पंचकूला (हरियाणा): आंध्र प्रदेश निवासी तीन किसानों की बेटियों ने खेलो इंडिया यूथ गेम्स-2021 में शानदार प्रदर्शन की बदौलत मेडल जीता है. रजिथा, पल्लवी और सिरीशा ने अपनी विलक्षण प्रतिभा के दम पर लोहा मनवाया है.
बता दें, तीनों खिलाड़ी गरीब किसानों के घर की बेटी हैं. उनके माता-पिता अपनी छोटी-छोटी झोंपड़ियों में सिर्फ चूल्हों को जलाने के लिए सालों से संघर्ष करते आ रहे हैं. उनकी इस जीत से पूरा शिविर खुशी से झूम उठा. वहीं, आंध्र प्रदेश के खेल प्राधिकरण अधिकारी भी खुश दिखाई दिए. रजिथा ने लड़कियों के 400 मीटर वर्ग में स्वर्ण पदक जीता, जबकि सिरीशा ने कांस्य पदक अपने नाम किया. इसके बाद पल्लवी ने 64 किलोग्राम वर्ग में आंध्र प्रदेश के लिए पहला स्वर्ण पदक जीता है.
बताते चलें, खेलो इंडिया गेम्स प्रतिभाशाली लड़कियों को एक मंच प्रदान कर रहा है, ताकि वे अपने दुखों को थोड़े समय के लिए भूल सकें. पिछले कुछ साल में खेलो इंडिया गेम्स ने ऐसे असंख्य प्रेरित रत्नों की खोज की है और उन्हें सहायता और छात्रवृत्ति प्रदान की है. यहां तक कि उनमें से कुछ को शीर्ष स्तर तक पहुंचने में भी मदद की है. रजिथा कोया जनजाति से संबंध रखती हैं. उनकी कम उम्र में ही उनके पिता की मौत हो गई थी. उनकी मां भद्रम्मा को आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले के एक विचित्र गांव रामचंद्रपुरम में पांच बच्चों की देखभाल करनी पड़ी.
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रजिथा की मां एक मजदूर के रूप में काम करती हैं. बावजूद इसके भी वे परिवार के पालन-पोषण के लिए प्रर्याप्त कमाई नहीं कर पातीं. रजिथा ने बताया, हम लोग सूखे पेड़ के पत्तों और टहनियों को इकट्ठा करते हैं, जिससे हमारे घर के चूल्हे जल सके. क्योंकि हम मिट्टी का तेल नहीं खरीद सकते. उन्होंने कहा, जिंदा रहने के लिए हम ये रोजाना करते हैं और हमारी मां कठिन परिश्रम करती हैं.
दौड़ने की उनकी प्रतिभा को SAAP के कोच वामसी साई किरण और कृष्ण मोहन ने देखा, जिन्होंने उनके कौशल का सम्मान किया. उसके बाद उन्हें टेनविक-एसएएपी प्रायोजित शिविर के लिए चुना गया. जहां उन्हें माइक रसेल के तहत प्रशिक्षित करने का अवसर मिला. रजिथा का जीवन जल्द ही बदलने लगा. उसने राज्य के कार्यक्रमों में भाग लिया और पदक जीतना शुरू किया. उनका उच्च बिंदु गुवाहाटी में खेलो इंडिया यूथ गेम्स में आया, जहां उन्होंने एक और महत्वपूर्ण पदक जीता.
वह अभी हैदराबाद में द्रोणाचार्य के कोच नागपुरी रमेश के अधीन प्रशिक्षण ले रही हैं. लेकिन यह उनके अपने खर्च पर है. उन्होंने कहा, नागेंद्र नाम के एक सज्जन मुझे चलते रहने के लिए हर महीने 10,000 रुपए दान करते हैं. मैं 6,000 घर का किराया देती हूं और बाकी मेरे खाने के लिए जरूरी है.
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श्रीकाकुलम के मंदराडा गांव की रहने वाली हैं सिरीशा, इनकी कहानी किसी के भी आंखों में आंसू ला देंगे. उनके पिता कृष्णम नायडू, एक मजदूर थे. जो साल 2019 में एक घातक दुर्घटना का शिकार हो गए थे. तब से उनकी मां गौरी ने घर का बोझ उठाया. सिरीशा ने बताया, मेरे पिता के आकस्मिक निधन के बावजूद मेरी मां ने मुझे एक अच्छा एथलीट बनने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उनके पिता, जिन्होंने 14 साल की उम्र में सिरीशा को एथलेटिक्स लेने के लिए प्रोत्साहित किया था. पहले खेलो गेम्स में इतना अच्छा प्रदर्शन नहीं करने के बाद खेलो इंडिया गेम्स में यह उनका पहला पदक है.
18 साल की एस पल्लवी की विपरीत परिस्थितियों पर विजय की एक और कहानी है. भारोत्तोलन में 64 किलोग्राम स्वर्ण पदक विजेता लड़की, विजयनगरम जिला (आंध्र प्रदेश) के कोंडावेलगडा में एक राजमिस्त्री की बेटी हैं. साथ में, उन्होंने सभी बाधाओं को पार किया, उसके पिता लक्ष्मी नायडू ने अपनी बेटी के आहार के लिए अतिरिक्त घंटे काम किया. उन्होंने कहा, मैं आपको नहीं बता सकती कि मेरे पिता ने मेरे लिए क्या बलिदान दिया है. आज, मैं उनके सम्मान में यह पदक समर्पित करती हूं.