हैदराबाद: आज 3 दिसंबर 2020 को हॉकी के सर्वकालिक महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद की पुण्यतिथि मनाई जाती है. लेकिन इस अवसर पर उनको याद करने के लिए मीडिया से लेकर भारत सरकार तक कोई आगे नहीं आया.
यहां तक उनके मरने से पहले ही भारत सरकार द्वारा उनको नजरअंदाज करने का सिलसिला जारी हो गया था. बता दें कि 51 वर्ष की उम्र में भारतीय सेना से रिटायर हो चुके ध्यानचंद को पैसो की तंगी थी, लेकिन हॉकी का जूनून तो एक जवान से बढ़ कर था. उम्र तो ढल चुकी थी पर वो अहमदाबाद पहुंच गए एक हॉकी टूर्नामेंट को देखने, उन्हें लगा शायद यहां के लोग उन्हें पहचान जाएंगे और अंदर आने देंगे पर ऐसा नहीं हुआ. उन्हें स्टेडियम से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.
मेजर ध्यानचंद जिनको दुनिया दद्दा के नाम से भी जानती है उनके बारे में बात करते हुए ऑस्ट्रेलियन लीजेंड डॉन ब्रैडमैन ने यहां तक कह डाला था कि 'वे गोल ऐसे करते है जैसे क्रिकेट में रन बनते हैं'
दद्दा का खेल को लेकर अंदाजा इतना सटीक था की एक मैच में वो गोल नहीं कर पा रहे थे तो उन्होंने रेफरी से कहा कि ये गोल पोस्ट अंतरास्ट्रीय माप दंड के अनुसार नहीं बना है, उनकी शिकायत पर जब माप ली गई तो वो सही साबित हुए.
देश-विदेश में उनका सम्मान इस तरह किया गया है कि ऑस्ट्रिया में उनका एक विशाल स्मारक बनाया गया जिसमें उनके 4 हाथ और उनमें 4 स्टिक थी. वहीं दूसरी तरफ उनके ही देश में उनको वो इज्जत नहीं दी गई. ऐसा नहीं है कि इनपर सरकार द्वारा ध्यान नहीं दिया गया. इनके लिए भारत सरकार ने 'राष्ट्रीय खेल दिवस' उनके जन्म दिन 29 अगस्त को घोषित किया, जिस दिन राष्ट्रपति खेल पुरस्कार देते है.
लेकिन क्या उनके सम्मान में इतना करना पर्याप्त है? आखिर क्यों हम इस खेल के जादूगर को आज भूल चुके हैं?
इस विषय में ईटीवी भारत ने पूर्व भारतीय खिलाड़ी अब्दुल अजीज से खास बातचीत की.
Q. आज हॉकी के सर्वकालिक महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद जी की पुण्य तिथि है वहीं इस अवसर पर आप आज ध्यानचंद जी को किस तरह से याद कर रहे हैं?
अब्दुल अजीज: ध्यानचंद जी हमारे खेल के बहुत बड़े योद्धा हैं. उन्होंने देश को 3 ओलंपिक गोल्ड मेडल दिलवाए हैं. हम सब उनको आज याद करते हैं. उन्होंने देश का गौरव बढ़ाया है खासकर झांसी का. आज के दिन कई कोच और हॉकी के खिलाड़ी झांसी में बनी उनकी समाधि पर जाते हैं और उनको फूल चढ़ाते हैं.
Q. आपने पहली बार ध्यानचंद जी के बारे में कब जाना?
अब्दुल अजीज: 1975 में अशोक ध्यानचंद जी विश्व कप जीत कर आए थे उस मौके पर झांसी में काफी जश्न का माहौल था. तब चूंकि मेरे पिता जी भी हॉकी के खिलाड़ी थे तो उन्होंने मुझे ध्यानचंद से मिलाया. उस दिन मैं अशोक जी को देखने गया था. लेकिन उस दिन ध्यानचंद जी एकदम सादे तरीके से आए से, एक सफेद रंग की शर्ट पहने थे और उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और सर पर हाथ फेरा और कहा कि क्या करते हो, मैंने कहा कि हॉकी खेलता हूं तो उन्होंने कहा कि झांसी का नाम हॉकी में रोशन करना.
Q. आप भी उसी शहर झांसी से आते हैं जहां से ध्यानचंद जी आते हैं? क्या आज भी वो शहर उनको याद करता है?
अब्दुल अजीज: एक हॉकी का दौर था उनके जमाने में वो अब नहीं रहा. आज कल के खिलाड़ी अपना फायदा नुकसान ज्यादा देखते हैं. उस वजह से खिलाड़ी भटक गए हैं. वही हालात झांसी का भी है लेकिन दद्दा को मानने वाले सिर्फ हॉकी के ही नहीं बल्कि और खेल के भी खिलाड़ी हैं तो झांसी शहर के लिए झांसी की रानी और ध्यानचंद पर सभी को गर्व है और हमेशा रहेगा.
Q. जब 2013 में भारतीय पूर्व खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर को भारत रतन चुना गया था तब आपका क्या मानना था. क्या भारत सरकार का ये फैसला जायज था?
अब्दुल अजीज: जब मीडिया में एक सर्वो हुआ था कि भारत रत्न किसको मिलना चाहिए तो ध्यानचंद जी का नाम सबसे ऊपर आया था. सचिन का नाम काफी पीछे था. तो हम सब लोग काफी खुश थे कि पब्लिक ने सही चुनाव किया था. मीडिया ने भी हाइलाईट किया था. हम सब खुश थे. अब वो सरकार ने क्या किया क्या नहीं किया इसको लेकर हम ज्यादा कुछ जानते नहीं है. लेकिन जब सचिन को भारत रत्न चुना गया तब हम सबके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई थी. जैसे हम बड़ा मैच खेलने गए हों और पैनेल्टी स्ट्रोक मारनी हों और हम मिस कर गए हों. अभी भी मीडिया के लोग सरकार से गुजारिश करते हैं कि ध्यानचंद जी के सम्मान में कुछ किया जाए लेकिन सरकार क्या करती है क्या नहीं इसकी हमें कोई जानकारी नहीं है. हम तो बस गुजारिश कर सकते हैं.
Q. जिस तरह से ध्यानचंद जी ने विश्व स्तर पर हॉकी को डॉमिनेट किया था क्या उस तरह से आप आज किसी खिलाड़ी को देखते हैं, फिर चाहें वो हॉकी के हों या किसी और खेल के हों?
अब्दुल अजीज: ये कह पाना मुश्किल है. सभी खिलाड़ी अपना 100 प्रतिशत दे रहे हैं लेकिन उनके जैसा कोई नहीं है.
Q. आज मैं देख रही थी कि ध्यानचंद जी की पुण्य तिथि के मौको पर न तो भारत सरकार, ना तो उत्तर प्रदेश सरकार न मीडिया, किसी ने भी उनको याद नहीं किया, आप इस बारे में क्या कहना चाहेंग. ध्यानचंद जी के साथ हो रही इस बेरूखी का कौन जिम्मेदार है?
अब्दुल अजीज: मेरे हिसाब से शहरों में ध्यानचंद जी के नाम पर टूर्नामेंट करांए, लेकिन जो अभी कोरोना की वजह से उथल-पुथल चल रही है तो किसी को दोश नहीं दे सकते. लेकिन सभी लोग अगर अपना काम करें और मीडिया भी इसको हाइलाईट कर दें तो काम हो जाएगा.
--- राजसी स्वरूप