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भारत की नजर वर्ल्ड कप 2011 क्वार्टर फाइनल जैसी जीत पर, युवराज जैसा रोल बखूबी निभा रहे विराट

World Cup 2023 Final : रोहित शर्मा के नेतृत्व वाली भारतीय टीम आईसीसी पुरुष क्रिकेट विश्व कप 2023 के फाइनल में मोटेरा स्टेडियम में ऑस्ट्रेलिया से भिड़ेगी, जहां उन्होंने 2011 विश्व कप क्वार्टर फाइनल में कंगारुओं को हराया था और ट्रॉफी जीती थी. टीम में और खिलाड़ियों के दृष्टिकोण में एक पीढ़ीगत बदलाव आया है जो अपने कप्तान की स्क्रिप्ट का बखूबी पालन करते हैं. वर्तमान टीम की ताकत का विश्लेषण करते हुए मीनाक्षी राव याद करती हैं कि कैसे भारतीय टीम की पिछली पीढ़ी 2011 संस्करण में ऑस्ट्रेलिया को मात देने में कामयाब रही थी.

yuvraj singh and virat kohli
युवराज सिंह और विराट कोहली
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 17, 2023, 4:24 PM IST

मुंबई: पिछली बार जब भारत घरेलू विश्व कप के नॉकआउट दौर में ऑस्ट्रेलिया से भिड़ा था, तो वह मोटेरा में था, जहां एम एस धोनी की टीम ने क्वार्टर फाइनल में जीत हासिल की थी. हालांकि इस बार, वो फाइनल में एक-दूसरे के सामने होंगे, लेकिन एक बिल्कुल अलग मोटेरा में, अलग-अलग कप्तानों, रणनीतियों और दिमाग के साथ.

वानखेड़े या चिन्नास्वामी की तुलना में मोटेरा तब धूल भरा, छोटा और सुदूर स्थल था. यह उतना विशाल भी नहीं था जितना आज है. उस समय क्षमता 40,000 थी, न कि 1.32 लाख की जो आज दहाड़ती है - जिसका नाम स्वंय प्रधानमंत्री के नाम पर रखा गया है. इसलिए जब 19 नवंबर को पैट कमिंस अपनी टीम को मैदान के बीच में ले जाएंगे, तो उन्हें भारतीय समर्थकों का शोरगुल सुनाई देगा.

पिछली बार, साल 2011 में ऑस्ट्रेलियाई टीम का सामना एक नए भारत से था, एक कॉम्पैक्ट इकाई, जो अंत तक डटकर मुकाबला कर रही थी, अच्छी गेंदबाजी कर रही थी, क्षेत्ररक्षण और भी बेहतर कर रही थी और फिर जोरदार बल्लेबाजी कर रही थी, चाहे वह युवराज और रैना हो या फिर तेंदुलकर और गंभीर.

यह एक ऐसा शो था जिसका उद्देश्य चार बार के विश्व चैंपियन ऑस्ट्रेलिया को बाहर करना था, एक ऐसी स्क्रिप्ट जिसने उन्हें मोहाली में इंतजार कर रहे एक और ब्लॉकबस्टर में ले लिया - पुराने प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के खिलाफ एक स्वप्निल सेमीफाइनल.

आज भी भारतीय यथार्थ नहीं बदला है. इसे केवल अपग्रेड किया गया है. रोहित शर्मा, जो 2011 की टीम का हिस्सा नहीं थे, एक ऐसे समूह के नेता हैं जो समूहों में शिकार करता है और अपने कब्जे में लेता है और इसे एक आवश्यक कार्य के रूप में मानता है.

  • India vs Australia 2011 World Cup Quarter Final at Motera, Ahmedabad. I've watched so many matches in the stadium, will have to create a thread pic.twitter.com/fuybHWDlsM

    — Vishwamitra (@Vishwamitra24) September 24, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

धोनी के खिलाड़ी असली योद्धा के रूप में सामने आए, जिन्होंने अपने कौशल के बजाय दिमाग से खेल को जीत लिया, तो शर्मा उन युवाओं के भूखे समूह का नेतृत्व करते हैं जिन्हें निर्देशानुसार अपना काम पूरा करने के लिए सिखाया गया है.

उस समय, यह युवराज सिंह ही थे जिन्होंने ऐसी बल्लेबाजी की जैसे कि उनकी जान दांव पर लगी हो और ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाजों का डटकर सामना किया. 2023 के लीग मैच में जब भारत टूर्नामेंट में पहली बार ऑस्ट्रेलिया से भिड़ा तो कोहली ने भी ऐसा ही किया. जब भारत चेन्नई में लीग मैच में शीर्ष तीन को एक रन के स्कोर पर गंवाने के बाद बेहद संकट में था, तब कोहली ने टीम को संकट से उबारा.

अगर भारत ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपने उद्घाटन मैच में चेपॉक में कप्तान रोहित शर्मा को एक दुर्लभ शून्य पर खो दिया था, तो 2011 में क्वार्टर फाइनल में सहवाग के जल्दी चले जाने से भी ऐसी ही घबराहट हुई थी.

यह भारत के लिए विशेष था क्योंकि तब यह आसान नहीं था और इस बार यह अधिक कठिन था. अब वह क्वार्टरफाइनल था, यह फाइनल है जिसमें शुरुआती असफलताओं के बाद फिर से उभरी ऑस्ट्रेलिया को हराना है.

पैट कमिंस सबसे गैर-ऑस्ट्रेलियाई व्यक्ति हैं जिनमें पोंटिंग या वॉ जैसा अहंकार नहीं है. हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि वह विरोधियों के लिए खतरा नहीं बन सकते हैं.

2011 के क्वार्टर फाइनल में, ऑस्ट्रेलिया ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 260 रन का मजबूत स्कोर बनाया और फिर अपनी पेस बैटरी से घेरा बना लिया. इस अर्थ में, यह एक अद्भुत द्वंद्व था जिसे भारत ने हारने से इनकार कर दिया और 47.4 ओवर में लक्ष्य को हासिल कर लिया. जब मैन ऑफ द मोमेंट, मैन ऑफ द मैच और मैन ऑफ द टूर्नामेंट युवराज सिंह ने अंततः ब्रेट ली को विजयी चौका लगाया था.

यह वह दिन भी था जिसके बारे में धोनी हमेशा बात करते रहे थे, एक ऐसा दिन जब क्या गेंदबाज क्या बल्लेबाज, सभी ने अपनी भूमिकाओं के बेहतर ढंग से निभाया था. यह एक लंबी दौड़ थी, ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों ने 260 रन बनाए थे और सहवाग के जल्दी चले जाने से यह एक कठिन मिशन जैसा लगने लगा था, जो तब और ज्यादा चुनौतीपूर्ण लगने लगा जब तेंदुलकर ने ऑफ-स्टंप पर टैट की गेंद पर हैडिन को कैच थमा दिया और 53 रन पर आउट हो गए.

सचिन जब पवेलियन लौटे उस समय भारत का स्कोर 94 रन था. तब बचाव और राहत कार्य की जिम्मेदारी कोहली पर आ गई, (जिन्होंने इन 12 वर्षों में टीम की लड़खड़ाती पारी का भार अपने कंधों पर उठाकर उसे जीत दिलाई है और बहुत कुछ हासिल किया है).

फिर एक युवा खिलाड़ी, कोहली ने समझदारी से खेलते हुए और स्ट्राइक रोटेट करते हुए, गंभीर के साथ अच्छी जोड़ी बनाई, जब तक कि बढ़ता रन रेट उनके पास नहीं आ गया और उन्होंने अपरिपक्वता से डेविड हसी की गेंद पर सीधे मिड विकेट पर माइकल क्लार्क के हाथों में कैच दे दिया.

और फिर आया युवराज और मैच का सबसे तनावपूर्ण दौर. सुरेश रैना ने युवराज को जो स्टैंड-इन दिया, वह वैसा ही है जैसा के एल राहुल 2023 में कोहली को बचाने के लिए दे रहे हैं.

2011 संस्करण के केवल दो खिलाड़ी रोहित के नेतृत्व में टीम में बचे हैं - विराट कोहली और आर अश्विन. ऑस्ट्रेलियाई टीम भी उस क्वार्टरफाइनल से एक पीढ़ी दूर चली गई है और उस टीम का केवल एक ही सदस्य स्टीव स्मिथ बचा है.

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वानखेड़े या चिन्नास्वामी की तुलना में मोटेरा तब धूल भरा, छोटा और सुदूर स्थल था. यह उतना विशाल भी नहीं था जितना आज है. उस समय क्षमता 40,000 थी, न कि 1.32 लाख की जो आज दहाड़ती है - जिसका नाम स्वंय प्रधानमंत्री के नाम पर रखा गया है. इसलिए जब 19 नवंबर को पैट कमिंस अपनी टीम को मैदान के बीच में ले जाएंगे, तो उन्हें भारतीय समर्थकों का शोरगुल सुनाई देगा.

पिछली बार, साल 2011 में ऑस्ट्रेलियाई टीम का सामना एक नए भारत से था, एक कॉम्पैक्ट इकाई, जो अंत तक डटकर मुकाबला कर रही थी, अच्छी गेंदबाजी कर रही थी, क्षेत्ररक्षण और भी बेहतर कर रही थी और फिर जोरदार बल्लेबाजी कर रही थी, चाहे वह युवराज और रैना हो या फिर तेंदुलकर और गंभीर.

यह एक ऐसा शो था जिसका उद्देश्य चार बार के विश्व चैंपियन ऑस्ट्रेलिया को बाहर करना था, एक ऐसी स्क्रिप्ट जिसने उन्हें मोहाली में इंतजार कर रहे एक और ब्लॉकबस्टर में ले लिया - पुराने प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के खिलाफ एक स्वप्निल सेमीफाइनल.

आज भी भारतीय यथार्थ नहीं बदला है. इसे केवल अपग्रेड किया गया है. रोहित शर्मा, जो 2011 की टीम का हिस्सा नहीं थे, एक ऐसे समूह के नेता हैं जो समूहों में शिकार करता है और अपने कब्जे में लेता है और इसे एक आवश्यक कार्य के रूप में मानता है.

  • India vs Australia 2011 World Cup Quarter Final at Motera, Ahmedabad. I've watched so many matches in the stadium, will have to create a thread pic.twitter.com/fuybHWDlsM

    — Vishwamitra (@Vishwamitra24) September 24, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

धोनी के खिलाड़ी असली योद्धा के रूप में सामने आए, जिन्होंने अपने कौशल के बजाय दिमाग से खेल को जीत लिया, तो शर्मा उन युवाओं के भूखे समूह का नेतृत्व करते हैं जिन्हें निर्देशानुसार अपना काम पूरा करने के लिए सिखाया गया है.

उस समय, यह युवराज सिंह ही थे जिन्होंने ऐसी बल्लेबाजी की जैसे कि उनकी जान दांव पर लगी हो और ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाजों का डटकर सामना किया. 2023 के लीग मैच में जब भारत टूर्नामेंट में पहली बार ऑस्ट्रेलिया से भिड़ा तो कोहली ने भी ऐसा ही किया. जब भारत चेन्नई में लीग मैच में शीर्ष तीन को एक रन के स्कोर पर गंवाने के बाद बेहद संकट में था, तब कोहली ने टीम को संकट से उबारा.

अगर भारत ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपने उद्घाटन मैच में चेपॉक में कप्तान रोहित शर्मा को एक दुर्लभ शून्य पर खो दिया था, तो 2011 में क्वार्टर फाइनल में सहवाग के जल्दी चले जाने से भी ऐसी ही घबराहट हुई थी.

यह भारत के लिए विशेष था क्योंकि तब यह आसान नहीं था और इस बार यह अधिक कठिन था. अब वह क्वार्टरफाइनल था, यह फाइनल है जिसमें शुरुआती असफलताओं के बाद फिर से उभरी ऑस्ट्रेलिया को हराना है.

पैट कमिंस सबसे गैर-ऑस्ट्रेलियाई व्यक्ति हैं जिनमें पोंटिंग या वॉ जैसा अहंकार नहीं है. हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि वह विरोधियों के लिए खतरा नहीं बन सकते हैं.

2011 के क्वार्टर फाइनल में, ऑस्ट्रेलिया ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 260 रन का मजबूत स्कोर बनाया और फिर अपनी पेस बैटरी से घेरा बना लिया. इस अर्थ में, यह एक अद्भुत द्वंद्व था जिसे भारत ने हारने से इनकार कर दिया और 47.4 ओवर में लक्ष्य को हासिल कर लिया. जब मैन ऑफ द मोमेंट, मैन ऑफ द मैच और मैन ऑफ द टूर्नामेंट युवराज सिंह ने अंततः ब्रेट ली को विजयी चौका लगाया था.

यह वह दिन भी था जिसके बारे में धोनी हमेशा बात करते रहे थे, एक ऐसा दिन जब क्या गेंदबाज क्या बल्लेबाज, सभी ने अपनी भूमिकाओं के बेहतर ढंग से निभाया था. यह एक लंबी दौड़ थी, ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों ने 260 रन बनाए थे और सहवाग के जल्दी चले जाने से यह एक कठिन मिशन जैसा लगने लगा था, जो तब और ज्यादा चुनौतीपूर्ण लगने लगा जब तेंदुलकर ने ऑफ-स्टंप पर टैट की गेंद पर हैडिन को कैच थमा दिया और 53 रन पर आउट हो गए.

सचिन जब पवेलियन लौटे उस समय भारत का स्कोर 94 रन था. तब बचाव और राहत कार्य की जिम्मेदारी कोहली पर आ गई, (जिन्होंने इन 12 वर्षों में टीम की लड़खड़ाती पारी का भार अपने कंधों पर उठाकर उसे जीत दिलाई है और बहुत कुछ हासिल किया है).

फिर एक युवा खिलाड़ी, कोहली ने समझदारी से खेलते हुए और स्ट्राइक रोटेट करते हुए, गंभीर के साथ अच्छी जोड़ी बनाई, जब तक कि बढ़ता रन रेट उनके पास नहीं आ गया और उन्होंने अपरिपक्वता से डेविड हसी की गेंद पर सीधे मिड विकेट पर माइकल क्लार्क के हाथों में कैच दे दिया.

और फिर आया युवराज और मैच का सबसे तनावपूर्ण दौर. सुरेश रैना ने युवराज को जो स्टैंड-इन दिया, वह वैसा ही है जैसा के एल राहुल 2023 में कोहली को बचाने के लिए दे रहे हैं.

2011 संस्करण के केवल दो खिलाड़ी रोहित के नेतृत्व में टीम में बचे हैं - विराट कोहली और आर अश्विन. ऑस्ट्रेलियाई टीम भी उस क्वार्टरफाइनल से एक पीढ़ी दूर चली गई है और उस टीम का केवल एक ही सदस्य स्टीव स्मिथ बचा है.

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