नई दिल्ली: भारत को 18 साल बाद जूनियर विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक दिलाने वाले युवा पहलवान दीपक पुनिया रविवार को स्वर्ण पदकों की 'गोल्डन हैट्रिक' के लिए पूरी तरह से तैयार थे, लेकिन चोट के कारण उन्हें कजाकिस्तान के नूर सुल्तान में जारी विश्व कुश्ती चैंपियनशिप के 86 किलोग्राम भारवर्ग के फाइनल से हटना पड़ा और उन्हें रजत पदक से संतोष करना पड़ा.
कैडेट विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाले दीपक को क्वार्टर फाइनल मैच के दौरान ही आंख में चोट लग गई थी. इसके बावजूद वो क्वार्टर फाइनल और सेमीफाइनल मुकाबला खेले और जीत हासिल की. वैसे चाहें जो भी, दीपक ने अपना भारतीय कुश्ती और खेल जगत में स्वर्ण अक्षरों में लिखवा लिया है क्योंकि कैडेट, जूनियर और सीनियर विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतने वाले वो पहले भारतीय बन गए हैं.
कुश्ती में अब तक अटैक, डिफेंस, स्टेमिना और सतर्क की रणनीमित के खेलते आ रहे दीपक फाइनल में भी इसी रणनीति के साथ उतरने को तैयार थे. चोटिल होने के बाद मेडिकल टीम उनकी निगरानी कर रही थी और वे सुशील कुमार की देखरेख में अभ्यास भी कर रहे थे, लेकिन फाइनल मुकाबले से पहले उनकी ये चोट इतनी बढ़ गई कि आखिरकार उन्हें मुकाबले से हटना ही पड़ा.
फाइनल में दीपक का सामना अपने से कहीं अनुभवी और मौजूदा ओलंपिक चैंपियन तथा तीन बार के विश्व पदक विजेता ईरान के हसन याजदानिचाराटी से होना था. जाहिर सी बात है कि दीपक ईरानी पहलवान की चुनौती का सामना करने के लिए तैयार थे, लेकिन चोट और किस्मत के कारण वो मुकाबले में नहीं उतर पाए.
दीपक पहले ही ओलंपिक कोटा हासिल कर चुके हैं और अब उनका पूरा ध्यान ओलंपिक पर लगा हुआ है. उन्होंने कहा कि अब उनका लक्ष्य ओलंपिक में स्वर्ण जीतना है और इसके लिए वो देश से बाहर ट्रेनिंग करना चाहते हैं.
दीपक ने कहा,"मैं वास्तव में बहुत निराश हूं. मैं कल वापस आ रहा हूं. मुझे खुशी है कि मैंने ओलंपिक का टिकट हासिल कर लिया है, लेकिन मैं स्वर्ण के लिए लड़ाई लड़ना चाहता था. मैंने इसके लिए बहुत अच्छी तैयारी की थी. मुकाबला बहुत कड़ा था, लेकिन मुझे अपनी क्षमता पर भरोसा था और मैंने अच्छा काम किया."
दीपक से पहले विनेश फोगाट, बजरंग पुनिया और रवि दाहिया टोक्यो ओलंपिक के लिए कोटा हासिल कर चुके हैं.
20 साल के दीपक अगर फाइनल में स्वर्ण पदक जीतने में कामयाब होते तो वो दो बार ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार के बाद विश्व कुश्ती चैंपियनशिप के इतिहास में स्वर्ण जीतने वाले दूसरे भारतीय पहलवान बन जाते.
सुशील (66 किग्रा) 2010 में मॉस्को में रूस के एलन गोगाऐय को हराकर स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने थे. उन्होंने इसके अलावा दो बार ओलंपिक में भी पदक जीते है. हालांकि सुशील को यहां अपने पहले ही राउंड में हार का सामना करना पड़ा था. सुशील ने बीजिंग ओलंपिक में कांस्य और लंदन ओलंपिक में रजत पदक जीता था.
भारत ने विश्व चैंपियनशिप में अब तक कुल एक स्वर्ण, तीन रजत और छह कांस्य जीते हैं. सुशील के अलावा बिसंभर सिंह ने 1967 में नई दिल्ली में रजत, अनिल कुमार दहिया ने 2010 में रजत, बजरंग पुनिया ने 2018 में बुडापेस्ट में रजत पदक जीता था.
इसके अलावा उदय चंद 1961 में योकोहामा में कांस्य, बजरंग 2013 में बुडापेस्ट में कांस्य, रमेश कुमार 2009 में हेरनिंग में कांस्य, नरसिंह पंचम यादव 2015 में लॉस वेगास में कांस्य, रवि कुमार दहिया 2019 में नूर सुल्तान में कांस्य और बजरंग 2019 में नूर सुल्तान में कांस्य पदक हासिल कर चुके हैं.
बजरंग एकमात्र ऐसे भारतीय पहलवान हैं, जिन्होंने तीन बार विश्व चैंपियनशिप में पदक जीता है. वो एक बार रजत और दो बार कांस्य जीत चुके हैं.