ETV Bharat / sports

'वक्त बदला तो TIME ने दुनिया के शीर्ष उभरते सितारों में किया शुमार'

भारतीय धावक दुती चंद को मशहुर टाइम पत्रिका ने उसे भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकने वाले 100 उभरते सितारों में शुमार किया है.

Dutee
author img

By

Published : Nov 24, 2019, 10:50 PM IST

नई दिल्ली: वक्त के बदल जाने की आदत से बहुत लोग परेशान होंगे, लेकिन भारत की फर्राटा धावक दुती चंद को वक्त की ये अदा खूब रास आई है. एक समय राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लेने से रोक दी गई दुती ने अपनी लगन और मेहनत से सिर्फ वर्ल्ड यूनिवर्सियाड में स्वर्ण पदक जीतकर सिर्फ 11 सेकंड में अपना वक्त बदल लिया था और अब 'टाइम' पत्रिका ने उसे भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकने वाले 100 उभरते सितारों में शुमार किया है.

ये जुलाई की बात है जब इटली के नेपोली में वर्ल्ड यूनिवर्सियाड में दुती चंद ने अपने से कहीं कद्दावर और लंबे कद की प्रतिद्वंद्वियों को हराकर 100 मीटर की दौड़ को 11.32 सेकंड में पूरा किया और स्वर्ण पदक जीता था. वो हीमा दास के बाद देश की दूसरी महिला धावक बनीं जो विश्व स्पर्धा में देश के लिए सोना जीत लाई.

भारतीय धावक दुती चंद
भारतीय धावक दुती चंद

इससे पहले दुती ने 100 मीटर दौड़ में राष्ट्रीय चैंपियन बनकर कुछ नाम कमाया वर्ना देश के फर्राटा धावकों में दुती कोई बहुत बड़ा नाम नहीं था. दुती देश के एक पिछड़े हुए ग्रामीण इलाके से आती हैं, जहां एशियाई खेल, ओलंपिक खेल, स्वर्ण पदक और 100 मीटर 400 मीटर जैसे शब्द नहीं होते.

ओडिशा के जाजपुर जिले के चाका गोपालपुर गांव में चक्रधर चंद और अखूजी चंद के यहां 3 फरवरी 1996 को दुती चंद का जन्म हुआ. गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले एक बुनकर परिवार से ताल्लुक रख्नने वाली दुती गांव के कच्चे रास्तों पर नंगे पैर दौड़ने का अभ्यास किया करती थी.

राष्ट्रमंडल खेलों में दुती चंद
राष्ट्रमंडल खेलों में दुती चंद

सीमित साधनों और नाममात्र की ट्रेनिंग के साथ वैश्विक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीत लेना और फिर 'टाइम' की सूची में जगह बना लेना दुती की कभी हार न मानने की जिद का ही नतीजा है. अपने करियर के शुरूआती दौर में दुती चंद कई विवादों और आलोचनाओं का शिकार भी रहीं.

इसी वर्ष मई में अपने समलैंगिक संबंधों का खुलासा करके आलोचनाओं के घेरे में आई दुती को 2014 में भी एक लंबी और मुश्किल लड़ाई लड़नी पड़ी थी जब हाइपरएंड्रोजेनिज़्म के चलते उसमें पुरुष हॉर्मोन्स (टेस्टोस्टेरॉन) का स्तर निर्धारित सीमा से अधिक पाया गया और वो हार्मोन टेस्ट में फेल हो गई.

पदक के साथ दुती
पदक के साथ दुती

इसका नतीजा ये हुआ कि आख़िरी पलों में उसे राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लेने से रोक दिया गया. अगले कुछ समय तक उनके बारे में तरह तरह की बातें की गईं और उनके रास्ते के कांटे बढ़ते रहे. इन तमाम दुश्वारियों के बावजूद वो देश के लिए लगातार दौड़ती रहीं.

आखिरकार नियमों में बदलाव के बाद वो पूरे दम खम के साथ वापस लौटी और पिछले वर्ष एशियाई खेलों में दो रजत पदक जीतकर अपना लोहा मनवाया. तमाम असफलताओं के बावजूद मेहनत करने वाले लोग दिल पर हाथ रखकर खुद को ये दिलासा देते रहते हैं कि अच्छा वक्त बस आने ही वाला है और दुती के लिए तो ये वक्त बिलकुल सही 'टाइम' पर आया.

नई दिल्ली: वक्त के बदल जाने की आदत से बहुत लोग परेशान होंगे, लेकिन भारत की फर्राटा धावक दुती चंद को वक्त की ये अदा खूब रास आई है. एक समय राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लेने से रोक दी गई दुती ने अपनी लगन और मेहनत से सिर्फ वर्ल्ड यूनिवर्सियाड में स्वर्ण पदक जीतकर सिर्फ 11 सेकंड में अपना वक्त बदल लिया था और अब 'टाइम' पत्रिका ने उसे भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकने वाले 100 उभरते सितारों में शुमार किया है.

ये जुलाई की बात है जब इटली के नेपोली में वर्ल्ड यूनिवर्सियाड में दुती चंद ने अपने से कहीं कद्दावर और लंबे कद की प्रतिद्वंद्वियों को हराकर 100 मीटर की दौड़ को 11.32 सेकंड में पूरा किया और स्वर्ण पदक जीता था. वो हीमा दास के बाद देश की दूसरी महिला धावक बनीं जो विश्व स्पर्धा में देश के लिए सोना जीत लाई.

भारतीय धावक दुती चंद
भारतीय धावक दुती चंद

इससे पहले दुती ने 100 मीटर दौड़ में राष्ट्रीय चैंपियन बनकर कुछ नाम कमाया वर्ना देश के फर्राटा धावकों में दुती कोई बहुत बड़ा नाम नहीं था. दुती देश के एक पिछड़े हुए ग्रामीण इलाके से आती हैं, जहां एशियाई खेल, ओलंपिक खेल, स्वर्ण पदक और 100 मीटर 400 मीटर जैसे शब्द नहीं होते.

ओडिशा के जाजपुर जिले के चाका गोपालपुर गांव में चक्रधर चंद और अखूजी चंद के यहां 3 फरवरी 1996 को दुती चंद का जन्म हुआ. गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले एक बुनकर परिवार से ताल्लुक रख्नने वाली दुती गांव के कच्चे रास्तों पर नंगे पैर दौड़ने का अभ्यास किया करती थी.

राष्ट्रमंडल खेलों में दुती चंद
राष्ट्रमंडल खेलों में दुती चंद

सीमित साधनों और नाममात्र की ट्रेनिंग के साथ वैश्विक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीत लेना और फिर 'टाइम' की सूची में जगह बना लेना दुती की कभी हार न मानने की जिद का ही नतीजा है. अपने करियर के शुरूआती दौर में दुती चंद कई विवादों और आलोचनाओं का शिकार भी रहीं.

इसी वर्ष मई में अपने समलैंगिक संबंधों का खुलासा करके आलोचनाओं के घेरे में आई दुती को 2014 में भी एक लंबी और मुश्किल लड़ाई लड़नी पड़ी थी जब हाइपरएंड्रोजेनिज़्म के चलते उसमें पुरुष हॉर्मोन्स (टेस्टोस्टेरॉन) का स्तर निर्धारित सीमा से अधिक पाया गया और वो हार्मोन टेस्ट में फेल हो गई.

पदक के साथ दुती
पदक के साथ दुती

इसका नतीजा ये हुआ कि आख़िरी पलों में उसे राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लेने से रोक दिया गया. अगले कुछ समय तक उनके बारे में तरह तरह की बातें की गईं और उनके रास्ते के कांटे बढ़ते रहे. इन तमाम दुश्वारियों के बावजूद वो देश के लिए लगातार दौड़ती रहीं.

आखिरकार नियमों में बदलाव के बाद वो पूरे दम खम के साथ वापस लौटी और पिछले वर्ष एशियाई खेलों में दो रजत पदक जीतकर अपना लोहा मनवाया. तमाम असफलताओं के बावजूद मेहनत करने वाले लोग दिल पर हाथ रखकर खुद को ये दिलासा देते रहते हैं कि अच्छा वक्त बस आने ही वाला है और दुती के लिए तो ये वक्त बिलकुल सही 'टाइम' पर आया.

Intro:Body:

वक्त बदला तो TIME ने दुनिया के शीर्ष उभरते सितारों में किया शुमार



 



भारत की फर्राटा धावक दुती चंद को मशहुर टाइम पत्रिका ने उसे भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकने वाले 100 उभरते सितारों में शुमार किया है.



नई दिल्ली: वक्त के बदल जाने की आदत से बहुत लोग परेशान होंगे, लेकिन भारत की फर्राटा धावक दुती चंद को वक्त की ये अदा खूब रास आई है. एक समय राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लेने से रोक दी गई दुती ने अपनी लगन और मेहनत से सिर्फ वर्ल्ड यूनिवर्सियाड में स्वर्ण पदक जीतकर सिर्फ 11 सेकंड में अपना वक्त बदल लिया था और अब 'टाइम' पत्रिका ने उसे भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकने वाले 100 उभरते सितारों में शुमार किया है.



ये जुलाई की बात है जब इटली के नेपोली में वर्ल्ड यूनिवर्सियाड में दुती चंद ने अपने से कहीं कद्दावर और लंबे कद की प्रतिद्वंद्वियों को हराकर 100 मीटर की दौड़ को 11.32 सेकंड में पूरा किया और स्वर्ण पदक जीता था. वो हीमा दास के बाद देश की दूसरी महिला धावक बनीं जो विश्व स्पर्धा में देश के लिए सोना जीत लाई.



इससे पहले दुती ने 100 मीटर दौड़ में राष्ट्रीय चैंपियन बनकर कुछ नाम कमाया वर्ना देश के फर्राटा धावकों में दुती कोई बहुत बड़ा नाम नहीं था. दुती देश के एक पिछड़े हुए ग्रामीण इलाके से आती हैं, जहां एशियाई खेल, ओलंपिक खेल, स्वर्ण पदक और 100 मीटर 400 मीटर जैसे शब्द नहीं होते.



ओडिशा के जाजपुर जिले के चाका गोपालपुर गांव में चक्रधर चंद और अखूजी चंद के यहां 3 फरवरी 1996 को दुती चंद का जन्म हुआ. गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले एक बुनकर परिवार से ताल्लुक रख्नने वाली दुती गांव के कच्चे रास्तों पर नंगे पैर दौड़ने का अभ्यास किया करती थी.



सीमित साधनों और नाममात्र की ट्रेनिंग के साथ वैश्विक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीत लेना और फिर 'टाइम' की सूची में जगह बना लेना दुती की कभी हार न मानने की जिद का ही नतीजा है. अपने करियर के शुरूआती दौर में दुती चंद कई विवादों और आलोचनाओं का शिकार भी रहीं.



इसी वर्ष मई में अपने समलैंगिक संबंधों का खुलासा करके आलोचनाओं के घेरे में आई दुती को 2014 में भी एक लंबी और मुश्किल लड़ाई लड़नी पड़ी थी जब हाइपरएंड्रोजेनिज़्म के चलते उसमें पुरुष हॉर्मोन्स (टेस्टोस्टेरॉन) का स्तर निर्धारित सीमा से अधिक पाया गया और वो हार्मोन टेस्ट में फेल हो गई.



इसका नतीजा ये हुआ कि आख़िरी पलों में उसे राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लेने से रोक दिया गया. अगले कुछ समय तक उनके बारे में तरह तरह की बातें की गईं और उनके रास्ते के कांटे बढ़ते रहे. इन तमाम दुश्वारियों के बावजूद वो देश के लिए लगातार दौड़ती रहीं.



आखिरकार नियमों में बदलाव के बाद वो पूरे दम खम के साथ वापस लौटी और पिछले वर्ष एशियाई खेलों में दो रजत पदक जीतकर अपना लोहा मनवाया. तमाम असफलताओं के बावजूद मेहनत करने वाले लोग दिल पर हाथ रखकर खुद को ये दिलासा देते रहते हैं कि अच्छा वक्त बस आने ही वाला है और दुती के लिए तो ये वक्त बिलकुल सही 'टाइम' पर आया.


Conclusion:
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.