नई दिल्ली: सौरव गांगुली की अध्यक्षता वाली बीसीसीआई की टीम ने शुक्रवार को अपना एक साल पूरा कर लिया है. इस टीम के पास हालांकि आईपीएल के 13वें सीजन का आयोजन कराने के अलावा कोई और उपलब्धि नहीं है, जिसका कारण है कोरोनावायरस महामारी.
पिछले साल चारों अधिकारी बिना किसी विरोध के सर्वसम्मति से चुने गए थे. इस टीम ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गई प्रशासकों की समिति (सीओए) से 33 महीने बाद काम अपने हाथ में लिया था.
चूंकि टीम में से किसी को भी बीसीसीआई में काम करने का अनुभव नहीं था इसलिए सभी ने अपना समय लिया. वो सीख रहे थे कि कोविड ने मार्च में सब कुछ रोक दिया.
और अब इस टीम के सामने एक बड़ा सवाल 2020-21 घरेलू सीजन को आयोजित कराना है जो जनवरी में शुरू हो सकता है. बीसीसीआई की शीर्ष परिषद ने फैसला किया है कि रणजी ट्रॉफी को ही आयोजित किया जाएगा, इसके अलावा सीनियर महिला टूर्नामेंट को भी आयोजित किया जा सकता है.
एक राज्य संघ के अध्यक्ष ने एजेंसी से कहा, "सभी अधिकारी बीसीसीआई में नए थे. ईमादारी से कहूं तो उन्हें ज्यादा समय नहीं मिला. वो सैटल होते इससे पहले ही कोविड ने सब कुछ रोक दिया था. प्राथमिकता आईपीएल को बचाने की थी, जो उन्होंने किया. आईपीएल चालू है और पैसा आ रहा है."
उन्होंने कहा, "लेकिन वो ज्यादा कुछ गतिविधियां नहीं कर सके, जैसे की कोविड के कारण घरेलू क्रिकेट का आयोजन. साथ ही भारत के पूर्व कप्तान बीसीसीआई अध्यक्ष हैं तो हम उम्मीद कर रहे थे कि वो घरेलू टूर्नामेंट में नए प्रारूप लेकर आएंगे."
उनसे जब गांगुली की टीम को नंबर देने को कहा गया तो उन्होंने कहा, "कोई नंबर नहीं क्योंकि इनकी परीक्षा ही नहीं हुई. उन्हें काम करने के लिए पूरा साल मिलता तो नंबर दिए जाते."
वहीं पूर्वोत्तर के राज्य बीसीसीआई से दुखी हैं क्योंकि उन्हें उनके हिस्से का फंड नहीं मिला है.
पूर्वोत्तर के अधिकारी ने कहा, "सीओए की टीम ज्यादा प्रभावी थी. उन्होंने भी सट्टेबाजी प्रकरण के कारण सैटल होने में समय लिया था- सात-आठ महीने. और कोरोने से पांच महीने पहले बीसीसीआई के मौजूदा अधिकारियों ने कामकाज संभाल लिया था लेकिन हमने ज्यादा कुछ नहीं देखा. इसलिए हम दोनों में तुलना नहीं कर सकते. अगर कोरोना नहीं होता तो शायद ये टीम अच्छा करती."
पूर्वोत्तर के राज्यों में बीसीसीआई को मुद्दों पर ध्यान देने और सुलझाने की जरूरत है.
अधिकारी ने कहा, "2018-19 में सीओए ने उन लोगों को सीधा भुगतान किया था जिन्होंने टुर्नामेंट के आयोजनों में मदद की थी, चाहे वो होटल हो, ट्रांसपोर्टर हों. 2018-19, 2019-20 में बीसीसीआई से संबद्ध प्रत्येक राज्य संघ को 30-30 करोड़ रुपये प्रत्येक संघ को दिए जाने थे. लेकिन ये पूर्वोत्तर के राज्यों को नहीं दी गई है. बीसीसीआई को वेंडरों को देने वाली राशि काट बाकी का पैसा हमें देना चाहिए जिसे हम क्रिकेट के विकास में मदद करें."
उन्होंने कहा, "पिछले साल बीसीसीआई ने हर राज्य को एक सीजन के लिए 10.80 करोड़ रुपये दिए थे, लेकिन हमने टूर्नामेंट्स की मेजबानी के लिए 11 से 12 करोड़ रुपये खत्म किए थे. हमें बाकी का पैसा क्रिकेट के विकास के लिए चाहिए."