नई दिल्ली: सनातन धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व बताया गया है. मार्गशीर्ष मास का पहला प्रदोष व्रत 10 दिसंबर 2023 को पड़ रहा है. रविवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को रवि प्रदोष व्रत कहते हैं. रवि प्रदोष व्रत को लेकर मान्यता है कि इस दिन सच्चे मन से पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. रवि प्रदोष व्रत के दिन उपवास रखने और भगवान शिव की मां पार्वती के साथ पूजा अर्चना करने का विधान है.
गाजियाबाद स्थित शिव शंकर ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र के आचार्य शिव कुमार शर्मा के मुताबिक, रविवार को पड़ने वाली त्रयोदशी को रवि प्रदोष कहते हैं. रवि प्रदोष व्रत धार्मिक दृष्टि से बेहद महत्त्वपूर्ण माना जाता है. रवि प्रदोष व्रत करने से आर्थिक संपन्नता और समृद्धि की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की सच्चे मन से आराधना करने से सभी प्रकार के दुखों और पापों से मुक्ति मिलती है. साथ ही अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है. इस दिन शिव मंत्र की जाप करने से अनेक कष्ट दूर होते हैं.
शिव मंत्र इस प्रकार है
श्री सांबसदाशिवाय नम:
श्री रुद्राय नम:
ओम पार्वतीपतये नम:
ओम नमो नीलकण्ठाय नम:
शुभ मुहूर्त
मार्गशीर्ष मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि प्रारंभ:10 दिसंबर सुबह 07:13 से शुरू.
मार्गशीर्ष मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि समाप्त: 11 दिसंबर सुबह 07:10 तक
प्रदोष व्रत की पूजा का समय: शाम 05:24 से रात 08.08 मिनट तक
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आचार्य शिव कुमार शर्मा बताते हैं कि भगवान शिव का नाम आशुतोष है. आशुतोष का अर्थ है शीघ्र प्रसन्न होने वाले. थोड़े से प्रयास से भगवान शिव को प्रसन्न कर सकते हैं. रवि प्रदोष के व्रत के दौरान कुछ सावधानी बरतनी बेहद अहम है, क्योंकि भगवान शिव लगन, निष्ठा और सत्यता को ग्रहण करते हैं. जो व्यक्ति निश्चल होता है. श्रद्धा के साथ प्रदोष का व्रत रखता है. उसके व्रत फलीभूत होते हैं.
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