डायरेक्टर आकर्ष खुराना लम्बे समय से थिएटर से जुड़े हुए हैं और हाल ही में उन्होंने 'हाई जैक' बनाई थी, जिसे बॉक्स ऑफिस पर खास रिस्पॉन्स नहीं मिला, लेकिन जब उनकी फिल्म 'कारवां' का ट्रेलर रिलीज किया गया, तब से लेकर अभी तक फिल्म को देखने के लिए दर्शकों का उत्साह देखते बन रहा है. अब फिल्म रिलीज हो चुकी है. जानते हैं कैसी रही फिल्म?
कहानी: फिल्म की कहानी अविनाश (दुलकर सलमान ) को आई एक फ़ोन कॉल से शुरू होती है, जहां उसे बताया जाता है कि उसके पिताजी की डेथ हो गई है और कोरियर कंपनी की तरफ से किसी और की डेड बॉडी अविनाश को दे दी जाती है और फिर वह अपने पिता की डेड बॉडी की तलाश में अपने दोस्त शौकत (इरफ़ान) के साथ निकल पड़ता है, फिर इस कारवां में तान्या (मिथिला पालकर) की एंट्री होती है, यात्रा कई जगहों से गुजरते हुए ट्विस्ट और टर्न्स के साथ आगे बढ़ती है.
अब क्या अविनाश को सही बॉडी मिल पाती है, कहानी में आगे क्या होता है, और इस तरह पूरी यात्रा के दौरान अविनाश, तान्या और शौकत के रिश्तों का ताना-बाना बुना जाता है, ये सब कुछ जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.
फिल्म की कहानी और लिखावट कमाल की है, बिजॉय नाम्बियार ने बढ़िया तरह से इस जर्नी को लिखा है. हुसैन दलाल के संवाद और आकर्ष खुराना का स्क्रीनप्ले भी जबरदस्त है. जितने जोक्स आपने ट्रेलर में देखे हैं, उससे और कहीं ज्यादा इस फिल्म में देखने को मिलते हैं. हिंदी फिल्मों में इस फिल्म के साथ एंट्री मारने वाले दुलकर सलमान का अभिनय जबरदस्त है. उन्हें देखकर लगता है कि काफी सहज और सरल अभिनय करते हैं. उनके साथ यूट्यूब सेंसेशन मिथिला पालकर ने भी अच्छा काम किया है, दोनों की केमेस्ट्री लाजवाब है.
वहीं इरफ़ान की मौजूदगी फिल्म को अलग लेवल पर ले जाती हैं, जिस तरह से किरदार के साथ साथ संवादों को इरफ़ान ने निभाया है वो जबरदस्त है. बस इतना समझ लीजिए कि जब-जब इरफान खान आते हैं आपके चेहरे पर मुस्कान जरूर आ जाती है. फिल्म का आर्ट कमाल का है और सिनेमेटोग्राफी भी खूब है. फिल्म की अच्छी बात यह भी है कि इस की लेंथ 2 घंटे की है जो देखने में काफी आसान है और जब फिल्म खत्म होने वाली रहती है तो जहन में सिर्फ एक ही बात चलती है यह जर्नी और भी आगे बढ़ती रहनी चाहिए थी.
फिल्म की कमजोर कड़ी शायद इसके गाने हैं जो रिलीज से पहले हिट नहीं हो पाए थे, सेकंड हाफ में फिल्म की गति थोड़ी धीमी होती है लेकिन इरफान खान की मौजूदगी इसे और भी मनोरंजन से भरपूर बनाती है.
Review: हंसी-ठहाकों से सजी रिश्तों की यात्रा है 'कारवां' - mithila palkar
डायरेक्टर आकर्ष खुराना लम्बे समय से थिएटर से जुड़े हुए हैं और हाल ही में उन्होंने 'हाई जैक' बनाई थी, जिसे बॉक्स ऑफिस पर खास रिस्पॉन्स नहीं मिला, लेकिन जब उनकी फिल्म 'कारवां' का ट्रेलर रिलीज किया गया, तब से लेकर अभी तक फिल्म को देखने के लिए दर्शकों का उत्साह देखते बन रहा है. अब फिल्म रिलीज हो चुकी है. जानते हैं कैसी रही फिल्म?
कहानी: फिल्म की कहानी अविनाश (दुलकर सलमान ) को आई एक फ़ोन कॉल से शुरू होती है, जहां उसे बताया जाता है कि उसके पिताजी की डेथ हो गई है और कोरियर कंपनी की तरफ से किसी और की डेड बॉडी अविनाश को दे दी जाती है और फिर वह अपने पिता की डेड बॉडी की तलाश में अपने दोस्त शौकत (इरफ़ान) के साथ निकल पड़ता है, फिर इस कारवां में तान्या (मिथिला पालकर) की एंट्री होती है, यात्रा कई जगहों से गुजरते हुए ट्विस्ट और टर्न्स के साथ आगे बढ़ती है.
अब क्या अविनाश को सही बॉडी मिल पाती है, कहानी में आगे क्या होता है, और इस तरह पूरी यात्रा के दौरान अविनाश, तान्या और शौकत के रिश्तों का ताना-बाना बुना जाता है, ये सब कुछ जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.
फिल्म की कहानी और लिखावट कमाल की है, बिजॉय नाम्बियार ने बढ़िया तरह से इस जर्नी को लिखा है. हुसैन दलाल के संवाद और आकर्ष खुराना का स्क्रीनप्ले भी जबरदस्त है. जितने जोक्स आपने ट्रेलर में देखे हैं, उससे और कहीं ज्यादा इस फिल्म में देखने को मिलते हैं. हिंदी फिल्मों में इस फिल्म के साथ एंट्री मारने वाले दुलकर सलमान का अभिनय जबरदस्त है. उन्हें देखकर लगता है कि काफी सहज और सरल अभिनय करते हैं. उनके साथ यूट्यूब सेंसेशन मिथिला पालकर ने भी अच्छा काम किया है, दोनों की केमेस्ट्री लाजवाब है.
वहीं इरफ़ान की मौजूदगी फिल्म को अलग लेवल पर ले जाती हैं, जिस तरह से किरदार के साथ साथ संवादों को इरफ़ान ने निभाया है वो जबरदस्त है. बस इतना समझ लीजिए कि जब-जब इरफान खान आते हैं आपके चेहरे पर मुस्कान जरूर आ जाती है. फिल्म का आर्ट कमाल का है और सिनेमेटोग्राफी भी खूब है. फिल्म की अच्छी बात यह भी है कि इस की लेंथ 2 घंटे की है जो देखने में काफी आसान है और जब फिल्म खत्म होने वाली रहती है तो जहन में सिर्फ एक ही बात चलती है यह जर्नी और भी आगे बढ़ती रहनी चाहिए थी.
फिल्म की कमजोर कड़ी शायद इसके गाने हैं जो रिलीज से पहले हिट नहीं हो पाए थे, सेकंड हाफ में फिल्म की गति थोड़ी धीमी होती है लेकिन इरफान खान की मौजूदगी इसे और भी मनोरंजन से भरपूर बनाती है.
डायरेक्टर आकर्ष खुराना लम्बे समय से थिएटर से जुड़े हुए हैं और हाल ही में उन्होंने 'हाई जैक' बनाई थी, जिसे बॉक्स ऑफिस पर खास रिस्पॉन्स नहीं मिला, लेकिन जब उनकी फिल्म 'कारवां' का ट्रेलर रिलीज किया गया, तब से लेकर अभी तक फिल्म को देखने के लिए दर्शकों का उत्साह देखते बन रहा है. अब फिल्म रिलीज हो चुकी है. जानते हैं कैसी रही फिल्म?
कहानी: फिल्म की कहानी अविनाश (दुलकर सलमान ) को आई एक फ़ोन कॉल से शुरू होती है, जहां उसे बताया जाता है कि उसके पिताजी की डेथ हो गई है और कोरियर कंपनी की तरफ से किसी और की डेड बॉडी अविनाश को दे दी जाती है और फिर वह अपने पिता की डेड बॉडी की तलाश में अपने दोस्त शौकत (इरफ़ान) के साथ निकल पड़ता है, फिर इस कारवां में तान्या (मिथिला पालकर) की एंट्री होती है, यात्रा कई जगहों से गुजरते हुए ट्विस्ट और टर्न्स के साथ आगे बढ़ती है.
अब क्या अविनाश को सही बॉडी मिल पाती है, कहानी में आगे क्या होता है, और इस तरह पूरी यात्रा के दौरान अविनाश, तान्या और शौकत के रिश्तों का ताना-बाना बुना जाता है, ये सब कुछ जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.
फिल्म की कहानी और लिखावट कमाल की है, बिजॉय नाम्बियार ने बढ़िया तरह से इस जर्नी को लिखा है. हुसैन दलाल के संवाद और आकर्ष खुराना का स्क्रीनप्ले भी जबरदस्त है. जितने जोक्स आपने ट्रेलर में देखे हैं, उससे और कहीं ज्यादा इस फिल्म में देखने को मिलते हैं. हिंदी फिल्मों में इस फिल्म के साथ एंट्री मारने वाले दुलकर सलमान का अभिनय जबरदस्त है. उन्हें देखकर लगता है कि काफी सहज और सरल अभिनय करते हैं. उनके साथ यूट्यूब सेंसेशन मिथिला पालकर ने भी अच्छा काम किया है, दोनों की केमेस्ट्री लाजवाब है.
वहीं इरफ़ान की मौजूदगी फिल्म को अलग लेवल पर ले जाती हैं, जिस तरह से किरदार के साथ साथ संवादों को इरफ़ान ने निभाया है वो जबरदस्त है. बस इतना समझ लीजिए कि जब-जब इरफान खान आते हैं आपके चेहरे पर मुस्कान जरूर आ जाती है. फिल्म का आर्ट कमाल का है और सिनेमेटोग्राफी भी खूब है. फिल्म की अच्छी बात यह भी है कि इस की लेंथ 2 घंटे की है जो देखने में काफी आसान है और जब फिल्म खत्म होने वाली रहती है तो जहन में सिर्फ एक ही बात चलती है यह जर्नी और भी आगे बढ़ती रहनी चाहिए थी.
फिल्म की कमजोर कड़ी शायद इसके गाने हैं जो रिलीज से पहले हिट नहीं हो पाए थे, सेकंड हाफ में फिल्म की गति थोड़ी धीमी होती है लेकिन इरफान खान की मौजूदगी इसे और भी मनोरंजन से भरपूर बनाती है.
Conclusion: