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WATCH: मुक्केबाज के रूप में सम्मान की लड़ाई लड़ रही है पाकिस्तानी की आलिया सोमरो

अपनी जिंदगी में तमाम मुश्किलों को पार करके कराची के ल्यारी टाउन की 16 वर्षीय बॉक्सर आलिया सोमरो अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी चैंपियनशिप में जगह बनाने के अपने सपने का पीछा कर रही है.

आलिया सोमरो
आलिया सोमरो
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Published : Jan 22, 2021, 7:48 PM IST

कराची: जब पाकिस्तान की किशोर आलिया सोमरो ने मुक्केबाजी शुरु की थी तो उन्हें अपने समाज में एक मुक्केबाज के रूप में स्वीकृति पाने के लिए रिंग के अंदर और बाहर दोनों ही जगह संघर्ष करना पड़ा था.

16 साल की सियोमारो कराची के ल्यारी टाउन से ताल्लुक रखती हैं. उनके पिता एक दिहाड़ी मजदूर हैं और माली हालत खराब होने की वजह से उनका परिवार कई रातें भूखे सोकर गुजारता है.

लेकिन उत्साह से भरी ये युवा खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी चैंपियनशिप में जगह बनाने के अपने सपने का पीछा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है.

अपने समाज में एक बॉक्सर के रूप में सम्मान पाना शुरुआत में उनके लिए काफी कठिन था, जहां बॉक्सिंग एक पुरुष-प्रधान खेल बना हुआ है.

देखिए वीडियो

टोक्यो ओलंपिक के आयोजकों का ध्यान खेलों के महाकुंभ की मेजबानी पर

उन्होंने कहा, "शुरुआत में मुझे कुछ अजीब लगता था क्योंकि लड़के मुझे ताना मारा करते थे, ये उनके लिए अस्वीकार्य था कि एक लड़की मुक्केबाज बनने जा रही है."

वो आगे कहती हैं, "लेकिन जब मैं मुक्केबाज बन गई, तब उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया. हालांकि, अब समय आ गया है कि समुदाय की मानसिकता को बदला जाए."

सोमोरो का कहना है कि उन्हें प्रेरणा महान मुक्केबाज मुहम्मद अली से मिली है, जिन्होंने अपने प्रदर्शन से दुनिया में अपना लोहा मनवाया है.

वो आगे जा कर अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप जीतना चाहती है और उन्हें उम्मीद है कि वो अन्य लड़कियों को भी अपने जुनून का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करेगी, भले ही वो पारंपरिक मानदंडों से उलट हो.

उनके कोच नवाब अली बलूच का कहना है कि स्थानीय युवाओं में मुक्केबाजी के प्रति रुचि बढ़ रही है और चाहते हैं कि सरकार उनका समर्थन करे.

कराची: जब पाकिस्तान की किशोर आलिया सोमरो ने मुक्केबाजी शुरु की थी तो उन्हें अपने समाज में एक मुक्केबाज के रूप में स्वीकृति पाने के लिए रिंग के अंदर और बाहर दोनों ही जगह संघर्ष करना पड़ा था.

16 साल की सियोमारो कराची के ल्यारी टाउन से ताल्लुक रखती हैं. उनके पिता एक दिहाड़ी मजदूर हैं और माली हालत खराब होने की वजह से उनका परिवार कई रातें भूखे सोकर गुजारता है.

लेकिन उत्साह से भरी ये युवा खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी चैंपियनशिप में जगह बनाने के अपने सपने का पीछा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है.

अपने समाज में एक बॉक्सर के रूप में सम्मान पाना शुरुआत में उनके लिए काफी कठिन था, जहां बॉक्सिंग एक पुरुष-प्रधान खेल बना हुआ है.

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उन्होंने कहा, "शुरुआत में मुझे कुछ अजीब लगता था क्योंकि लड़के मुझे ताना मारा करते थे, ये उनके लिए अस्वीकार्य था कि एक लड़की मुक्केबाज बनने जा रही है."

वो आगे कहती हैं, "लेकिन जब मैं मुक्केबाज बन गई, तब उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया. हालांकि, अब समय आ गया है कि समुदाय की मानसिकता को बदला जाए."

सोमोरो का कहना है कि उन्हें प्रेरणा महान मुक्केबाज मुहम्मद अली से मिली है, जिन्होंने अपने प्रदर्शन से दुनिया में अपना लोहा मनवाया है.

वो आगे जा कर अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप जीतना चाहती है और उन्हें उम्मीद है कि वो अन्य लड़कियों को भी अपने जुनून का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करेगी, भले ही वो पारंपरिक मानदंडों से उलट हो.

उनके कोच नवाब अली बलूच का कहना है कि स्थानीय युवाओं में मुक्केबाजी के प्रति रुचि बढ़ रही है और चाहते हैं कि सरकार उनका समर्थन करे.

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