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लैंगिक समानता की बात करती है विद्या बालन की शॉर्ट फिल्म 'नटखट'

शान व्यास द्वारा निर्देशित और रॉनी स्क्रूवाला व विद्या बालन द्वारा निर्मित शॉर्ट फिल्म 'नटखट' लैंगिक समानता की बात करती है. फिल्म का प्रीमियर यूट्यूब पर 'वी आर वन : ए ग्लोबल फिल्म फेस्टिवल' के हिस्से के रूप में बीते 2 जून को हुआ था.

नटखट शॉर्ट फिल्म लैंगिक समानता
नटखट शॉर्ट फिल्म लैंगिक समानता
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Published : Jun 9, 2020, 6:01 PM IST

मुंबई: 'नटखट' एक शॉर्ट फिल्म है, जिसका प्रीमियर यूट्यूब पर 'वी आर वन : ए ग्लोबल फिल्म फेस्टिवल' के हिस्से के रूप में बीते 2 जून को हुआ था. शान व्यास द्वारा निर्देशित और रॉनी स्क्रूवाला व विद्या बालन द्वारा निर्मित यह लघु फिल्म लैंगिक समानता की बात करती है.

इस लघु फिल्म की पटकथा अनुकम्पा हर्ष और शान व्यास ने सहयोगी निर्माता के रूप में सनाया ईरानी जौहरी के साथ मिलकर लिखी है. इस फिल्म में विद्या बालन और बाल कलाकार सानिका पटेल ने मुख्य भूमिका निभाई है.

फिल्म की कहानी एक मां के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने बेटे को लैंगिक समानता के बारे में शिक्षित करती है. इसमें दर्शाया गया है कि किस तरह बच्चों के मन में मर्दानगी और पितृसत्ता की बात छोटी उम्र में ही डाल दी जाती है. फिल्म में हमारे वर्तमान पितृसत्तात्मक वातावरण को भी दर्शाया गया है और यह भी बताया गया है कि इसे बदलने के लिए हमें बदलाव की सख्त जरूरत है.

शान व्यास का कहना है कि विद्या बालन का किरदार निश्चित रूप से दर्शकों को विभिन्न मुद्दों पर सोचने के लिए मजबूर कर देगा.

फिल्म के कॉन्सेप्ट के बारे में बात करते हुए निर्देशक शान व्यास कहते हैं, "नटखट एक ऐसी फिल्म है जो इस तथ्य को सामने लाती है कि हम महिला उत्पीड़न को खत्म करने के लिए कितने भी सुधार कर लें और संस्थाएं स्थापित कर लें, लेकिन कम उम्र में बच्चों के उचित पालन-पोषण और बच्चों को समानता का महत्व सिखाने से ही बुनियादी तौर पर गहरा बदलाव लाया जा सकता है."

निर्देशक आगे कहते हैं, "जब मैं और मेरी सह-निर्माता अनुकम्पा हर्ष फिल्म के लिए शोध करने निकले, तो हमने महसूस किया कि एक बच्चे के लिए उपलब्ध हर संकेत पुरुषों और महिलाओं के बीच एक शक्ति-अंतर का प्रतिनिधि है. अपने चारों ओर देखने पर उसे पुलिसकर्मियों, सेना के जवान, पुरुष राजनीतिज्ञ, स्कूल में पुरुष प्रिंसिपल और यहां तक कि एंटरटेनमेंट में भी हीरो की भूमिका में पुरुष ही नजर आता है."

बच्चों पर प्रभाव डालने वाली बाहरी बातों के बारे में बात करते हुए शान कहते हैं, "ये सामाजिक ताकतें बहुत मजबूत हैं और माता-पिता इस पर नियंत्रण नहीं कर सकते हैं. बच्चे इसे आत्मसात करते हैं और उनके मन में यह बात विशेष जगह बना लेती है कि सिर्फ पुरुष ही बेहतर हो सकते हैं. एक बात जो माता-पिता बदल सकते हैं, वह यह है कि किस तरह उनके अपने बच्चे इसे और इस असमानता को देखते हैं."

इनपुट-आईएएनएस

मुंबई: 'नटखट' एक शॉर्ट फिल्म है, जिसका प्रीमियर यूट्यूब पर 'वी आर वन : ए ग्लोबल फिल्म फेस्टिवल' के हिस्से के रूप में बीते 2 जून को हुआ था. शान व्यास द्वारा निर्देशित और रॉनी स्क्रूवाला व विद्या बालन द्वारा निर्मित यह लघु फिल्म लैंगिक समानता की बात करती है.

इस लघु फिल्म की पटकथा अनुकम्पा हर्ष और शान व्यास ने सहयोगी निर्माता के रूप में सनाया ईरानी जौहरी के साथ मिलकर लिखी है. इस फिल्म में विद्या बालन और बाल कलाकार सानिका पटेल ने मुख्य भूमिका निभाई है.

फिल्म की कहानी एक मां के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने बेटे को लैंगिक समानता के बारे में शिक्षित करती है. इसमें दर्शाया गया है कि किस तरह बच्चों के मन में मर्दानगी और पितृसत्ता की बात छोटी उम्र में ही डाल दी जाती है. फिल्म में हमारे वर्तमान पितृसत्तात्मक वातावरण को भी दर्शाया गया है और यह भी बताया गया है कि इसे बदलने के लिए हमें बदलाव की सख्त जरूरत है.

शान व्यास का कहना है कि विद्या बालन का किरदार निश्चित रूप से दर्शकों को विभिन्न मुद्दों पर सोचने के लिए मजबूर कर देगा.

फिल्म के कॉन्सेप्ट के बारे में बात करते हुए निर्देशक शान व्यास कहते हैं, "नटखट एक ऐसी फिल्म है जो इस तथ्य को सामने लाती है कि हम महिला उत्पीड़न को खत्म करने के लिए कितने भी सुधार कर लें और संस्थाएं स्थापित कर लें, लेकिन कम उम्र में बच्चों के उचित पालन-पोषण और बच्चों को समानता का महत्व सिखाने से ही बुनियादी तौर पर गहरा बदलाव लाया जा सकता है."

निर्देशक आगे कहते हैं, "जब मैं और मेरी सह-निर्माता अनुकम्पा हर्ष फिल्म के लिए शोध करने निकले, तो हमने महसूस किया कि एक बच्चे के लिए उपलब्ध हर संकेत पुरुषों और महिलाओं के बीच एक शक्ति-अंतर का प्रतिनिधि है. अपने चारों ओर देखने पर उसे पुलिसकर्मियों, सेना के जवान, पुरुष राजनीतिज्ञ, स्कूल में पुरुष प्रिंसिपल और यहां तक कि एंटरटेनमेंट में भी हीरो की भूमिका में पुरुष ही नजर आता है."

बच्चों पर प्रभाव डालने वाली बाहरी बातों के बारे में बात करते हुए शान कहते हैं, "ये सामाजिक ताकतें बहुत मजबूत हैं और माता-पिता इस पर नियंत्रण नहीं कर सकते हैं. बच्चे इसे आत्मसात करते हैं और उनके मन में यह बात विशेष जगह बना लेती है कि सिर्फ पुरुष ही बेहतर हो सकते हैं. एक बात जो माता-पिता बदल सकते हैं, वह यह है कि किस तरह उनके अपने बच्चे इसे और इस असमानता को देखते हैं."

इनपुट-आईएएनएस

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