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मस्जिदों को तोड़ने पर दिल्ली हाईकोर्ट ने 3 अगस्त तक लगाई रोक, रेलवे ने जमीन पर किया है दावा

राजधानी दिल्ली में रेलवे के दो मस्जिदों के खिलाफ एक्शन पर दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को रोक लगा दी. अब मामले में अगली सुनवाई 3 अगस्त को होगी.

दिल्ली हाईकोर्ट
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Published : Jul 26, 2023, 7:01 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को रेलवे को निर्देश दिया कि वह अपनी जमीन से अनधिकृत संरचनाओं और अतिक्रमण को हटाने के लिए दो मस्जिदों पर चिपकाए गए नोटिस के अनुसार कोई कार्रवाई न करें. दिल्ली वक्फ बोर्ड की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह आदेश दिया है. याचिका में दावा किया गया है कि तिलक मार्ग पर रेलवे ब्रिज के पास मस्जिद तकिया बब्बर शाह और बाबर मार्ग पर मस्जिद बच्चू शाह अनधिकृत नहीं हैं. यह भूमि रेलवे की नहीं है. मामले की अगली सुनवाई 3 अगस्त को होगी.

सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि यह कैसा नोटिस है, जिसमें न तो किसी इमारत, न तारीख, न कुछ का जिक्र है. इसे किसी भी संरचना पर चिपकाया जा सकता था. कोर्ट ने टिप्पणी की, ऐसा प्रतीत होता है कि यह नोटिस कथित तौर पर रेलवे प्रशासन, उत्तर रेलवे, दिल्ली द्वारा जारी किया गया एक सामान्य नोटिस है, जो जनता से 15 दिनों के भीतर स्वेच्छा से रेलवे भूमि से मंदिरों/मस्जिदों/मजारों को हटाने का आह्वान करता है, अन्यथा उन्हें रेलवे प्रशासन द्वारा हटा दिया जाएगा.

कोर्ट ने आदेश दिया कि फिलहाल इन नोटिसों के आधार पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी. केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि वह इस मुद्दे पर "स्पष्ट निर्देश" लेंगे. दो मस्जिदें 123 असूचीबद्ध संपत्तियों का हिस्सा हैं, जिन्हें केंद्र ने याचिकाकर्ता से ले लिया है. याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील वजीह शफीक ने कहा कि 19 और 20 जुलाई को दशकों से मौजूद मस्जिदों पर नोटिस चिपकाए गए. जांच करने पर पता चला कि वे मंडल रेलवे प्रबंधक के कार्यालय से जारी किए गए हैं. उन्होंने कहा कि नोटिस में कोई फाइल नंबर, तारीख, हस्ताक्षर, जारी करने वाले व्यक्ति का नाम या पद नहीं है. रेलवे द्वारा कार्रवाई की आशंका जताते हुए शफीक ने अदालत से इस बीच अधिकारियों के "हाथ बांधने" का आग्रह किया.

याचिका में कहा गया है कि बंगाली मार्केट मस्जिद लगभग 250 साल और तिलक मार्ग मस्जिद 400 साल पुरानी है और उनकी दीवारों पर चिपकाए गए नोटिस रद्द किए जाने योग्य हैं. दोनों मस्जिदें सदियों से अस्तित्व में हैं. दोनों मस्जिदों के संबंध में गवर्नर जनरल इन काउंसिल के माध्यम से अपने एजेंट दिल्ली के मुख्य आयुक्त और सुन्नी मजलिस औकाफ के बीच 1945 के दो विधिवत पंजीकृत समझौते हैं, जो उन मस्जिदों के प्रबंधन को सुन्नी मजलिस औकाफ (याचिकाकर्ता के पूर्ववर्ती) को कार्यकाल की किसी भी सीमा के बिना हस्तांतरित करते हैं.

याचिका में कहा गया है कि उक्त दस्तावेज से पता चलता है कि मस्जिदें अस्तित्व में थी और 1945 में भी चालू थी. इसमें कहा गया है कि रेलवे ने अपने नोटिस में मस्जिदों को 15 दिनों के भीतर जमीन से हटाने को कहा है. इस प्रकार, उत्तरदाताओं की अनुचित, मनमानी और अनुचित कार्रवाई के कारण उपरोक्त वक्फ संपत्ति का अस्तित्व खतरे में है. याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि अकेले 2023 में, कम से कम सात वक्फ संपत्तियों को रातोंरात ध्वस्त कर दिया गया है. वर्तमान मामले में आशंका यह है कि मस्जिदों/वक्फ संपत्तियों को किसी भी तरह से ध्वस्त करने की योजना बनाई गई है.

ये भी पढ़ें: Delhi High Court: बिना फायर NOC चल रहे कोचिंग सेंटरों को 30 दिनों में बंद करने का आदेश

ये भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद समिति की मुख्य अनुमति याचिका को सुनवाई योग्य माना

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को रेलवे को निर्देश दिया कि वह अपनी जमीन से अनधिकृत संरचनाओं और अतिक्रमण को हटाने के लिए दो मस्जिदों पर चिपकाए गए नोटिस के अनुसार कोई कार्रवाई न करें. दिल्ली वक्फ बोर्ड की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह आदेश दिया है. याचिका में दावा किया गया है कि तिलक मार्ग पर रेलवे ब्रिज के पास मस्जिद तकिया बब्बर शाह और बाबर मार्ग पर मस्जिद बच्चू शाह अनधिकृत नहीं हैं. यह भूमि रेलवे की नहीं है. मामले की अगली सुनवाई 3 अगस्त को होगी.

सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि यह कैसा नोटिस है, जिसमें न तो किसी इमारत, न तारीख, न कुछ का जिक्र है. इसे किसी भी संरचना पर चिपकाया जा सकता था. कोर्ट ने टिप्पणी की, ऐसा प्रतीत होता है कि यह नोटिस कथित तौर पर रेलवे प्रशासन, उत्तर रेलवे, दिल्ली द्वारा जारी किया गया एक सामान्य नोटिस है, जो जनता से 15 दिनों के भीतर स्वेच्छा से रेलवे भूमि से मंदिरों/मस्जिदों/मजारों को हटाने का आह्वान करता है, अन्यथा उन्हें रेलवे प्रशासन द्वारा हटा दिया जाएगा.

कोर्ट ने आदेश दिया कि फिलहाल इन नोटिसों के आधार पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी. केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि वह इस मुद्दे पर "स्पष्ट निर्देश" लेंगे. दो मस्जिदें 123 असूचीबद्ध संपत्तियों का हिस्सा हैं, जिन्हें केंद्र ने याचिकाकर्ता से ले लिया है. याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील वजीह शफीक ने कहा कि 19 और 20 जुलाई को दशकों से मौजूद मस्जिदों पर नोटिस चिपकाए गए. जांच करने पर पता चला कि वे मंडल रेलवे प्रबंधक के कार्यालय से जारी किए गए हैं. उन्होंने कहा कि नोटिस में कोई फाइल नंबर, तारीख, हस्ताक्षर, जारी करने वाले व्यक्ति का नाम या पद नहीं है. रेलवे द्वारा कार्रवाई की आशंका जताते हुए शफीक ने अदालत से इस बीच अधिकारियों के "हाथ बांधने" का आग्रह किया.

याचिका में कहा गया है कि बंगाली मार्केट मस्जिद लगभग 250 साल और तिलक मार्ग मस्जिद 400 साल पुरानी है और उनकी दीवारों पर चिपकाए गए नोटिस रद्द किए जाने योग्य हैं. दोनों मस्जिदें सदियों से अस्तित्व में हैं. दोनों मस्जिदों के संबंध में गवर्नर जनरल इन काउंसिल के माध्यम से अपने एजेंट दिल्ली के मुख्य आयुक्त और सुन्नी मजलिस औकाफ के बीच 1945 के दो विधिवत पंजीकृत समझौते हैं, जो उन मस्जिदों के प्रबंधन को सुन्नी मजलिस औकाफ (याचिकाकर्ता के पूर्ववर्ती) को कार्यकाल की किसी भी सीमा के बिना हस्तांतरित करते हैं.

याचिका में कहा गया है कि उक्त दस्तावेज से पता चलता है कि मस्जिदें अस्तित्व में थी और 1945 में भी चालू थी. इसमें कहा गया है कि रेलवे ने अपने नोटिस में मस्जिदों को 15 दिनों के भीतर जमीन से हटाने को कहा है. इस प्रकार, उत्तरदाताओं की अनुचित, मनमानी और अनुचित कार्रवाई के कारण उपरोक्त वक्फ संपत्ति का अस्तित्व खतरे में है. याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि अकेले 2023 में, कम से कम सात वक्फ संपत्तियों को रातोंरात ध्वस्त कर दिया गया है. वर्तमान मामले में आशंका यह है कि मस्जिदों/वक्फ संपत्तियों को किसी भी तरह से ध्वस्त करने की योजना बनाई गई है.

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