ETV Bharat / sports

पदकवीर: घर-घर हाथ फैलाया, मकान तक गिरवी रख दिया...और देश को दिलाया था पहला मेडल

टोक्यो ओलंपिक 2020 शुरू होने में अब चंद दिन बचे हुए हैं. 23 जुलाई से 8 अगस्त तक चलने वाले ओलंपिक के लिए 17 जुलाई को भारत का पहला दल टोक्यो के लिए रवाना हो चुका है. इस बीच भारत के एक महान ओलंपिक खिलाड़ी की चर्चा तेज हो गई है. पहलवान परिवार में जन्मे खाशाबा दादासाहेब जाधव स्वतंत्र भारत के पहले ओलंपिक पदक विजेता खिलाड़ी हैं.

Independent India First Medalist  Khashaba Dadasaheb Jadhav  Wrestler  टोक्यो ओलंपिक 2020  खाशाबा दादासाहेब जाधव  पहले ओलंपिक विजेता  पहला मेडल  Sports News in Hindi  खेल समाचार  K D Jadhav  Pocket Dynamo
खाशाबा दादासाहेब जाधव
author img

By

Published : Jul 17, 2021, 7:59 PM IST

हैदराबाद: खाशाबा दादासाहेब जाधव व्यक्तिगत स्पर्धा में ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी थे. उन्होंने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में कुश्ती में कांस्य पदक जीतकर भारत का परचम लहराया था. इससे पहले तक भारत के सभी पदक फील्ड हॉकी में आए थे, न कि व्यक्तिगत स्पर्धा में.

बता दें, वह एकमात्र ओलंपिक पदक विजेता रहे, जिन्हें पद्म पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया गया. केडी को छोटी हाइट के चलते 'पॉकेट डायनेमो' के नाम से भी जाना जाता था.

जाधव का जन्म

  • केडी जाधव का जन्म साल 1926 में महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ था. उनके पिता दादासाहेब खुद भी पहलवान थे. छोटे कद के जाधव बेहद कमजोर दिखाई देते थे.
  • इसी वजह से राजाराम कॉलेज के स्पोर्ट्स टीचर ने उन्हें वार्षिक खेलों की टीम में शामिल करने से इनकार कर दिया था. बाद में कॉलेज के प्रिंसिपल ने उन्हें प्रतियोगिता में भाग लेने की इजाजत दे दी थी.

यह भी पढ़ें: ओलंपिक गांव के भीतर कोविड- 19 संक्रमण दर कम: IOC चीफ

  • बता दें कि साल 1948 के लंदन ओलंपिक में केडी जाधव छठे स्थान पर रहे. लेकिन उन्होंने अपने खेल से काफी सुर्खियां बटोरीं.
  • लंदन से वापस लौटते ही जाधव ने हेलसिंकी ओलंपिक खेलों की तैयारी शुरू कर दी. लेकिन जब हेलसिंकी जाने का समय आया, तो उनके पास पैसे ही नहीं थे.
  • राजाराम कॉलेज के उनके पूर्व प्रिंसिपल ने 7 हजार रुपए की मदद दी. बाद में राज्य सरकार ने भी 4 हजार रुपए दे दिए, लेकिन यह रकम काफी नहीं थी.
  • फिर जाधव ने अपना घर गिरवी रखकर और कई लोगों से उधार लेकर हेलसिंकी का सफर तय किया.
  • जाधव बैंटमवेट फ्रीस्टाइल वर्ग में कनाडा, मैक्सिको और जर्मनी के पहलवानों को पछाड़कर फाइनल राउंड में पहुंचे थे. लेकिन वह सोवियत संघ के पहलवान राशिद मम्मादबेयोव से हार गए.
  • अब उनके पास मुकाबलों के बीच में आराम करने का समय नहीं था. जाधव थक चुके थे. इसके बाद ही उन्होंने जापान के शोहाची इशी (स्वर्ण पदक विजेता) का सामना किया, जिनके खिलाफ वह हार गए.
  • हालांकि, भारत का यह दिग्गज कांस्य पदक जीतने में कामयाब रहा. ऐसा करके केडी जाधव स्वतंत्र भारत के पहले ओलंपिक पदक विजेता बने.
  • पॉकेट डायनेमो उपनाम से मशहूर खाशाबा दादासाहेब जाधव स्वतंत्र भारत के पहले एथलीट हैं, जिसने भारत को ओलंपिक में मेडल दिलाया.
  • जाधव ने साल 1952 में व्यक्तिगत स्पर्धा 54 किलोग्राम वर्ग में कांस्य पदक जीता. हालांकि, इससे पहले 1948 लंदन ओलंपिक में वो मेडल जीतने में कामयाब नहीं हो पाए थे.

यह भी पढ़ें: ओलंपिक खिलाड़ियों के लिए किस प्रदेश सरकार का दिल कितना बड़ा...?

ओलंपिक में तिरंगा लहराने का लिया था प्रण

बताया जाता है कि दादासाहेब ने ओलंपिक में तिरंगा लहराने का प्रण लिया था. 15 जनवरी 1926 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के गोलेश्वर में जन्मे खाशाबा दादासाहेब जाधव को उनके पिता दादासाहेब जाधव ने 5 साल में ही फ्रीस्टाइल कुश्ती सीखने के लिए भेज दिया था.

बताया जाता है कि उन्होंने महज 8 साल की उम्र में एक धाकड़ पहलवान को केवल दो मिनट में धूल चटा दिया था. उसके बाद जब और बड़े हुए तो आजादी की लड़ाई में कूद पड़े.

यह भी पढ़ें: भारत से एथलीटों का पहला जत्था ओलंपिक के लिए रवाना होने को तैयार

देश आजाद हुआ और उन्होंने ओलंपिक में तिरंगा लहराने का प्रण लिया. अपने प्रण को पूरा करने के लिए उन्होंने अपना सबकुछ झोंक दिया था.

जाधव को कई पुरस्कारों से भी सम्मानित भी किया गया. उन्हें साल 2001 में मरणोपरांत अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

हैदराबाद: खाशाबा दादासाहेब जाधव व्यक्तिगत स्पर्धा में ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी थे. उन्होंने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में कुश्ती में कांस्य पदक जीतकर भारत का परचम लहराया था. इससे पहले तक भारत के सभी पदक फील्ड हॉकी में आए थे, न कि व्यक्तिगत स्पर्धा में.

बता दें, वह एकमात्र ओलंपिक पदक विजेता रहे, जिन्हें पद्म पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया गया. केडी को छोटी हाइट के चलते 'पॉकेट डायनेमो' के नाम से भी जाना जाता था.

जाधव का जन्म

  • केडी जाधव का जन्म साल 1926 में महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ था. उनके पिता दादासाहेब खुद भी पहलवान थे. छोटे कद के जाधव बेहद कमजोर दिखाई देते थे.
  • इसी वजह से राजाराम कॉलेज के स्पोर्ट्स टीचर ने उन्हें वार्षिक खेलों की टीम में शामिल करने से इनकार कर दिया था. बाद में कॉलेज के प्रिंसिपल ने उन्हें प्रतियोगिता में भाग लेने की इजाजत दे दी थी.

यह भी पढ़ें: ओलंपिक गांव के भीतर कोविड- 19 संक्रमण दर कम: IOC चीफ

  • बता दें कि साल 1948 के लंदन ओलंपिक में केडी जाधव छठे स्थान पर रहे. लेकिन उन्होंने अपने खेल से काफी सुर्खियां बटोरीं.
  • लंदन से वापस लौटते ही जाधव ने हेलसिंकी ओलंपिक खेलों की तैयारी शुरू कर दी. लेकिन जब हेलसिंकी जाने का समय आया, तो उनके पास पैसे ही नहीं थे.
  • राजाराम कॉलेज के उनके पूर्व प्रिंसिपल ने 7 हजार रुपए की मदद दी. बाद में राज्य सरकार ने भी 4 हजार रुपए दे दिए, लेकिन यह रकम काफी नहीं थी.
  • फिर जाधव ने अपना घर गिरवी रखकर और कई लोगों से उधार लेकर हेलसिंकी का सफर तय किया.
  • जाधव बैंटमवेट फ्रीस्टाइल वर्ग में कनाडा, मैक्सिको और जर्मनी के पहलवानों को पछाड़कर फाइनल राउंड में पहुंचे थे. लेकिन वह सोवियत संघ के पहलवान राशिद मम्मादबेयोव से हार गए.
  • अब उनके पास मुकाबलों के बीच में आराम करने का समय नहीं था. जाधव थक चुके थे. इसके बाद ही उन्होंने जापान के शोहाची इशी (स्वर्ण पदक विजेता) का सामना किया, जिनके खिलाफ वह हार गए.
  • हालांकि, भारत का यह दिग्गज कांस्य पदक जीतने में कामयाब रहा. ऐसा करके केडी जाधव स्वतंत्र भारत के पहले ओलंपिक पदक विजेता बने.
  • पॉकेट डायनेमो उपनाम से मशहूर खाशाबा दादासाहेब जाधव स्वतंत्र भारत के पहले एथलीट हैं, जिसने भारत को ओलंपिक में मेडल दिलाया.
  • जाधव ने साल 1952 में व्यक्तिगत स्पर्धा 54 किलोग्राम वर्ग में कांस्य पदक जीता. हालांकि, इससे पहले 1948 लंदन ओलंपिक में वो मेडल जीतने में कामयाब नहीं हो पाए थे.

यह भी पढ़ें: ओलंपिक खिलाड़ियों के लिए किस प्रदेश सरकार का दिल कितना बड़ा...?

ओलंपिक में तिरंगा लहराने का लिया था प्रण

बताया जाता है कि दादासाहेब ने ओलंपिक में तिरंगा लहराने का प्रण लिया था. 15 जनवरी 1926 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के गोलेश्वर में जन्मे खाशाबा दादासाहेब जाधव को उनके पिता दादासाहेब जाधव ने 5 साल में ही फ्रीस्टाइल कुश्ती सीखने के लिए भेज दिया था.

बताया जाता है कि उन्होंने महज 8 साल की उम्र में एक धाकड़ पहलवान को केवल दो मिनट में धूल चटा दिया था. उसके बाद जब और बड़े हुए तो आजादी की लड़ाई में कूद पड़े.

यह भी पढ़ें: भारत से एथलीटों का पहला जत्था ओलंपिक के लिए रवाना होने को तैयार

देश आजाद हुआ और उन्होंने ओलंपिक में तिरंगा लहराने का प्रण लिया. अपने प्रण को पूरा करने के लिए उन्होंने अपना सबकुछ झोंक दिया था.

जाधव को कई पुरस्कारों से भी सम्मानित भी किया गया. उन्हें साल 2001 में मरणोपरांत अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.