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अपने शिष्यों को ओलंपिक पदक जीतते देखना चाहती हूं: कर्णम मल्लेश्वरी

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Published : May 18, 2020, 10:52 PM IST

भारत के लिए ओलंपिक पदक जीतने वाली भारत की पहली महिला खिलाड़ी कर्णम मल्लेश्वरी ने कहा, "भारत्तोलन जैसे खेल में महिला का होना, इसके कारण मुझे अपने रिश्तेदारों के काफी ताने सुनने पड़े."

Karnam Malleswari
Karnam Malleswari

नई दिल्ली: कर्णम मल्लेश्वरी ने सिडनी ओलंपिक-2000 में पदक जीत इतिहास रचा था. वह भारत के लिए ओलंपिक पदक जीतने वाली भारत की पहली महिला बनी थीं.

वहां तक पहुंचने में हालांकि उन्होंने इस सामाजिक मान्यता को पीछे छोड़ा था कि कोई महिला भारत्तोलन जैसा खेल नहीं खेल सकतीं.

मल्लेश्वरी ने एक कार्यक्रम में कहा, "भारत्तोलन जैसे खेल में महिला का होना, इसके कारण मुझे अपने रिश्तेदारों के काफी ताने सुनने पड़े."

उन्होंने कहा, "जहां आज भी भारत्तोलन को पुरुषों का खेल माना जाता है, लोग कहते थे कि मुझे भविष्य में स्वास्थ संबंधी परेशानी होगी और मुझे मां बनने में परेशानी होगी. लेकिन मेरी मां ने इन सब बातों पर ध्यान नहीं दिया और मुझे मेरे सपने जीने दिए. वह मेरे सफर की सबसे मजबूत कड़ी हैं."

Karnam Malleswari
कर्णम मल्लेश्वरी

मल्लेश्वरी ने कहा कि वह भारत्तोलन में इसलिए आईं, क्योंकि उनकी बहन भी इस खेल में थीं.

उन्होंने कहा, "हम जिस स्कूल में जाते थे, उसके पास जिम थी और हमारा देश श्रीकाकुलम भारत्तोलक के लिए जाना जाता था. मेरी बहन एथलेटिक्स में थी और उनके कोच ने उनसे कहा था कि उनका शरीर भारत्तोलन के लिए एक दम सही है."

मल्लेश्वरी ने कहा, "तब से उन्होंने यह खेल शुरू कर दिया और मैं उनके साथ वहां जाती थी. मैं खेल में भी रुचि लेने लगी और मैंने अपने कोच से कहा कि मैं इस खेल को खेलना चाहती हूं. लेकिन उन्होंने मुझसे कहा कि मैं इस खेल के लिए ठीक नहीं हूं, क्योंकि मैं काफी पतली थी और इसलिए मुझे घर के कामों में अपनी मां की मदद करनी चाहिए."

उन्होंने कहा, "बचपन से ही मेरे अंदर काफी आत्मविश्वास था, इसिलए मुझे काफी बुरा लगा. मुझे लगा कि दूसरा कोई यह फैसला कैसे ले सकता है कि मैं क्या कर सकती हूं और क्या नहीं. इसलिए मैंने फैसला किया कि मैं यह खेल खेलूंगी और उनको दिखा के रहूंगी."

मल्लेश्वरी ने 2004 एथेंस ओलंपिक के बाद खेल को अलविदा कह दिया और तब से वह अपनी अकादमी चला रही हैं. उन्होंने कहा कि अब उनका सपना अपने शिष्यों को ओलंपिक पदक जीतते हुए देखना है.

उन्होंने कहा, "मैं इस समय अकादमी चला रही हूं. और अब मैं प्रवासी अकादमी भी बना रही हूं, उम्मीद है कि वो अंतरराष्ट्रीय स्तर की हो जिसमें 300 बच्चे आ सकें. मेरा अब एक ही सपना है कि मैंने जो सिडनी में छोड़ दिया था उसे मेरी शिष्याएं पूरा करें और 10 ओलंपिक स्वर्ण पदक जीत कर लाएं."

नई दिल्ली: कर्णम मल्लेश्वरी ने सिडनी ओलंपिक-2000 में पदक जीत इतिहास रचा था. वह भारत के लिए ओलंपिक पदक जीतने वाली भारत की पहली महिला बनी थीं.

वहां तक पहुंचने में हालांकि उन्होंने इस सामाजिक मान्यता को पीछे छोड़ा था कि कोई महिला भारत्तोलन जैसा खेल नहीं खेल सकतीं.

मल्लेश्वरी ने एक कार्यक्रम में कहा, "भारत्तोलन जैसे खेल में महिला का होना, इसके कारण मुझे अपने रिश्तेदारों के काफी ताने सुनने पड़े."

उन्होंने कहा, "जहां आज भी भारत्तोलन को पुरुषों का खेल माना जाता है, लोग कहते थे कि मुझे भविष्य में स्वास्थ संबंधी परेशानी होगी और मुझे मां बनने में परेशानी होगी. लेकिन मेरी मां ने इन सब बातों पर ध्यान नहीं दिया और मुझे मेरे सपने जीने दिए. वह मेरे सफर की सबसे मजबूत कड़ी हैं."

Karnam Malleswari
कर्णम मल्लेश्वरी

मल्लेश्वरी ने कहा कि वह भारत्तोलन में इसलिए आईं, क्योंकि उनकी बहन भी इस खेल में थीं.

उन्होंने कहा, "हम जिस स्कूल में जाते थे, उसके पास जिम थी और हमारा देश श्रीकाकुलम भारत्तोलक के लिए जाना जाता था. मेरी बहन एथलेटिक्स में थी और उनके कोच ने उनसे कहा था कि उनका शरीर भारत्तोलन के लिए एक दम सही है."

मल्लेश्वरी ने कहा, "तब से उन्होंने यह खेल शुरू कर दिया और मैं उनके साथ वहां जाती थी. मैं खेल में भी रुचि लेने लगी और मैंने अपने कोच से कहा कि मैं इस खेल को खेलना चाहती हूं. लेकिन उन्होंने मुझसे कहा कि मैं इस खेल के लिए ठीक नहीं हूं, क्योंकि मैं काफी पतली थी और इसलिए मुझे घर के कामों में अपनी मां की मदद करनी चाहिए."

उन्होंने कहा, "बचपन से ही मेरे अंदर काफी आत्मविश्वास था, इसिलए मुझे काफी बुरा लगा. मुझे लगा कि दूसरा कोई यह फैसला कैसे ले सकता है कि मैं क्या कर सकती हूं और क्या नहीं. इसलिए मैंने फैसला किया कि मैं यह खेल खेलूंगी और उनको दिखा के रहूंगी."

मल्लेश्वरी ने 2004 एथेंस ओलंपिक के बाद खेल को अलविदा कह दिया और तब से वह अपनी अकादमी चला रही हैं. उन्होंने कहा कि अब उनका सपना अपने शिष्यों को ओलंपिक पदक जीतते हुए देखना है.

उन्होंने कहा, "मैं इस समय अकादमी चला रही हूं. और अब मैं प्रवासी अकादमी भी बना रही हूं, उम्मीद है कि वो अंतरराष्ट्रीय स्तर की हो जिसमें 300 बच्चे आ सकें. मेरा अब एक ही सपना है कि मैंने जो सिडनी में छोड़ दिया था उसे मेरी शिष्याएं पूरा करें और 10 ओलंपिक स्वर्ण पदक जीत कर लाएं."

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