नई दिल्ली: विश्व रैंकिंग में शीर्ष पर जगह बनाने के बाद ओलंपिक में क्वॉलीफाई करने में नाकाम रहकर अर्श से फर्श का सफर तय करने वाले किदांबी श्रीकांत ने चार साल में सभी तरह के उतार-चढ़ाव देखे. यही कारण है कि इस अनुभवी बैडमिंटन खिलाड़ी ने विश्व चैंपियनशिप में ऐतिहासिक रजत पदक जीतने के बावजूद काफी जोश के साथ जश्न नहीं मनाया.
ऐसा इसलिए, क्योंकि श्रीकांत वापसी का जश्न मनाने वाले खिलाड़ियों में से नहीं हैं. इसकी जगह श्रीकांत ने वह धीरज दिखाया, जिसके कारण वह फिटनेस और फॉर्म से जूझने के दौरान भी वैश्विक मंच पर चुनौती पेश करते रहे. इस प्रतिष्ठित टूर्नामेंट के पुरुष एकल में यह भारत का पहला रजत पदक है, लेकिन श्रीकांत ने सपना साकार होने जैसी कोई बात नहीं कही.
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उन्होंने सिर्फ इतना कहा, मैंने इसके लिए कड़ी मेहनत की है और मुझे बेहद खुशी है कि मैं आज यहां खड़ा हूं. मुख्य कोच पुलेला गोपीचंद समझ सकते हैं कि 28 साल का यह खिलाड़ी किन चीजों से गुजरा है और उन्हें खुशी है कि महीनों तक जूझने और ओलंपिक के लिए क्वॉलीफाई नहीं कर पाने से दिल टूटने के बाद मिली सफलता से वह भावनाओं में नहीं बहे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐतिहासिक रजत पदक जीत पर किदाम्बी श्रीकांत को बधाई दी. साथ ही कहा, यह जीत कई खिलाड़ियों को प्रेरित करेगी और बैडमिंटन के प्रति उनमें लगाव बढ़ाएंगी.
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Congratulations to @srikidambi for winning a historic Silver Medal. This win will inspire several sportspersons and further interest in badminton. https://t.co/rxxkBDAwkP
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गोपीचंद ने पीटीआई से कहा, उसने जिस तरह की प्रतिक्रिया दी उससे मैं खुश हूं. वह अपना कैरियर खत्म होने के बाद इस सफलता का जश्न मनाएगा. अब समय है कि वह प्रदर्शन में निरंतरता पर ध्यान लगाए. अगले साल कई बड़े टूर्नामेंट हैं और उससे पहले सकारात्मकता हासिल करना अच्छी चीज है. टूर्नामेंट से पहले श्रीकांत को वीजा समस्या का सामना करना पड़ा और उनका टूर्नामेंट में खेलना भी तय नहीं था, फिर पदक जीतना तो भूल ही जाइए.
गुंटूर के रहने वाले श्रीकांत ने साल 2001 में अपने भाई नंदगोपाल के नक्शेकदम पर चलते हुए रैकेट थामा. वह जल्द ही पुलेला गोपीचंद अकादमी में ट्रेनिंग करने लगे और युगल खिलाड़ी के रूप में उन्हें शुरुआती सफलता मिली. मुख्य कोच की सलाह पर वह एकल मुकाबलों में उतरने लगे और साल 2013 में थाईलैंड ओपन का खिताब जीता.
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श्रीकांत ने चीन ओपन सुपर सीरीज प्रीमियर के फाइनल में पांच बार के विश्व और दो बार के ओलंपिक चैंपियन लिन डैन को हराया, जिससे रियो ओलंपिक में उनसे पदक की उम्मीद बंधी. श्रीकांत हालांकि रियो में क्वॉर्टर फाइनल से आगे नहीं बढ़ पाए और लिन डैन ने खेल के सबसे बड़े मंच पर हार का बदला चुकता किया. श्रीकांत ने साल 2017 में पांच सुपर सीरीज के फाइनल में जगह बनाकर चार खिताब जीते और एक कैलेंडर वर्ष में इतने खिताब जीतने वाले ली चोंग वेई, लिन डैन और चेन लोंग जैसे खिलाड़ियों की सूची में शामिल हो गए.
राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने कहा, बीडब्ल्यूएफ में पुरुष एकल में रजत पदक जीतने वाले पहले भारतीय बनने पर किदांबी श्रीकांत को बधाई. यह एक उत्कृष्ट उपलब्धि है. आपकी कड़ी मेहनत और समर्पण हमारे युवाओं के लिए प्रेरणा है. आपके उज्जवल भवष्यि के लिए मेरी शुभकामनाएं.
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Congratulations Kidambi Srikanth on becoming the first Indian to win a silver medal in men's singles at BWF World Badminton Championship. This is an outstanding feat. Your hard work and dedication are an inspiration for our youth. My best wishes for your bright future!
— President of India (@rashtrapatibhvn) December 20, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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पूरे देश ने उन्हें सिर-आंखों पर बैठाया, लेकिन इसी साल नवंबर में फ्रेंच ओपन के दौरान उनके घुटने में चोट लगी और राष्ट्रीय चैंपियनशिप के दौरान यह काफी बढ़ गई. श्रीकांत ने चोट से उबरते हुए ग्लास्गो में साल 2018 राष्ट्रमंडल खेलों का स्वर्ण पदक जीता और अप्रैल में एक हफ्ते के बीच विश्व रैंकिंग में शीर्ष पर जगह बनाई. इसके बाद श्रीकांत का बुरा दौर शुरू हुआ.
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घुटने और टखने से जुड़ी चोटों के कारण उनका प्रदर्शन प्रभावित हुआ. ओलंपिक क्वॉलीफिकेशन को ध्यान में रखने में श्रीकांत ने चोट से वापसी करने में जल्दबाजी की और यह फैसला गलत साबित हुआ. उनकी मूवमेंट धीमी थी और शॉट सटीक नहीं थे, जिसका नतीजा यह हुआ कि उन्होंने कई मुकाबले गंवाए और नवंबर 2019 में शीर्ष 10 से बाहर हो गए.
श्रीकांत ने बीच में कुछ शीर्ष खिलाड़ियों को हराया, लेकिन प्रदर्शन में निरंतरता की कमी थी. उन्होंने क्वॉर्टर फाइनल और सेमीफाइनल का सफर तय किया. लेकिन खिताब जीतने की जरूरत थी. कोविड-19 महामारी के कारण लगा कि उन्हें पूर्ण फिटनेस हासिल करने में फायदा हो सकता है, लेकिन दूसरी लहर के कारण तीन ओलंपिक क्वॉलीफायर रद्द होने के कारण श्रीकांत की टोक्यो ओलंपिक में क्वॉलीफाई करने की उम्मीद टूट गई.
अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट बहाल होने पर श्रीकांत बड़ी जीत दर्ज नहीं कर पाए, लेकिन अक्टूबर में फ्रेंच ओपन के दौरान विश्व चैंपियनशिप के दो बार के स्वर्ण पदक विजेता जापान के केंटो मोमोटा के खिलाफ तीन गेम तक कड़ा मुकाबला खेलकर उनका आत्मविश्वास बढ़ा. उन्होंने इसके बाद अगली दो प्रतियोगितओं हाइलो ओपन और इंडोनेशिया मास्टर्स के सेमीफाइनल में जगह बनाई.
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श्रीकांत को हालांकि भाग्य के सहारे की भी जरूरत थी. उन्हें यह स्पेन में मिला जब मोमोटा, जोनाथन क्रिस्टी और एंथोनी गिनटिंग के हटने के बाद वह अपने हाफ में शीर्ष वरीय खिलाड़ी बचे. श्रीकांत ने इसका पूरा फायदा उठाया और रविवार को विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतने का अपना सपना साकार किया. अगले साल काफी कुछ दांव पर लगा होगा और श्रीकांत अपनी वापसी की कहानी को और यादगार बनाने की कोशिश करेंगे.
उन्होंने कहा, मैं प्रयास करूंगा कि कड़ी मेहनत जारी रखूं, यह प्रक्रिया है. अगले साल एशियाई खेल, राष्ट्रमंडल खेल, विश्व चैंपियनशिप जैसे काफी टूर्नामेंट होने हैं. अनुभव से सीखने का प्रयास करूंगा और इस पर काम करूंगा.