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'गरीबी और भूख को हराने की जिद उन्हें हर दिन चैंपियन बनाती है' - ऑटो ड्राइवर

राष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर छत्तीसगढ़ के एक ऑटो ड्राइवर की धावक बेटी की कहानी.

Subhadra Baghel
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Published : Aug 29, 2019, 7:59 PM IST

Updated : Sep 28, 2019, 7:00 PM IST

नई दिल्ली: आज राष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी ने 'फिट इंडिया कैंपेन' का शुभारंभ करते हुए अच्छे स्वास्थ्य के लिए खेल पर ध्यान देने पर जोर दिया. स्वास्थ्य शरीर के लिए लोगों को योग, खेल और व्यायाम का सहारा लेने के लिए प्रधानमंत्री हमेशा से कहते आए हैं.



चैंपियन बनने की कोशिश



लेकिन कुछ लोगों के लिए इसके मायने अलग है, कुछ खिलाड़ी सिर्फ पदक जीतने या शौहरत कमाने के लिए नहीं बल्कि रोजी रोटी के लिए मौदान पर अपना पसीना बहाते है. जीवन के हर दिन की चुनौतियों के लिए इन खिलाड़ियों का संघर्ष इन्हें एक अलग श्रेणी में लाकर खड़ा करता है. गरीबी और भूख को हराने की जिद उन्हें हर दिन चैंपियन बनाती है.



साढ़े तीन लाख रुपये से ज्यादा का पुरस्कार



विराट कोहली, पीवी सिंधु जैसे बड़े खिलाड़ियों की बड़ी उपलब्धियों की चर्चा मीडिया में रोजाना होती है. मगर आज खेल दिवस के मौके पर हम एक ऐसी खिलाड़ी के बारे में बात करने जा रहे हैं जिसने न सिर्फ एक अच्छा खिलाड़ी होने का सबूत दिया बल्कि साथ-साथ अपने माता-पिता के लिए आदर्श बेटी होने की भी मिशाल पेश की.

सुभद्रा बघेल
सुभद्रा बघेल

हम बात कर रहे है छत्तीसगढ़ के एक ऑटो ड्राइवर की बेटी सुभद्रा बघेल की. जगदलपुर जिले के बकावंड प्रखंड की सुभद्रा ने मैदान पर दौड़-दौड़कर पदकों का संग्रह इक्टठा कर लिया है. गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल के साथ-साथ सुभद्रा अब तक साढ़े तीन लाख रुपये से ज्यादा का पुरस्कार भी जीत चुकी हैं.

सुभद्रा ने इसी पुरस्कार की राशि से अपने पिता को ऑटो खरीदकर दिया है और इसी इनामी राशि की बदौलत उसके भाई-बहनों की पढ़ाई छूटने से बच गई. चार भाई-बहनों में सुभद्रा सबसे बड़ी हैं. ड्राइवर पिता संपत बघेल के पास सिर्फ दो एकड़ की खेती है, ऐसे में पद्मश्री धर्मपाल सैनी की ओर से संचालित माता शबरी कन्या आश्रम उनके लिए सहारा बना.



अपने घर की मुसीबतों का पीछे छोड़ सकती है


उन्होंने प्रतिभाशाली सुभद्रा का वहां दाखिला कराया और खेलों में रुचि रखने वाली इस लड़की को दौड़ का अभ्यास शुरू करया. वो जब कक्षा तीसरी में थी तो पहली बार जिला स्तर पर दो हजार रुपये का पुरस्कार जीता और इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा. घर की गरीबी को जानते हुए उसने अपने भाई और बहनों की पढ़ाई की जिम्मेदारी उठाने का फैसला लिया.

VIDEO: राष्ट्रपति ने वितरित किए राष्ट्रीय खेल पुरस्कार, इन खिलाड़ियों को किया सम्मानित

उसे लगा कि वो दौड़कर अपने घर की मुसीबतों का पीछे छोड़ सकती है. इसके बाद खूब मेहनत की और अब तक साढ़े तीन लाख रुपये का पुरस्कार जीत चुकी हैं. पिता संपत और मां कनकदेई को अपनी बेटी पर नाज है. वो कहते हैं,'सुभद्रा जो कर रही है, आज बेटे भी नहीं करते.' छोटी बहन बसंती भी दीदी से प्रेरित होकर मैराथन का अभ्यास कर रही है. सुभद्रा फिलहाल बीए द्वितीय की छात्रा है.

नई दिल्ली: आज राष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी ने 'फिट इंडिया कैंपेन' का शुभारंभ करते हुए अच्छे स्वास्थ्य के लिए खेल पर ध्यान देने पर जोर दिया. स्वास्थ्य शरीर के लिए लोगों को योग, खेल और व्यायाम का सहारा लेने के लिए प्रधानमंत्री हमेशा से कहते आए हैं.



चैंपियन बनने की कोशिश



लेकिन कुछ लोगों के लिए इसके मायने अलग है, कुछ खिलाड़ी सिर्फ पदक जीतने या शौहरत कमाने के लिए नहीं बल्कि रोजी रोटी के लिए मौदान पर अपना पसीना बहाते है. जीवन के हर दिन की चुनौतियों के लिए इन खिलाड़ियों का संघर्ष इन्हें एक अलग श्रेणी में लाकर खड़ा करता है. गरीबी और भूख को हराने की जिद उन्हें हर दिन चैंपियन बनाती है.



साढ़े तीन लाख रुपये से ज्यादा का पुरस्कार



विराट कोहली, पीवी सिंधु जैसे बड़े खिलाड़ियों की बड़ी उपलब्धियों की चर्चा मीडिया में रोजाना होती है. मगर आज खेल दिवस के मौके पर हम एक ऐसी खिलाड़ी के बारे में बात करने जा रहे हैं जिसने न सिर्फ एक अच्छा खिलाड़ी होने का सबूत दिया बल्कि साथ-साथ अपने माता-पिता के लिए आदर्श बेटी होने की भी मिशाल पेश की.

सुभद्रा बघेल
सुभद्रा बघेल

हम बात कर रहे है छत्तीसगढ़ के एक ऑटो ड्राइवर की बेटी सुभद्रा बघेल की. जगदलपुर जिले के बकावंड प्रखंड की सुभद्रा ने मैदान पर दौड़-दौड़कर पदकों का संग्रह इक्टठा कर लिया है. गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल के साथ-साथ सुभद्रा अब तक साढ़े तीन लाख रुपये से ज्यादा का पुरस्कार भी जीत चुकी हैं.

सुभद्रा ने इसी पुरस्कार की राशि से अपने पिता को ऑटो खरीदकर दिया है और इसी इनामी राशि की बदौलत उसके भाई-बहनों की पढ़ाई छूटने से बच गई. चार भाई-बहनों में सुभद्रा सबसे बड़ी हैं. ड्राइवर पिता संपत बघेल के पास सिर्फ दो एकड़ की खेती है, ऐसे में पद्मश्री धर्मपाल सैनी की ओर से संचालित माता शबरी कन्या आश्रम उनके लिए सहारा बना.



अपने घर की मुसीबतों का पीछे छोड़ सकती है


उन्होंने प्रतिभाशाली सुभद्रा का वहां दाखिला कराया और खेलों में रुचि रखने वाली इस लड़की को दौड़ का अभ्यास शुरू करया. वो जब कक्षा तीसरी में थी तो पहली बार जिला स्तर पर दो हजार रुपये का पुरस्कार जीता और इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा. घर की गरीबी को जानते हुए उसने अपने भाई और बहनों की पढ़ाई की जिम्मेदारी उठाने का फैसला लिया.

VIDEO: राष्ट्रपति ने वितरित किए राष्ट्रीय खेल पुरस्कार, इन खिलाड़ियों को किया सम्मानित

उसे लगा कि वो दौड़कर अपने घर की मुसीबतों का पीछे छोड़ सकती है. इसके बाद खूब मेहनत की और अब तक साढ़े तीन लाख रुपये का पुरस्कार जीत चुकी हैं. पिता संपत और मां कनकदेई को अपनी बेटी पर नाज है. वो कहते हैं,'सुभद्रा जो कर रही है, आज बेटे भी नहीं करते.' छोटी बहन बसंती भी दीदी से प्रेरित होकर मैराथन का अभ्यास कर रही है. सुभद्रा फिलहाल बीए द्वितीय की छात्रा है.

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नई दिल्ली: आज राष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी ने 'फिट इंडिया कैंपेन' का शुभारंभ करते हुए अच्छे स्वास्थ्य के लिए खेल पर ध्यान देने पर जोर दिया. स्वास्थ्य शरीर के लिए लोगों को योग, खेल और व्यायाम का सहारा लेने के लिए प्रधानमंत्री हमेशा से कहते आए हैं.





चैंपियन बनने की कोशिश





लेकिन कुछ लोगों के लिए इसके मायने अलग है, कुछ खिलाड़ी सिर्फ पदक जीतने या शौहरत कमाने के लिए नहीं बल्कि रोजी रोटी के लिए मौदान पर अपना पसीना बहाते है. जीवन के हर दिन की चुनौतियों के लिए इन खिलाड़ियों का संघर्ष इन्हें एक अलग श्रेणी में लाकर खड़ा करता है. गरीबी और भूख को हराने की जिद उन्हें हर दिन चैंपियन बनाती है.





साढ़े तीन लाख रुपये से ज्यादा का पुरस्कार





विराट कोहली, पीवी सिंधु जैसे बड़े खिलाड़ियों की बड़ी उपलब्धियों की चर्चा मीडिया में रोजाना होती है. मगर आज खेल दिवस के मौके पर हम एक ऐसी खिलाड़ी के बारे में बात करने जा रहे हैं जिसने न सिर्फ एक अच्छा खिलाड़ी होने का सबूत दिया बल्कि साथ-साथ अपने माता-पिता के लिए आदर्श बेटी होने की भी मिशाल पेश की.



हम बात कर रहे है छत्तीसगढ़ के एक ऑटो ड्राइवर की बेटी सुभद्रा बघेल की. जगदलपुर जिले के बकावंड प्रखंड की सुभद्रा ने मैदान पर दौड़-दौड़कर पदकों का संग्रह इक्टठा कर लिया है. गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल के साथ-साथ सुभद्रा अब तक साढ़े तीन लाख रुपये से ज्यादा का पुरस्कार भी जीत चुकी हैं.



सुभद्रा ने इसी पुरस्कार की राशि से अपने पिता को ऑटो खरीदकर दिया है और इसी इनामी राशि की बदौलत उसके भाई-बहनों की पढ़ाई छूटने से बच गई. चार भाई-बहनों में सुभद्रा सबसे बड़ी हैं. ड्राइवर पिता संपत बघेल के पास सिर्फ दो एकड़ की खेती है, ऐसे में पद्मश्री धर्मपाल सैनी की ओर से संचालित माता शबरी कन्या आश्रम उनके लिए सहारा बना.





अपने घर की मुसीबतों का पीछे छोड़ सकती है





उन्होंने प्रतिभाशाली सुभद्रा का वहां दाखिला कराया और खेलों में रुचि रखने वाली इस लड़की को दौड़ का अभ्यास शुरू करया. वो जब कक्षा तीसरी में थी तो पहली बार जिला स्तर पर दो हजार रुपये का पुरस्कार जीता और इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा. घर की गरीबी को जानते हुए उसने अपने भाई और बहनों की पढ़ाई की जिम्मेदारी उठाने का फैसला लिया.



उसे लगा कि वो दौड़कर अपने घर की मुसीबतों का पीछे छोड़ सकती है. इसके बाद खूब मेहनत की और अब तक साढ़े तीन लाख रुपये का पुरस्कार जीत चुकी हैं. पिता संपत और मां कनकदेई को अपनी बेटी पर नाज है. वो कहते हैं,'सुभद्रा जो कर रही है, आज बेटे भी नहीं करते.' छोटी बहन बसंती भी दीदी से प्रेरित होकर मैराथन का अभ्यास कर रही है. सुभद्रा फिलहाल बीए द्वितीय की छात्रा है.


Conclusion:
Last Updated : Sep 28, 2019, 7:00 PM IST
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