कोलकाता: एशियाई खेलों में गोल्ड मेडल जीतने वाले भारतीय फुटबॉलर और ओलिंपियन तुलसीदास बलराम का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. 87 साल की उम्र में तुलसीदास का गुरुवार को निधन हुआ. वह उत्तरपारा (कोलकाता) में हुगली नदी के पास एक मकान में रह रहे थे. किडनी की बीमारी से जूझ रहे तुलसीदास बलराम को 26 दिसंबर को कोलकाता के निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. वह 1956 के मेलबर्न ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुंचने वाली भारतीय टीम के अंतिम जीवित सदस्य थे.
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AIFF condoles the demise of Tulsidas Balaram 🇮🇳
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हैदराबाद के सिकंदराबाद में जन्मे स्टार फुटबॉलर तुलसीदास बलराम तीन बार पश्चिम बंगाल के लिए संतोष ट्रॉफी जीतने वाली टीम के सदस्य रहे हैं. 1958-59 में बंगाल के लिए पहली संतोष ट्रॉफी जीतने से पहले, उन्होंने हैदराबाद के लिए संतोष ट्रॉफी जीता, जिसे एक दुर्लभ उपलब्धि माना जाता है. 1956 के बाद, वह 1960 के रोम ओलंपिक में भारतीय टीम के सदस्यों में से एक थे. लेकिन राष्ट्रीय टीम की जर्सी में तुलसीदास बलराम की सबसे बड़ी सफलता 1962 के जकार्ता एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतना था. उस वर्ष बलराम को अर्जुन सम्मान से सम्मानित किया गया था.
वहीं, क्लब फुटबॉल की बात करें तो उन्हें ईस्ट बंगाल का 'होम बॉय' कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. वह 1955 में ईस्ट बंगाल क्लब में आए. उन्होंने 7 सालों में सभी ट्रॉफियां ईस्ट बंगाल के रंग में जीतीं. उन्होंने ईस्ट बंगाल के लिए 104 गोल किए. 1963 में उन्होंने पूर्वी बंगाल छोड़ दिया और बीएनआर में शामिल हो गए. इसके बाद अगले ही साल (1964) में शारीरिक बीमारी के कारण वह बीएनआर से सेवानिवृत्त हुए. हालांकि, इस दौरान बंगाल ही उनका स्थायी पता बन गया था. वह हुगली के उत्तरपारा में रहने लगे थे. वहीं, बीते जमाने के स्ट्राइकर ने अपनी आत्मकथा में तुलसीराम के एक बात लिखी है. उन्होंने लिखा कि, तुलसीराम नहीं चाहते थे कि उनकी मृत्यु के बाद उनके शरीर को क्लब के टेंट में ले जाया जाए.
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