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बैकबेंचर रहे सुनील छेत्री, सीनियर प्लेयर्स का उड़ाते थे मजाक, एक फैसले से बदला नजरिया - बैकबेंचर सुनील छेत्री

एशियाई कप 2024 भारतीय फुटबॉल टीम के कप्तान सुनील छेत्री के लिए आखिरी हो सकता है. लेकिन उससे पहले सुनील छेत्री ने अपने जीवन से जुड़े कई बड़े किस्से शेयर किए हैं. उन्होंने बताया कि वह कप्तान बनने से पहले सीनियर प्लेयर्स का मजाक उड़ाते थे.

Sunil Chhetri
सुनील छेत्री
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Published : May 16, 2023, 7:30 PM IST

नई दिल्ली : सुनील छेत्री अंतरराष्ट्रीय करियर के अपने शुरुआती दिनों में पीछे बैठा करते थे और सीनियर खिलाड़ियों का मजाक उड़ाते थे लेकिन 2011 में जब उन्हें कप्तान बनाया गया तो यह सब बदल गया क्योंकि उन्होंने महसूस किया कि उन्हें टीम के लिए उदाहरण पेश करने की जरूरत है. महान फुटबॉलर बाईचुंग भूटिया के 2011 एशियाई कप के बाद संन्यास लेने पर तत्कालीन कोच बॉब हॉटन ने दो महीने बाद मलेशिया में होने वाले एएफसी चैलेंज कप क्वालीफायर्स में युवा टीम की अगुआई करने की जिम्मेदारी छेत्री को सौंपी और उन्हें कप्तान बनाया.

छेत्री ने 'डिज्नी प्लस हॉटस्टार' पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रम 'लेट दियर बी स्पोर्ट्स' में कहा, 'जिस दिन मलेशिया में बॉब हॉटन ने मुझे कप्तान का आर्मबैंड दिया, उसी समय तुरंत दबाव में आ गया था क्योंकि मैं बैकबेंचर था'. उन्होंने कहा कि वह स्टीवन डियाज और प्रदीप, सीनियर खिलाड़ियों का मजाक उड़ाते थे, मैं ऐसा ही था. सब कुछ मजाक था और मैं शरारती था. छेत्री ने कहा कि लेकिन जब मैंने आर्मबैंड पहना तो शुरुआती तीन-चार मैचों के लिए मैंने आगे बैठना शुरू कर दिया. 38 वर्षीय फुटबॉलर ने कहा कि मैं दबाव महसूस कर रहा था कि मैं अब कप्तान बन गया हूं. अब मुझे सिर्फ अपने बारे में नहीं बल्कि टीम के बारे में सोचना था.

छेत्री का भारत के लिए आखिरी बड़ा टूर्नामेंट दोहा में होने वाला एशियाई कप 2024 हो सकता है. छेत्री ने 2005 में क्वेटा में पाकिस्तान के खिलाफ मैत्री मैच में भारत के लिए डेब्यू किया. उन्होंने इस मैच में गोल दागा जिससे भारत मुकाबला 1-1 से ड्रॉ कराने में सफल रहा. उस समय भारतीय टीम के कोच सुखविंदर सिंह थे. छेत्री ने कहा कि उन्होंने कप्तान बनने के बाद खेल को लेकर अपना रवैया बदला क्योंकि उन्हें उदाहरण पेश करने की जरूरत थी.

उन्होंने कहा कि इससे पहले यह मानसिकता थी कि मैं सुनील छेत्री हूं. मेरा ड्रिबल, मेरा पास, मेरा क्रॉस, मेरा गोल. लेकिन अब आप अपने अलावा टीम के बारे में भी सोच रहे थे, मैदान के अंदर भी और बाहर भी. छेत्री ने कहा कि इससे पहले जब मैं खुद को इस तरह सोचने के लिए बाध्य करता था तो मैं डर जाता था. मैंने खुद से कहा कि सहज रहो, अब भी वही काम करना है. मैदान के अंदर और बाहर अच्छा उदाहरण बनो.
(पीटीआई : भाषा)

ये भी पढ़ेंः Sunil Chhetri : इस भारतीय स्ट्राइकर को है गोल दागने की भूख

नई दिल्ली : सुनील छेत्री अंतरराष्ट्रीय करियर के अपने शुरुआती दिनों में पीछे बैठा करते थे और सीनियर खिलाड़ियों का मजाक उड़ाते थे लेकिन 2011 में जब उन्हें कप्तान बनाया गया तो यह सब बदल गया क्योंकि उन्होंने महसूस किया कि उन्हें टीम के लिए उदाहरण पेश करने की जरूरत है. महान फुटबॉलर बाईचुंग भूटिया के 2011 एशियाई कप के बाद संन्यास लेने पर तत्कालीन कोच बॉब हॉटन ने दो महीने बाद मलेशिया में होने वाले एएफसी चैलेंज कप क्वालीफायर्स में युवा टीम की अगुआई करने की जिम्मेदारी छेत्री को सौंपी और उन्हें कप्तान बनाया.

छेत्री ने 'डिज्नी प्लस हॉटस्टार' पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रम 'लेट दियर बी स्पोर्ट्स' में कहा, 'जिस दिन मलेशिया में बॉब हॉटन ने मुझे कप्तान का आर्मबैंड दिया, उसी समय तुरंत दबाव में आ गया था क्योंकि मैं बैकबेंचर था'. उन्होंने कहा कि वह स्टीवन डियाज और प्रदीप, सीनियर खिलाड़ियों का मजाक उड़ाते थे, मैं ऐसा ही था. सब कुछ मजाक था और मैं शरारती था. छेत्री ने कहा कि लेकिन जब मैंने आर्मबैंड पहना तो शुरुआती तीन-चार मैचों के लिए मैंने आगे बैठना शुरू कर दिया. 38 वर्षीय फुटबॉलर ने कहा कि मैं दबाव महसूस कर रहा था कि मैं अब कप्तान बन गया हूं. अब मुझे सिर्फ अपने बारे में नहीं बल्कि टीम के बारे में सोचना था.

छेत्री का भारत के लिए आखिरी बड़ा टूर्नामेंट दोहा में होने वाला एशियाई कप 2024 हो सकता है. छेत्री ने 2005 में क्वेटा में पाकिस्तान के खिलाफ मैत्री मैच में भारत के लिए डेब्यू किया. उन्होंने इस मैच में गोल दागा जिससे भारत मुकाबला 1-1 से ड्रॉ कराने में सफल रहा. उस समय भारतीय टीम के कोच सुखविंदर सिंह थे. छेत्री ने कहा कि उन्होंने कप्तान बनने के बाद खेल को लेकर अपना रवैया बदला क्योंकि उन्हें उदाहरण पेश करने की जरूरत थी.

उन्होंने कहा कि इससे पहले यह मानसिकता थी कि मैं सुनील छेत्री हूं. मेरा ड्रिबल, मेरा पास, मेरा क्रॉस, मेरा गोल. लेकिन अब आप अपने अलावा टीम के बारे में भी सोच रहे थे, मैदान के अंदर भी और बाहर भी. छेत्री ने कहा कि इससे पहले जब मैं खुद को इस तरह सोचने के लिए बाध्य करता था तो मैं डर जाता था. मैंने खुद से कहा कि सहज रहो, अब भी वही काम करना है. मैदान के अंदर और बाहर अच्छा उदाहरण बनो.
(पीटीआई : भाषा)

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