नई दिल्लीः अधिक उम्र में शादी करने और महिला व पुरुष में कई तरह की समस्याओं के चलते देश में बांझपन की समस्या बढ़ रही है. हालांकि, अब इलाज की कई तरह की उन्नत तकनीकों के विकसित होने से इस समस्या का समाधान हो रहा है. इसी कड़ी में एम्स के डॉक्टरों ने हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान बताया कि कैंसर से ठीक होने वाले कम उम्र के मरीजों में भी बड़े होने पर बांझपन की समस्या देखी जा रही है.
इस समस्या का कारण कैंसर के इलाज के दौरान दी जाने वाली कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी है. इससे रेडिएशन के चलते लोगों की प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है. इन कैंसर सर्वाइवर (कैंसर से ठीक हो चुके) में इस समस्या का समाधान करने के लिए इनका इलाज शुरू करने से पहले कुछ जरूरी कदम उठाए जाने आवश्यक हैं.
एम्स ने ऐसे बच्चों का इलाज भी शुरू कर दिया है. यह सुविधा अभी देश के गिने-चुने अस्पतालों में ही उपलब्ध है. इससे इन बच्चों (कैंसर सर्वाइवर) की शादी होने के बाद वे अपने खुद के बच्चे के माता-पिता बन सकते हैं. अगर यह जरूरी कदम कैंसर मरीज के इलाज से पहले नहीं उठाए जाते हैं तो इलाज के बाद मरीज की प्रजनन क्षमता खत्म हो जाती है. इससे शादी होने के बाद भी वे संतान उत्पत्ति नहीं कर पाते हैं. उनके पास सिर्फ बच्चे को अडाप्ट करने का ही विकल्प बचता है.
एम्स में बांझपन की समस्या का समाधान: एम्स में पीडियाट्रिक विभाग की प्रमुख डॉ. रचना सेठ ने बताया कि जब कैंसर पीड़ित बच्चा एम्स में इलाज के लिए आता है तो पहले उसके माता-पिता को यह जानकारी देते हैं कि आप हमें 12 से 14 दिन का समय दें. जिससे हम बच्चे के स्पर्म या अंडों को फ्रीज कर सकें. इसके बाद बच्चे का इलाज कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी आदि शुरू करते हैं.
रचना ने बताया कि एम्स का पीडियाट्रिक ऑन्कोलॉजी क्लीनिक विशेष रूप से कैंसर के मरीज बच्चों और उनके ठीक होने के बाद भी उनका पंजीकरण कर उनके इलाज का फालोअप करता है. एम्स में पुरुष मरीज के स्पर्म (वीर्य) और महिला मरीज के अंडों को संरक्षित करके रखा जाता है. 12 से 15 साल की उम्र के बच्चों का ही स्पर्म और अंड़ों को संरक्षित किया जाता है. बड़े होने पर जब ये बच्चे शादीशुदा हो जाते हैं. उनके संरक्षित किए गए स्पर्म और अंडों से आईवीएफ के जरिए इनको अपने खुद के बच्चे का माता-पिता बनने का मौका मिलता है.
कैंसर पीड़ित बच्ची के अंडों को किया गया संरक्षित: डॉ. रचना सेठ ने बताया कि एम्स में हाल ही में एक कैंसर पीड़ित 15 साल की स्तन कैंसर से पीड़ित बच्ची के अंडों को संरक्षित किया गया है. एम्स में ये सुविधा अभी शुरू हुई है. पुरुष मरीज के कैंसर का इलाज शुरू करने से पहले उसके स्पर्म की जांच की जाती है कि वह बच्चा पैदा करने में कितना सक्षम है.
कैंसर सर्वाइवर हैं तो शादी के लिए न करें इंतजार: डॉ. विनिता ने बताया कि कैंसर सर्वाइवर को 25 साल की उम्र तक शादी कर लेनी चाहिए. उन्हें यह नहीं सोचना चाहिए कि अभी उम्र 25 साल है. 30 या 35 साल की उम्र में शादी करूंगा या करूंगी. कैंसर के इलाज से कई महिलाओं में जल्दी अंडे बनने बंद हो जाते हैं. या वे ऐसी स्थिति में पहुंच जाती हैं कि हार्मोन देकर भी उनमें अंडों की उत्पत्ति करना मुश्किल होता है. इसी तरह पुरुषों को भी समस्या हो सकती है.
आयुर्वेद से भी संभव है बांझपन का इलाज: बांझपन रोग विशेषज्ञ डॉ. चंचल शर्मा बताती हैं कि अधिक उम्र में शादी करने के कारण या किसी शारीरिक समस्या के चलते महिला या पुरुष की प्रजनन क्षमता प्रभावित हो जाती है. इसका इलाज आयुर्वेद से भी संभव है. ऐसी समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए सिर्फ आईवीएफ ही अंतिम विकल्प नहीं है. बांझपन की समस्या से जूझ रहे ऐसे महिला या पुरुषों की जांच करके उनके अंदर प्रजनन क्षमता की कमियों को आयुर्वेदिक दवाईयों से दूर करके उन्हें प्राकृतिक रूप से संतान प्राप्ति का सुख मिल सकता है.
ये भी पढ़ें: Generic Drugs : कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों में भी कारगर हैं जेनेरिक दवाएं-पीजीआई निदेशक
डॉ. चंचल ने बताया कि कई महिलाओं की अंडे बनने वाली नली ब्लाक हो जाती है. इससे उनके अंडे तक मनुष्य के शुक्राणु नहीं पहुंच पाते हैं. इसे उनकी नली की ब्लाकेज को आयुर्वेदिक दवाईयों से दूर करके गर्भधारण कराया जाता है. आयुर्वेद का इलाज काफी सस्ता है. 15 से 20 हजार रुपये में पूरा इलाज हो जाता है. जबकि आईवीएफ के जरिए इलाज के लिए लोगों को लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं.
ये भी पढ़ें: Cancer Survivor Month: कैंसर को मात देकर अपनी किस्मत खुद लिख रहे दो बच्चे, जानें इनकी कहानी