नई दिल्ली: हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार और दिल्ली के नगर निकायों को निर्देश दिया है कि वे ये बताएं कि दिल्ली में भूकंपरोधी भवनों के निर्माण के लिए क्या कदम उठाए गए हैं. चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच ने दिल्ली सरकार और नगर निकायों से ये भी पूछा है कि भूकंपरोधी दिशानिर्देश का पालन न करनेवाले भवनों के खिलाफ क्या कार्रवाई की है.
पिछले 18 जून को कोर्ट ने दिल्ली सरकार और सिविक एजेंसियों पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि तुरन्त एक्शन प्लान पर काम करें. कोर्ट ने दिल्ली सरकार और सिविक एजेंसियों को निर्देश दिया कि वे अपने-अपने इलाकों में भूकंप के मद्देनजर इमारतों पर काम करें और जरूरी कदम उठाएं.
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा था कि भूकंप किसी का इंतजार नही करता, वो आ जाता है. पिछले दो महीने में कई बार भूकम्प आये हैं. इसके मद्देनजर बिना समय नष्ट करे राज्य सरकार समेत सभी सिविक एजेंसी अपना अपना काम करें.
पिछले 9 जून को हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार समेत शहर की सभी सिविक अथॉरिटीज से पूछा था कि उन्होंने भूकंप जैसी स्थिति से निपटने के लिए क्या योजना बनाई है और उसे कैसे लागू करेंगे.
12 अप्रैल से 4 जून के बीच दिल्ली में 11 बार भूकंप आया
कोर्ट ने दिल्ली सरकार के सचिव, सभी निगमों के आयुक्त, दिल्ली कैंटोंमेंट बोर्ड और डीडीए के वाइस चेयरमैन को नोटिस जारी करते हुए उन्हें निर्देश दिया था कि वे अपने एक्शन प्लान और सावधानियों के बारे में लोगों को जागरूक करें. याचिका अर्पित भार्गव ने दायर किया है. याचिका में मांग की गई है कि दिल्ली में भविष्य में अगर कोई बड़ा भूकंप होता है तो वे क्या कदम उठाएंगे.
याचिका में कहा गया है कि पिछले 12 अप्रैल से 4 जून के बीच दिल्ली में 11 बार भूकंप आ चुके हैं. विशेषज्ञों का अनुमान है कि दिल्ली में कोई बड़ा भूकंप कभी भी आ सकता है. आईआईटी और दिल्ली की अथॉरिटीज के कई विशेषज्ञों ने मीडिया में कहा है कि बिल्डर और आर्किटेक्ट ने सांठगांठ कर भूकंप के खतरों को अनदेखा किया है. वे बिल्डिंग कोड और दूसरे सुरक्षा प्रावधानों को भी बदल देते हैं. याचिका में कोर्ट से इस मामले में दखल देने की मांग की गई है.
कोरोना से ज्यादा मौत भूकंप आने पर होगी
याचिका में कहा गया है कि कोरोना से उतनी मौत नहीं होगी, जितनी बड़े भूकंप आने में होगी. दिल्ली में सत्रह हजार अनाधिकृत कालोनियां हैं जिसमें करीब पचास लाख लोग रहते हैं. याचिका में 26 अगस्त 2015 को कोर्ट के उस आदेश का उल्लेख किया गया है. जिसमें कहा गया है कि भूकंप के संभावित क्षेत्र में स्थिति दिल्ली के दस से पन्द्रह फीसदी भवन ही बिल्डिंग कोड का पालन करते हैं.