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समान नागरिक संहिता लागू करने की याचिका पर HC ने केंद्र से मांगा हलफनामा

दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि समान नागरिक संहिता का मतलब क्या है. हर धर्म के लिए शादियों के समान कानून की जरूरत क्यों है.

UCC मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में हुई सुनवाई etv bharat
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Published : Aug 27, 2019, 8:42 PM IST

नई दिल्ली: देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है. हाईकोर्ट ने 4 नवंबर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया.

कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि समान नागरिक संहिता का मतलब क्या है. हर धर्म के लिए शादियों के समान कानून की जरूरत क्यों है. कोर्ट ने पूछा कि जब सभी लोग अलग-अलग हैं, तो उनमें समानता कैसे हो सकती है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय से पूछा कि इन सवालों के जवाब कोर्ट को बताइए.

एक याचिका वकील अभिनव बेरी ने दायर किया है. याचिका में पूरे देश में समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए केंद्र सरकार और विधि मंत्रालय को एक न्यायिक आयोग गठित करने का दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की गई है.

'समान नागरिक संहिता मामले में कार्यपालिका गंभीर नहीं'
याचिका में कहा गया है कि संविधान में दी गई लैंगिक न्याय और समानता, महिलाओं की गरिमा का अधिकार तब तक नहीं दिया जा सकता है, जब तक संविधान की धारा 44 को लागू नहीं किया जाता. धारा 44 का उद्देश्य समान नागरिक संहिता को लागू करना था. याचिका में कहा गया है कि समान नागरिक संहिता भाईचारा, एकता और राष्ट्रीय अखंडता बनाये रखने के लिए जरुरी है. याचिका में कहा गया है कि समान नागरिक संहिता को लागू करने में कार्यपालिका गंभीर नहीं है.

'देश में समान आचार संहिता जरूरी'
दूसरी याचिका बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर किया है. अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था. अश्विनी उपाध्याय की याचिका में कहा गया है कि संविधान की धारा 14, 15 और 44 की भावना को ध्यान में रखते हुए देश के सभी लोगों पर समान आचार संहिता लागू करने के लिए दिशानिर्देश दिया जाए. याचिका में कहा गया है कि देश की एकता, अखंडता और भाईचारे के लिए समान आचार संहिता जरूरी है.

'गोवा में समान कानून है'
याचिका में कहा गया है कि सभी धर्मों और समुदायों की अच्छी परंपराओं को मिलाकर देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान आचार संहिता बनाने के लिए दिशानिर्देश जारी किया जाए. याचिका में कहा गया है कि गोवा में कॉमन सिविल कोड 1965 से लागू है. ये कोड गोवा के हर नागरिक पर लागू होता है. गोवा ही ऐसा राज्य है जहां एक समान कानून है.

याचिका में कहा गया है कि कोर्ट विधि मंत्रालय को युनिफॉर्म सिविल कोड का ड्राफ्ट संविधान की धारा 44 के तहत तैयार करने का निर्देश दें. वो ड्राफ्ट लोगों का फीडबैक लेने के लिए वेबसाइट पर डाली जाए.

नई दिल्ली: देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है. हाईकोर्ट ने 4 नवंबर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया.

कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि समान नागरिक संहिता का मतलब क्या है. हर धर्म के लिए शादियों के समान कानून की जरूरत क्यों है. कोर्ट ने पूछा कि जब सभी लोग अलग-अलग हैं, तो उनमें समानता कैसे हो सकती है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय से पूछा कि इन सवालों के जवाब कोर्ट को बताइए.

एक याचिका वकील अभिनव बेरी ने दायर किया है. याचिका में पूरे देश में समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए केंद्र सरकार और विधि मंत्रालय को एक न्यायिक आयोग गठित करने का दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की गई है.

'समान नागरिक संहिता मामले में कार्यपालिका गंभीर नहीं'
याचिका में कहा गया है कि संविधान में दी गई लैंगिक न्याय और समानता, महिलाओं की गरिमा का अधिकार तब तक नहीं दिया जा सकता है, जब तक संविधान की धारा 44 को लागू नहीं किया जाता. धारा 44 का उद्देश्य समान नागरिक संहिता को लागू करना था. याचिका में कहा गया है कि समान नागरिक संहिता भाईचारा, एकता और राष्ट्रीय अखंडता बनाये रखने के लिए जरुरी है. याचिका में कहा गया है कि समान नागरिक संहिता को लागू करने में कार्यपालिका गंभीर नहीं है.

'देश में समान आचार संहिता जरूरी'
दूसरी याचिका बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर किया है. अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था. अश्विनी उपाध्याय की याचिका में कहा गया है कि संविधान की धारा 14, 15 और 44 की भावना को ध्यान में रखते हुए देश के सभी लोगों पर समान आचार संहिता लागू करने के लिए दिशानिर्देश दिया जाए. याचिका में कहा गया है कि देश की एकता, अखंडता और भाईचारे के लिए समान आचार संहिता जरूरी है.

'गोवा में समान कानून है'
याचिका में कहा गया है कि सभी धर्मों और समुदायों की अच्छी परंपराओं को मिलाकर देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान आचार संहिता बनाने के लिए दिशानिर्देश जारी किया जाए. याचिका में कहा गया है कि गोवा में कॉमन सिविल कोड 1965 से लागू है. ये कोड गोवा के हर नागरिक पर लागू होता है. गोवा ही ऐसा राज्य है जहां एक समान कानून है.

याचिका में कहा गया है कि कोर्ट विधि मंत्रालय को युनिफॉर्म सिविल कोड का ड्राफ्ट संविधान की धारा 44 के तहत तैयार करने का निर्देश दें. वो ड्राफ्ट लोगों का फीडबैक लेने के लिए वेबसाइट पर डाली जाए.

Intro:नई दिल्ली । देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की मांग करनेवाली याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने 4 नवंबर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।



Body:कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि समान नागरिक संहिता का मतलब क्या है। हर धर्म के लिए शादियों के समान कानून की जरुरत क्यों है। कोर्ट ने पूछा कि जब सभी लोग अलग-अलग हैं तो उनमें समानता कैसे हो सकती है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय से पूछा कि इन सवालों के जवाब कोर्ट को बताइए।
एक याचिका वकील अभिनव बेरी ने दायर किया है। याचिका में पूरे देश में समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए केंद्र सरकार और विधि मंत्रालय को एक न्यायिक आयोग गठित करने का दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की गई है।
याचिका में कहा गया है कि संविधान में दी गई लैंगिक न्याय और समानता, महिलाओं की गरिमा का अधिकार तब तक नहीं दिया जा सकता है जब तक संविधान की धारा 44 को लागू नहीं किया जाता। धारा 44 का उद्देश्य समान नागरिक संहिता को लागू करना था। याचिका में कहा गया है कि समान नागरिक संहिता भाईचारा, एकता और राष्ट्रीय अखंडता बनाये रखने के लिए जरुरी है। याचिका में कहा गया है कि समान नागरिक संहिता को लागू करने में कार्यपालिका गंभीर नहीं है।
दूसरी याचिका बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर किया है। अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था।अश्विनी उपाध्याय की याचिका में कहा गया है कि संविधान की धारा 14, 15 और 44 की भावना को ध्यान में रखते हुए देश के सभी लोगों पर समान आचार संहिता लागू करने के लिए दिशानिर्देश दिया जाए। याचिका में कहा गया है कि देश की एकता, अखंडता और भाईचारे के लिए समान आचार संहिता जरुरी है।
याचिका में कहा गया है कि सभी धर्मों और समुदायों की अच्छी परंपराओं को मिलाकर देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान आचार संहिता बनाने के लिए दिशानिर्देश जारी किया जाए। याचिका में कहा गया है कि गोवा में कॉमन सिविल कोड 1965 से लागू है । ये कोड गोवा के हर नागरिक पर लागू होता है। गोवा ही ऐसा राज्य है जहां एक समान कानून है।



Conclusion:याचिका में कहा गया है कि कोर्ट विधि मंत्रालय को युनिफॉर्म सिविल कोड का ड्राफ्ट संविधान की धारा 44 के तहत तैयार करने का निर्देश दे। वो ड्राफ्ट लोगों का फीडबैक लेने के लिए वेबसाइट पर डाली जाए।
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