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थेरानोस्टिक्स तकनीक से एम्स ने चौथे चरण के कैंसर को नियंत्रित रखने में पाई सफलता!

AIIMS Delhi: दिल्ली एम्स के डाक्टरों ने थेरानोस्टिक्स तकनीक से चौथे चरण के कैंसर को पांच साल से अधिक समय तक नियंत्रित रखने में सफलता पाई है. मरीज को अभी इसकी चार थेरेपी देनी पड़ती है. अल्फा थेरेपी की एक डोज की कीमत पांच लाख 20 हजार रुपये है.

दिल्ली एम्स
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Dec 15, 2023, 9:25 PM IST

दिल्ली एम्स ने चौथे चरण के कैंसर को नियंत्रित रखने में पाई सफलता!

नई दिल्लीः दिल्ली एम्स के न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग के डाक्टरों ने चौथे चरण के कैंसर के मरीजों को अधिक समय तक नियंत्रित करने के लिए इलाज की एक नई तकनीक विकसित की है. फिलहाल, इस तकनीक से डाक्टरों को चार तरह के कैंसर को पांच साल से भी अधिक समय तक नियंत्रित करने में सफलता मिली है. एम्स न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ चंद्रशेखर बाल ने बताया कि वर्ष 2018 में उन्होंने थेरानोस्टिक्स तकनीक से चौथे चरण के कैंसर से ग्रसित मरीजों को अल्फा थेरेपी से इलाज करना शुरू किया. तब से अभी तक 91 मरीजों का इलाज कर चुके हैं, जिनमें थेरेपी देने के बाद से 65 प्रतिशत मरीजों को पांच साल से ज्यादा का समय हो चुका है.

यह थेरेपी इंजेक्शन के जरिए मरीज को दी जाती है. डॉ चंद्रशेखर बाल ने बताया कि आमतौर पर चौथे चरण के कैंसर से ग्रसित मरीज की जिंदगी छह महीने लेकर अधिकतम एक साल तक मानी जाती है. इसका कारण यह है कि इन मरीजों को दी जाने वाली कीमोथेरेपी का असर कैंसर से ग्रसित सेल्स को मारने के साथ ही स्वस्थ सेल्स पर भी हो जाता है, जिससे मरीजों को नुकसान भी होता है. कीमोथेरेपी के बाद मरीजों की हालत बिगड़ भी जाती है. इसके अलावा उन्होंने बताया कि 400 से ज्यादा मरीजों को वह बीटा थेरेपी दे चुकी हैं. इससे भी चौथे चरण के कैंसर को लंबे समय तक नियंत्रित करने में सफलता मिली है.

थेरानोस्टिक्स तकनीक से थेरेपी में नहीं मरते स्वस्थ सेल्स: डॉ चंद्रशेखर ने बताया कि इस थेरेपी में आक्टेनियम का इस्तेमाल होता है. लेकिन, आक्टेनियम बहुत ही दुर्लभ पदार्थ है, जो परमाणु ऊर्जा केंद्रों में इस्तेमाल होने वाले थोरियम के अपशिष्ट से निकलता है. इसका उत्पादन अपने देश में बहुत कम है. आक्टेनियम का इस्तेमाल कर अल्फा थेरेपी के लिए आइसोटाप्स को इस तरह तैयार किया जाता है कि वे सिर्फ कैंसर के संक्रमण वाले सेल्स को ही टारगेट करते हैं. ये आइसोटॉप्स मरीज के एक भी स्वस्थ सेल को टारगेट नहीं कर सकते, इसलिए यह ज्यादा असरदार है.

5.20 लाख अल्फा थेरेपी की एक डोज की कीमत: डॉ चंद्रशेखर ने बताया कि अभी हमें जर्मनी आक्टेनियम को लेना पड़ता है. इसलिए अल्फा थेरेपी की एक डोज की कीमत पांच लाख 20 हजार रुपये पड़ती है. मरीज को इसकी चार थेरेपी देनी पड़ती है. इसके बाद उसके स्वास्थ्य में अच्छा सुधार आता है. साथ ही मरीज के पांच साल या उससे अधिक समय तक स्वस्थ रहने की संभावना होती है.

चार तरह के कैंसर को ही नियंत्रित करने में कारगर अल्फा थेरेपी: डॉ बाल ने बताया कि अल्फा थेरेपी प्रोस्टेट कैंसर, थायराइड कैंसर, न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर और ब्रेस्ट कैंसर में कारगर है. इस थेरेपी से इलाज करने के बाद मिली सफलता को देखते हुए इसे अमेरिका जर्नल में भी कवर स्टोरी के रूप में छापा गया है. साथ ही नॉर्थ अमेरिकन सोसायटी ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन की वार्षिक बैठक में भी इस काम की सराहना की गई. उन्होंने बताया कि अभी लंग कैंसर में इस तकनीक को कारगर बनाने के लिए वे जर्मनी के साथ काम कर रहे हैं.

अमेरिका से 10 मरीज इलाज के लिए दिल्ली एम्स भेजे गए: डॉ चंद्रशेखर ने बताया कि हमारी थेरेपी की इस तकनीक को देखने के बाद अमेरिका से भी 10 मरीजों को इलाज के लिए एम्स भेजा गया, जिनको इस तकनीक से थेरेपी दी. उन मरीजों को भी फायदा मिला है. इसके बाद अमेरिका की सरकार ने वर्ष 2022 में अपने यहां कंपनियों को ऑक्टेनियम का उत्पादन बढ़ाने और इस तरह की दवाई तैयार करने का लाइसेंस दिया है. साथ ही कंपनियों को सीथे तीसरे चरण के ट्रायल से शुरूआत करने का निर्देश दिया है. अमेरिका ने इस तरह के इलाज के लिए 2022 में काम करना शुरू किया है और हम इसे 2018 से कर रहे हैं.

दिल्ली एम्स ने चौथे चरण के कैंसर को नियंत्रित रखने में पाई सफलता!

नई दिल्लीः दिल्ली एम्स के न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग के डाक्टरों ने चौथे चरण के कैंसर के मरीजों को अधिक समय तक नियंत्रित करने के लिए इलाज की एक नई तकनीक विकसित की है. फिलहाल, इस तकनीक से डाक्टरों को चार तरह के कैंसर को पांच साल से भी अधिक समय तक नियंत्रित करने में सफलता मिली है. एम्स न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ चंद्रशेखर बाल ने बताया कि वर्ष 2018 में उन्होंने थेरानोस्टिक्स तकनीक से चौथे चरण के कैंसर से ग्रसित मरीजों को अल्फा थेरेपी से इलाज करना शुरू किया. तब से अभी तक 91 मरीजों का इलाज कर चुके हैं, जिनमें थेरेपी देने के बाद से 65 प्रतिशत मरीजों को पांच साल से ज्यादा का समय हो चुका है.

यह थेरेपी इंजेक्शन के जरिए मरीज को दी जाती है. डॉ चंद्रशेखर बाल ने बताया कि आमतौर पर चौथे चरण के कैंसर से ग्रसित मरीज की जिंदगी छह महीने लेकर अधिकतम एक साल तक मानी जाती है. इसका कारण यह है कि इन मरीजों को दी जाने वाली कीमोथेरेपी का असर कैंसर से ग्रसित सेल्स को मारने के साथ ही स्वस्थ सेल्स पर भी हो जाता है, जिससे मरीजों को नुकसान भी होता है. कीमोथेरेपी के बाद मरीजों की हालत बिगड़ भी जाती है. इसके अलावा उन्होंने बताया कि 400 से ज्यादा मरीजों को वह बीटा थेरेपी दे चुकी हैं. इससे भी चौथे चरण के कैंसर को लंबे समय तक नियंत्रित करने में सफलता मिली है.

थेरानोस्टिक्स तकनीक से थेरेपी में नहीं मरते स्वस्थ सेल्स: डॉ चंद्रशेखर ने बताया कि इस थेरेपी में आक्टेनियम का इस्तेमाल होता है. लेकिन, आक्टेनियम बहुत ही दुर्लभ पदार्थ है, जो परमाणु ऊर्जा केंद्रों में इस्तेमाल होने वाले थोरियम के अपशिष्ट से निकलता है. इसका उत्पादन अपने देश में बहुत कम है. आक्टेनियम का इस्तेमाल कर अल्फा थेरेपी के लिए आइसोटाप्स को इस तरह तैयार किया जाता है कि वे सिर्फ कैंसर के संक्रमण वाले सेल्स को ही टारगेट करते हैं. ये आइसोटॉप्स मरीज के एक भी स्वस्थ सेल को टारगेट नहीं कर सकते, इसलिए यह ज्यादा असरदार है.

5.20 लाख अल्फा थेरेपी की एक डोज की कीमत: डॉ चंद्रशेखर ने बताया कि अभी हमें जर्मनी आक्टेनियम को लेना पड़ता है. इसलिए अल्फा थेरेपी की एक डोज की कीमत पांच लाख 20 हजार रुपये पड़ती है. मरीज को इसकी चार थेरेपी देनी पड़ती है. इसके बाद उसके स्वास्थ्य में अच्छा सुधार आता है. साथ ही मरीज के पांच साल या उससे अधिक समय तक स्वस्थ रहने की संभावना होती है.

चार तरह के कैंसर को ही नियंत्रित करने में कारगर अल्फा थेरेपी: डॉ बाल ने बताया कि अल्फा थेरेपी प्रोस्टेट कैंसर, थायराइड कैंसर, न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर और ब्रेस्ट कैंसर में कारगर है. इस थेरेपी से इलाज करने के बाद मिली सफलता को देखते हुए इसे अमेरिका जर्नल में भी कवर स्टोरी के रूप में छापा गया है. साथ ही नॉर्थ अमेरिकन सोसायटी ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन की वार्षिक बैठक में भी इस काम की सराहना की गई. उन्होंने बताया कि अभी लंग कैंसर में इस तकनीक को कारगर बनाने के लिए वे जर्मनी के साथ काम कर रहे हैं.

अमेरिका से 10 मरीज इलाज के लिए दिल्ली एम्स भेजे गए: डॉ चंद्रशेखर ने बताया कि हमारी थेरेपी की इस तकनीक को देखने के बाद अमेरिका से भी 10 मरीजों को इलाज के लिए एम्स भेजा गया, जिनको इस तकनीक से थेरेपी दी. उन मरीजों को भी फायदा मिला है. इसके बाद अमेरिका की सरकार ने वर्ष 2022 में अपने यहां कंपनियों को ऑक्टेनियम का उत्पादन बढ़ाने और इस तरह की दवाई तैयार करने का लाइसेंस दिया है. साथ ही कंपनियों को सीथे तीसरे चरण के ट्रायल से शुरूआत करने का निर्देश दिया है. अमेरिका ने इस तरह के इलाज के लिए 2022 में काम करना शुरू किया है और हम इसे 2018 से कर रहे हैं.

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