नई दिल्ली: दिल्ली वक्फ बोर्ड पुरानी दिल्ली की ऐतिहासिक फतेहपुरी मस्जिद का कायाकल्प करने जा रहा है. दरअसल शाही फतेहपुरी मस्जिद में पिछले काफी समय से रिनोवेशन नहीं हुआ, जिसके चलते इसका बहुत सा हिस्सा जर्जर हालत में है. दिल्ली वक्फ बोर्ड ने फतेहपुरी मस्जिद का रेनोवेशन कराए जाने का ऐलान किया है.
दिल्ली वक्फ बोर्ड के सदस्य हिमाल अख्तर ने बताया कि बोर्ड चेयरमैन ने पिछले दिनों ही फतेहपुरी मस्जिद का निरीक्षण किया था. विचार-विमर्श के बाद आदेश दिया है कि मस्जिद के रिनोवेशन काम को जल्द से जल्द शुरू किया जाए.
374 साल पुरानी मस्जिद
हिमाल अख्तर ने कहा-
मस्जिद फतेहपुरी को बने 374 साल हो गए हैं. ऐसा लगता है तब से अब तक इसका रिनोवेशन नहीं हुआ है. न तो सरकार ने इस तरफ ध्यान दिया और न ही पहले के बोर्ड ही इस तरफ कोई तवज्जो दे पाए. हमने जब मस्जिद जाकर देखा तो बहुत सारी चीजों की हालत खस्ता मिली. इसी को ध्यान में रखते हुए बोर्ड की तरफ से एक टीम बनाई गई है, जिसमें इंजीनियर भी शामिल हैं.
'जल्द शुरू होगा काम'
हिमाल अख्तर ने बताया कि इस टीम ने मस्जिद जाकर उसका निरीक्षण कर लिया है. जल्द ही रिपोर्ट बनाकर बोर्ड चेयरमैन के समक्ष पेश कर देंगे. उसके बाद टेंडर प्रक्रिया के बाद काम शुरू कर दिया जाएगा. उन्होंने बताया कि हम फतेहपुरी मस्जिद को पूरी तरह से रिपेयर कराएंगे.
मस्जिद को लेकर गंभीर हैं वक्फ बोर्ड चेयरमैन
बोर्ड के सदस्य हिमाल अख्तर ने बताया कि मस्जिद फतेहपुरी को लेकर बोर्ड चेयरमैन अमानतुल्लाह खान बेहद गंभीर हैं. वो पहले निरीक्षण करते हैं उसके बाद ही आगे कोई कदम उठाते हैं. उन्होंने खुद मस्जिद का दौरा किया और वहां के हालात को देखकर तत्काल एक कमेटी का गठन कर दिया.
फतेहपुरी मस्जिद का इतिहास
फतेहपुरी मस्जिद चांदनी चौक की पुरानी गली के पश्चिमी छोर पर मौजूद है. इसका निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां की पत्नी फतेहपुरी बेगम ने 1650 में करवाया था. क्योंकि फतेहपुरी बेगम फतेहपुर से थी ऐसे में इस मस्जिद का नाम मस्जिद फतेहपुरी पड़ गया.
ताजमहल परिसर में बनी मस्जिद भी इन्हीं बेगम के नाम पर है. लाल पत्थरों से बनी ये मस्जिद मुगल वास्तुकला का एक बेहतरीन नमूना है. मस्जिद के दोनों और लाल पत्थर से बने स्तंभों की कतारें हैं और एक हौज (कुंड) भी मौजूद है जोकि सफेद संगमरमर से बनाया गया है.
अंग्रेजों ने कर दिया था नीलाम
अंग्रेजों ने इस मस्जिद को 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद नीलाम कर दिया था, जिसे राय लाला चुन्नीमल ने मात्र ₹19000 में खरीद लिया था. इनके वंशज आज भी चांदनी चौक की चुन्नामल हवेली में रहते हैं, जिन्होंने इस मस्जिद को संभाले रखा था. बाद में 1877 में सरकार ने इसे 4 गांवों के बदले में वापस अधिकृत कर मुसलमानों को दे दिया.
'ठीक से नहीं हुआ रखरखाव'
मस्जिद के रखरखाव की व्यवस्था ठीक ढंग से ना होने के कारण मस्जिद का बहुत सा हिस्सा जर्जर हालत में पहुंच गया है. इसी को ध्यान में रखते हुए दिल्ली वक्फ बोर्ड ने मस्जिद को रेनोवेट करने का निर्णय लिया है.