हैं. इनमें दिल्ली भी शामिल है. उन्होंने बताया कि डब्ल्यूएचओ के मानक के अनुसार 10 लाख की आबादी पर एक कैंसर यूनिट होनी चाहिए. इस मानक को पूरा करने के लिए भी सरकार ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों के साथ बैठक करके प्लान तैयार करने के लिए कहा है.

डॉ. किशोर सिंह ने आगे बताया कि कैंसर की बीमारी की जांच इलाज के लिए दवाईयों की भी व्यवस्था है. लेकिन, मशीनों की भारी कमी है. ये धीरे-धीरे दूर हो जाएगी. उन्होंने बताया कि दिल्ली के लेडी हार्डिंग अस्पताल में भी कैंसर यूनिट स्थापित होने जा रही है. हाल ही में लोकनायक अस्पताल में भी कैंसर यूनिट शुरू हो चुकी है. इसी तरह अन्य राज्यों को भी स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ाने और उन तक आम आदमी की पहुंच बढ़ानी होगी.

दिल्ली में सात से आठ हजार लोगों पर एक डाक्टर: दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के कार्यकारी सदस्य डॉ. अवतार हंसा ने बताया कि अभी दिल्ली में सात से आठ हजार लोगों पर एक डाक्टर है, जो कि डब्ल्यूएचओ के मानक से काफी कम है. इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है. हमें देश की राजधानी से ही सभी मानकों को पूरा करने की शुरूआत करनी चाहिए. यहां के सरकारी अस्पतालों में देश कई राज्यों से मरीज इलाज के लिए आते हैं.

दिल्ली में प्रति हजार व्यक्तियों पर करीब 2.89 बेड: इंडियन मेडिकल कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. प्रेम अग्रवाल ने बताया कि दिल्ली में प्रति हजार व्यक्तियों पर करीब 2.89 बेड हैं, जबकि डब्ल्यूएचओ का मानक प्रति हजार लोगों पर पांच बेड का है. डॉ. प्रेम ने आगे कहा कि मतलब एक हजार लोगों पर तीन बेड का आंकड़ा भी दिल्ली पूरा नहीं करती है. इसलिए राजधानी में भी स्वास्थ्य ढ़ांचे को लेकर अभी काफी काम करने की जरूरत है, क्योंकि दिल्ली की आबादी दो करोड़ से भी अधिक है. ऊपर से दूसरे राज्यों के मरीजों का भी यहां दबाव रहता है.

दिल्ली सरकार अभी मार्च में विधानसभा में आर्थिक सर्वेक्षण पेश करते हुए बताया था कि दिल्ली में वर्ष 2013-14 में बेड की संख्या 43596 थी जो 2021-22 में बढ़कर 58960 हो गई है. दिल्ली सरकार अभी 11 नए अस्पताल भी बना रही है, जिससे बेड की संख्या छह हजार और बढ़ने की उम्मीद है.

आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति

सरकारी अस्पताल89
मेडिकल कॉलेज19
डिस्पेंसरी1621
मोहल्ला क्लिनिक508
मैटरनिटी होम128
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र48
पॉलीक्लिनिक44
प्राइवेट नर्सिंग होम1050

केंद्र, राज्य सरकार व निगम के कितने अस्पताल व क्लीनिक

एजेंसीसेंटरबेड की संख्या
केंद्र सरकार199544
दिल्ली सरकार4014244
एनडीएमसी02221
एमसीडी47 3625
AIIMS और अन्य053786
ऑटोनॉमस बॉडी
प्राइवेट
105027540

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नई दिल्ली: दुनिया में भारत के आबादी के मामले में नंबर वन बनने के बाद कई छेत्रों में में चुनौतियां बढ़ने वाली है. इसमें से सबसे प्रमुख है स्वास्थ्य का क्षेत्र. विशेषज्ञों का कहना है कि हमारे देश का स्वास्थ्य ढांचा तो पहले से ही कमजोर है. बढ़ती हुई आबादी के कारण लगातार स्वास्थ्य ढांचे पर दबाव बढ़ता जा रहा है. अगर हम स्वास्थ्य ढांचे की बात करें तो देश की राजधानी दिल्ली में ही अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं, लेकिन आबादी के बढ़ते दबाव और देश भर से यहां इलाज के लिए आने वाले मरीजों के चलते ये सुविधाएं कम पढ़ जाती हैं.

हालांकि, दिल्ली सरकार लगातार दिल्ली के स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने और उसे विश्वस्तरीय बनाने को लेकर दावे करती आ रही है. अन्य राज्यों की तुलना में दिल्ली की सुविधाएं बेहतर तो हैं, लेकिन लगातार आबादी के बढ़ते दबाव के चलते यह सुविधाएं कम पड़ती जाती हैं. अगर सरकार किसी अस्पताल में मरीजों के लिए 500 बेड बढ़ाती है तो उससे पहले ही अस्पताल में चार हजार मरीज इलाज के लिए लाइन में लगे होते हैं.

दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में 24 घंटे इलाज के लिए मरीजों को भटकते हुए देखा जा सकता है. अभी सरकार जीडीपी का कुल तीन से चार प्रतिशत बजट ही स्वास्थ्य पर खर्च करती है. सरकार को सात प्रतिशत से अधिक बजट खर्च करना चाहिए. इतना बजट खर्च करने से स्वास्थ्य ढांचे में तेजी से बढ़ोत्तरी हो सकेगी. अगर हम दिल्ली की ही बात करें तो यहां की स्वास्थ्य सेवाएं भी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानकों पर खरी नहीं उतरती हैं.

WHO के मानकों पर नहीं खरा उतरा भारत: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष डॉ. शरद अग्रवाल का कहना है कि डब्ल्यूएचओ के मानक के अनुसार देश में एक हजार की आबादी पर आधुनिक चिकित्सा पद्धति का एक डॉक्टर होना चाहिए, लेकिन इस मामले में हम अभी बहुत पीछे हैं. डॉ. शरद अग्रवाल का कहना है कि आबादी का दबाव बढ़ना भी एक विषय है, लेकिन हमारे देश में अभी तक ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों तक स्वास्थ्य सुविधाएं अभी नहीं पहुंची हैं.

शहरों में भी पर्याप्त स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं. डॉ. शरद ने बताया कि देश में 70 प्रतिशत जनसंख्या को स्वास्थ्य सेवाएं निजी डॉक्टरों द्वारा उपलब्ध कराई जाती हैं. उन्होंने बताया कि सरकार स्वास्थ्य की नीतियां बनाने में आईएमए के सुझावों पर अमल नहीं करती है. इस वजह से स्वास्थ्य के क्षेत्र में तैयार की जा रही योजनाएं प्रभावी रूप से लागू नहीं हो पाती हैं.

नए डाक्टरों के तैयार करने में हो रही देरी: आईएमए अध्यक्ष ने कहा कि कोरोना काल की वजह से मेडिकल की परीक्षाएं समय से नहीं होने के कारण भी नए डाक्टरों के तैयार होने में भी देरी हुई है. रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण यूक्रेन में पढ़ाई कर रहे मेडिकल छात्रों की पढ़ाई भी भी बीच में छूट गई है. इनका भी अभी तक देश में आगे की पढ़ाई के लिए समायोजन नहीं हो पाया है.

वहीं, विदेश से एमबीबीएस की पढ़ाई करके लौटे दिल्ली के छात्रों की अभी तक इंटर्नशिप भी शुरू नहीं हो पाई है. इन सभी समस्याओं का समाधान न होने की वजह से भी डाक्टरों के कई बैच स्वास्थ्य सेवा में आने का इंतजार कर रहे हैं. इन सभी समस्याओं का समाधान होने के बाद ही स्वास्थ्य सेवा के ढ़ांचे में कुछ बढ़ोत्तरी होगी.

टीबी जैसी बीमारी को भी नियंत्रित नहीं कर पाया है भारत: मौलाना आजाद मेडिकल कालेज में कम्यूनिटी मेडिसिन की डायरेक्टर प्रोफेसर रहीं एवं कोविड इंडिया टास्क फोर्स की सदस्य डॉ. सुनीता गर्ग का कहना है कि आबादी बढ़ने से मरीज भी बढ़ेंगे. उन्होंने बताया कि विकसित देशों में सिर्फ गैर संक्रामक बीमारियों का खतरा है तो वहीं भारत में गैर संक्रामक और संक्रामक दोनों तरह की बीमारियों का खतरा है. अभी हम टीबी जैसी बीमारी को भी नियंत्रित नहीं कर पाए हैं, जो एक संक्रामक रोग ही है. ऐसे में बढ़ती आबादी स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर एक बड़ी चुनौती भी लेकर आ रही है.

इसके अलावा देश में गैर संक्रमक बीमारियों डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, कैंसर, हायपरटेंशन जैसी बीमारियां भी बढ़ रही हैं. कैंसर के इलाज के लिए तो देश में स्वास्थ्य ढ़ांचा अभी बहुत कम है. गिने चुने सरकारी अस्पतालों में ही रेडियोथेरेपी की सुविधा उपलब्ध है. देश भर से मरीज दिल्ली में रेडियोथेरेपी के लिए आते हैं, जिन्हें कई-कई महीने लंबी तारीख मिलती है.

दिल्ली राज्य कैंसर संस्थान के निदेशक डॉ. किशोर सिंह का कहना है कि आबादी अधिक होने से बुजुर्गों की संख्या भी बढ़ेगी और बुजुर्गों में ही अधिक बीमारियां होती हैं. एक उम्र के बाद लोग अपनी सेहत पर बहुत कम ही ध्यान दे पाते हैं. इसलिए बुजुर्गों को होने वाली बीमारियां जैसे डिमेंशिया, अस्थमा, हार्ट की बीमारी, मोटापा आदि बढ़ते हैं. इन बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए हेल्थी लाइफ स्टाइल रखना होगा. इसके लिए जागरूकता बढ़ानी होगी.

देश में कैंसर के इलाज को लेकर स्वास्थ्य सुविधाएं बहुत कम: डॉ. किशोर सिंह ने बताया कि देश में कैंसर के इलाज को लेकर सिर्फ अभी आठ राज्यों में ही मानक पूरे हुए हैं. इनमें दिल्ली भी शामिल है. उन्होंने बताया कि डब्ल्यूएचओ के मानक के अनुसार 10 लाख की आबादी पर एक कैंसर यूनिट होनी चाहिए. इस मानक को पूरा करने के लिए भी सरकार ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों के साथ बैठक करके प्लान तैयार करने के लिए कहा है.

डॉ. किशोर सिंह ने आगे बताया कि कैंसर की बीमारी की जांच इलाज के लिए दवाईयों की भी व्यवस्था है. लेकिन, मशीनों की भारी कमी है. ये धीरे-धीरे दूर हो जाएगी. उन्होंने बताया कि दिल्ली के लेडी हार्डिंग अस्पताल में भी कैंसर यूनिट स्थापित होने जा रही है. हाल ही में लोकनायक अस्पताल में भी कैंसर यूनिट शुरू हो चुकी है. इसी तरह अन्य राज्यों को भी स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ाने और उन तक आम आदमी की पहुंच बढ़ानी होगी.

दिल्ली में सात से आठ हजार लोगों पर एक डाक्टर: दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के कार्यकारी सदस्य डॉ. अवतार हंसा ने बताया कि अभी दिल्ली में सात से आठ हजार लोगों पर एक डाक्टर है, जो कि डब्ल्यूएचओ के मानक से काफी कम है. इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है. हमें देश की राजधानी से ही सभी मानकों को पूरा करने की शुरूआत करनी चाहिए. यहां के सरकारी अस्पतालों में देश कई राज्यों से मरीज इलाज के लिए आते हैं.

दिल्ली में प्रति हजार व्यक्तियों पर करीब 2.89 बेड: इंडियन मेडिकल कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. प्रेम अग्रवाल ने बताया कि दिल्ली में प्रति हजार व्यक्तियों पर करीब 2.89 बेड हैं, जबकि डब्ल्यूएचओ का मानक प्रति हजार लोगों पर पांच बेड का है. डॉ. प्रेम ने आगे कहा कि मतलब एक हजार लोगों पर तीन बेड का आंकड़ा भी दिल्ली पूरा नहीं करती है. इसलिए राजधानी में भी स्वास्थ्य ढ़ांचे को लेकर अभी काफी काम करने की जरूरत है, क्योंकि दिल्ली की आबादी दो करोड़ से भी अधिक है. ऊपर से दूसरे राज्यों के मरीजों का भी यहां दबाव रहता है.

दिल्ली सरकार अभी मार्च में विधानसभा में आर्थिक सर्वेक्षण पेश करते हुए बताया था कि दिल्ली में वर्ष 2013-14 में बेड की संख्या 43596 थी जो 2021-22 में बढ़कर 58960 हो गई है. दिल्ली सरकार अभी 11 नए अस्पताल भी बना रही है, जिससे बेड की संख्या छह हजार और बढ़ने की उम्मीद है.

आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति

सरकारी अस्पताल89
मेडिकल कॉलेज19
डिस्पेंसरी1621
मोहल्ला क्लिनिक508
मैटरनिटी होम128
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र48
पॉलीक्लिनिक44
प्राइवेट नर्सिंग होम1050

केंद्र, राज्य सरकार व निगम के कितने अस्पताल व क्लीनिक

एजेंसीसेंटरबेड की संख्या
केंद्र सरकार199544
दिल्ली सरकार4014244
एनडीएमसी02221
एमसीडी47 3625
AIIMS और अन्य053786
ऑटोनॉमस बॉडी
प्राइवेट
105027540

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