नयी दिल्ली: भारतीय क्रिकेट के सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजों में शुमार हरभजन सिंह को 2015-16 में लगातार अच्छे प्रदर्शन के बाद भी राष्ट्रीय टीम में जगह नहीं मिलने का थोड़ा मलाल है लेकिन उन्हें अपने 23 साल के क्रिकेट करियर को लेकर कोई पछतावा नहीं है.
शुक्रवार को क्रिकेट के सभी प्रारूपों से संन्यास की घोषणा करने वाले हरभजन ने पीटीआई को दिये साक्षात्कार कहा कि उनके संन्यास की घोषणा का समय बेहतर हो सकता था लेकिन उन्होंने अपने क्रिकेट करियर में खोने से बहुत अधिक पाया है.
इस बातचीत में उन्होंने अपने सफर, राष्ट्रीय टीम के कप्तानों और 'मंकीगेट' जैसे विवादों के बारे में खुलकर बात की. संन्यास के समय के बारे में हरभजन ने कहा, "मुझे यह स्वीकार करना होगा कि समय सही नहीं है. मैंने काफी देर कर दी. आम तौर पर, मैं अपने पूरे जीवन में समय का पाबंद रहा हूं. शायद यही एक चीज है जिसमें मैंने देरी कर दी. बात बस इतनी सी है कि खेल के दौरान मैं 'टाइमिंग (समय)' से चूक गया."
हरभजन को इस बात का मलाल है कि 2015-16 में जब वह शानदार लय में थे तब उन्हें राष्ट्रीय टीम में जगह नहीं मिली लेकिन उन्हें किसी चीज पर पछतावा नहीं है.
हरभजन ने कहा, "किसी भी चीज को देखने के दो नजरिये होते है. अगर मैं जालंधर के एक छोटे से शहर के लड़के के रूप में खुद को देखूं तो जहां से मैंने शुरू किया था और मुझे जो सफलता मिली उसके बारे में बिल्कुल भी पता नहीं था. मैं केवल भगवान का शुक्रिया कर सकता हूं. मैं क्रिकेट के लिए काफी आभारी हूं."
उन्होंने कहा, "अगर दूसरे तरीके से देखूं तो यह 'यू होता तो क्या होता वाली बात होगी'. पांच साल पहले जो हुआ उसे लेकर पछतावा करने का अब कोई मतलब नहीं है. हां, मैं क्रिकेट के मैदान से संन्यास ले सकता था, मैं शायद कुछ समय पहले खेल को अलविदा कह सकता था. लेकिन मुझे कोई पछतावा नहीं क्योंकि जब पीछे मुड़कर देखता हूं तो मुझे जो मिला है, वह उससे कहीं अधिक है जो मैंने नहीं किया. अगर मैं यह देखूं कि मैंने कहां से शुरू किया है तो मन खराब करने की जरूरत नहीं है."
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मंकीगेट प्रकरण के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, "जाहिर है ये कुछ ऐसा था जिसकी आवश्यकता नहीं थी. उस दिन सिडनी में जो कुछ भी हुआ वह नहीं होना चाहिए था . लेकिन यह भूल जाना चाहिये कि किसने क्या कहा. आप और मैं दोनों जानते हैं कि सत्य के दो पहलू होते हैं. इस पूरे प्रकरण में किसी ने भी सच्चाई के मेरे पक्ष की परवाह नहीं की."
उन्होंने कहा, "उन कुछ हफ्तों में मेरी मानसिक स्थिति क्या थी, इसकी किसी ने परवाह नहीं की. मैंने कभी भी इस घटना कहानी के बारे में अपने पक्ष को विस्तार से नहीं बताया लेकिन लोगों को इसके बारे में मेरी आने वाली आत्मकथा में पता चलेगा. मैं जिस दौर से गुजरा था, वो किसी के साथ नहीं होना चाहिए था."
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 1998 से 2016 तक 18 वर्षों में 711 विकेट लेने वाले इस खिलाड़ी ने कहा कि उनका करियर उतार-चढ़ाव से भरा रहा लेकिन इस खेल के सर्वकालिक महान खिलाड़ियों के साथ खेलने के अनुभव को वह कभी नहीं भूलेंगे.
हरभजन ने कहा, "शानदार, यह उतार-चढाव से भरी यात्रा रही है. लेकिन जीवन में ही ऐसा ही होता है. समुद्र की लहरों में भी शिखर और गर्त होते हैं न? इतने लंबे समय तक भारत के लिए खेलने के लिए बहुत धन्य हूं. अगर आपने भारत के लिए 377 मैच खेले हैं तो यह खराब संख्या नहीं है."
उन्होंने कहा, "मैं आज जो भी हूं वह क्रिकेट की वजह से ही हूं. जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं तो यह पता चलता है कि मैं किस तरह के महान खिलाड़ियों के साथ खेला हूं. इसमें सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली, वीवीएस लक्ष्मण, वीरेंद्र सहवाग, एमएस धोनी, जहीर खान और अनिल कुंबले जैसे कुछ खिलाड़ी शामिल है. कुंबले का गेंदबाजी साथी होना सौभाग्य की बात थी. ऐसा महान खिलाड़ी जिसने मुझे बहुत कुछ सिखाया."
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ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 2001 टेस्ट श्रृंखला में 32 विकेट लेकर भारत की जीत सुनिश्चित करने और टी20 विश्व कप (2007) तथा 2011 एकदिवसीय विश्व कप में चैंपियन बनने में से सबसे यादगार लम्हे के बारे में पूछे जाने पर हरभजन ने कहा, "हर क्रिकेटर के लिए आपको एक ऐसा प्रदर्शन चाहिए, जिसके बाद लोग उसका समर्थन करें और गंभीरता से उसके खेल पर ध्यान दें. 2001 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ श्रृंखला मेरे लिए वही पल था. अगर उस समय की नंबर एक टीम के खिलाफ 32 विकेट और हैट्रिक नहीं होती, तो मेरे बारे में शायद ज्यादा लोग नहीं जानते."
उन्होंने कहा, "ऑस्ट्रेलिया श्रृंखला ने मेरा वजूद बनाया. वह मेरे अस्तित्व के साथ जुड़ा है. इसने साबित कर दिया कि मैं एक या दो श्रृंखला के बाद गायब नहीं होऊंगा. यह साबित कर दिया कि मैं इस जगह का हकदार हूं."
उन्होंने कहा, "साल 2000 में मैच फिक्सिंग कांड के बाद भारतीय क्रिकेट संकट में था. लोगों का खेल से विश्वास उठ गया था. उन्हें स्टेडियम में वापस लाने के लिए और उन्हें खेल से प्यार करने के लिए, आपको उन 32 (विकेट) या वीवीएस की 281 (रन की पारी) की जरूरत थी. यह एक ऐसा बदलाव था जिसकी भारतीय क्रिकेट को जरूरत थी. यह जादुई था."
हरभजन ने कहा कि उन्होंने संन्यास की घोषणा से पहले गांगुली से बात की. उन्होंने कहा, "मैंने बीसीसीआई अध्यक्ष गांगुली से बात की, जिन्होंने मुझे वह खिलाड़ी बनाया, जो मैं बना. मैंने उन्हें और बीसीसीआई सचिव जय शाह को अपने फैसले के बारे में बताया. दोनों ने मेरे बेहतर भविष्य की कामना की. मेरे सफर में बीसीसीआई ने बड़ी भूमिका निभाई और मैं उनका ऋणी हूं."
हरजभन ने अपना ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट गांगुली और धोनी की कप्तानी में खेला है और जब उनसे उनके करियर के संदर्भ में दोनों की तुलना के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, "यह मेरे लिए एक आसान सा जवाब है. गांगुली ने मुझे अपने करियर के उस मोड़ पर पकड़ रखा था जब मैं 'कोई नहीं था'. लेकिन जब धोनी कप्तान बने तो मैं ‘कोई’ था. इसलिए आपको इस बड़े अंतर को समझने की जरूरत है."
उन्होंने कहा, "दादा (गांगुली) जानते थे कि मुझमें हुनर है लेकिन यह नहीं पता था कि मैं प्रदर्शन करूंगा या नहीं. धोनी के मामले में, उन्हें पता था कि मैंने अच्छा प्रदर्शन किया है. जीवन और पेशे में, आपको उस व्यक्ति की आवश्यकता है, जो आपको सही समय पर मार्गदर्शन करे और दादा मेरे लिए वह व्यक्ति थे."