मुंबई : मुंबई उच्च न्यायलय ने 'सोनी पिक्चर्स' के खिलाफ 'स्कैम 1992' वेब सीरीज़ को लेकर कथित आपराधिक मानहानि और प्रतिलिप्यधिकार के उल्लंघन की पुणे पुलिस द्वारा की जा रही जांच पर सोमवार को एक अंतरिम आदेश से रोक लगा दी.
न्यायमूर्ति एस एस शिंदे और न्यायमूर्ति एन जे जमादार की पीठ ने 'सोनी पिक्चर्स' के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता शिरीष गुप्ते की इन दलीलों पर संज्ञान लिया कि कानून के अनुसार, आपराधिक मानहानि के मामले में जांच उपाधीक्षक स्तर के अधिकारी द्वारा की जानी चाहिए, मौजूदा मामले में, एक निरीक्षक कथित अपराधों की जांच कर रहा है.
गुप्ते ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के पिछले फैसले मौजूद हैं, जिनके अनुसार भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 500 के तहत आपराधिक मानहानि का मामला संज्ञेय अपराध नहीं है और पुलिस को शिकायत मिलने के तुरंत बाद प्राथमिकी दर्ज करने की जरूरत नहीं है. फिर भी, पुणे पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की और दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के प्रावधानों के उल्लंघन करते हुए मामले की जांच कर रही है.
'सोनी लिव' ऐप के मालिक 'सोनी पिक्चर्स नेटवर्क इंडिया' ने इस महीने की शुरुआत में उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी और उसके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का आग्रह किया था. यह प्राथमिकी कराड अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक (केयूसीबी) की शिकायत पर पुणे पुलिस ने आपराधिक मानहानि और ट्रेडमार्क उल्लंघन के आरोप में दर्ज की है.
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याचिका के अनुसार, केयूसीबी ने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि 'स्कैम 1992' सीरीज़ के एक एपिसोड में, शिकायतकर्ता बैंक से मिलते जुलते लोगो को पृष्ठभूमि में प्रदर्शित किया गया था और इससे बैंक की प्रतिष्ठा को गंभीर क्षति पहुंची है. 'सोनी पिक्चर्स' ने अपनी याचिका में कहा कि सीरीज़ के हर एपिसोड की शुरुआत में सभी उत्तरदायित्व के खिलाफ खंडन प्रसारित किया गया था. उसने यह भी कहा कि प्राथमिकी बेबुनियाद और निरर्थक है.
अधिवक्ता गुप्ते की दलीलों के बाद राज्य सरकार के वकील जयेश याज्ञनिक ने उच्च न्यायालय को बताया कि राज्य को जांच में त्रुटि से अवगत कराया गया है. याज्ञनिक ने कहा, ' हमने संबंधित अधिकारियों से गलती सुधारने को कहा है. उपाधीक्षक स्तर के अधिकारी नए सिरे से जांच शुरू करेंगे'
उच्च न्यायालय ने कहा, 'इस स्तर पर विस्तार से बताने की जरूरत नहीं है' यह कहना काफी है कि जांच आगे नहीं बढ़ सकती. अगली सुनवाई तक जांच पर रोक के तौर पर अंतरिम राहत दी जाती है. अदालत ने 17 सितंबर तक मामले की सुनवाई टाल दी है.
(इनपुट- भाषा)