नई दिल्ली/ गाजियाबाद: बचपन को मानव जीवन का सुनहरा समय माना जाता है क्योंकि आम तौर पर इस समय इंसान हर तरह की जिम्मेदारियों और तनावों से दूर रहता है. बचपन भेदभाव, जलन, घृणा और तमाम तरह के गुणों से दूर रहता है. अक्सर बचपन का दौर बीत जाने के बाद लोग उस अवस्था में लौटना चाहते हैं, जो संभव नहीं होता. लेकिन इंसान को खुश रहने के लिए हमेशा ये सलाह दी जाती है कि अपना बचपन जिंदा रखो. बचपन का समय सुनहरा तब होता है जब बच्चा अपने मां -बाप के साथ रहता है, क्योंकि मां बाप को धरती का भगवान माना जाता है जो अपने बच्चे के हर सुख और इच्छा का ध्यान रखते हैं और यथा संभव पूरा भी करते हैं.
गाजियाबाद के गोविंदपुरम स्थित घरौंदा स्पेशलाइज्ड एडॉप्शन सेंटर: अब हम आपको उन बच्चों के बारे में बताने जा रहे हैं जो अपने माता-पिता के साथ नहीं है यानि जो अनाथ है. ऐसे बच्चे हमेशा ही एक मानसिक तनाव की स्थिति में होते है खासकर तब जब वो दूसरे समान्य बच्चों को उनके मां-बाप के साथ हंसते खेलते, मौज मस्ती करते देखते हैं. ऐसे बच्चों की परवरिश आसान नहीं होती. ऐसी महत्ती जिम्मेदारी निभा रहा है गाजियाबाद के गोविंदपुरम स्थित घरौंदा स्पेशलाइज्ड एडॉप्शन सेंटर.
25 बच्चों को दे रहा प्यार और अपनेपन का एहसास: ये एडॉप्शन सेंटर एक दो नहीं ऐसे 25 बच्चों की परवरिश कर रहा है. इस सेंटर में अधीक्षिका के पद पर तैनात कनिका गौतम बताती हैं कि हमारा प्रयास रहता है कि आश्रम में रह रहे बच्चों को घर जैसा माहौल दिया जाए. आश्रम में दो महीने से लेकर 6 साल तक के बच्चे रहते हैं. आश्रम में मौजूद बच्चों की शिक्षा पर पूरा ध्यान दिया जाता है. आश्रम के बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ते हैं. बच्चों की उम्र के हिसाब से उन्हें आश्रम में ही साक्षर कर स्कूल के लिए तैयार किया जाता है.
आश्रम से लोग बच्चों को लेते हैं गोद: कनिका कहती है कि अक्सर ये बच्चे उनसे एक सवाल पूछ ही देते हैं कि मैडम हमें हमारे घर कब लेकर जाओगे. आश्रम में कई बार लोग बच्चों को गोद लेने आते हैं. ऐसे में बच्चा अपना घर समझकर गोद लेने वालों के साथ चला जाता है. तब बाकी बच्चे उदास हो जाते हैं कि उनके अपने उन्हें अपने घर ले जाने कब आएंगे.
इन बच्चों को मानसिक और व्यवाहारिक तौर पर सहारे की जरूरत: ऐसे में इन बच्चों को मानसिक और व्यवाहारिक तौर पर सहारा देना और अपनेपन का एहसास कराना कोई आसान काम नहीं है. समाज के जिम्मेदार नागरिक की तरह हर इंसान को इनके सहयोग के लिए आगे आना चाहिए और उस दौर में जब ये बच्चे अपनों की तलाश में हैं सभी को इन्हें अपनेपन का एहसास कराना चाहिए. ताकि ये समाज की मुख्यधारा में जुड़कर समाज और देश के विकास में योगदान दे सकें.
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