1930 में सिनेमा जगत में एक ऐसा दौर शुरू हुआ, जिसमें एक फिल्म के जरिए पहले अंतर्राष्ट्रीय स्टारडम की नीव रखी गई. जी हां...."द ब्लू एंजल" एक ऐसी ही फिल्म है. जिसे सिनेमा जगत में हमेशा ही एक ऐतिहासिक पल के रुप में याद किया जाता है.
पहली बार किसी फिल्म को मिला अंतर्राष्ट्रीय स्टारडम.....
बता दें कि उस दौर में मार्लिन डिट्रिच ही एक ऐसी अभिनेत्री और गायिका थी, जिन्होंने पहली बार किसी फिल्म को अंतर्राष्ट्रीय स्टारडम तक पहुंचाया था.
एमिल जेनिंग्स ने जीता पहला अकादमी पुरस्कार....
1929 ये वो दौर था जिसे ध्वनि युग के नाम से जाना जाता था. इस युग में इस तरह की फिल्म बनाना आसान नहीं था, लेकिन फिर भी ये सफल रही और सिनेमा जगत को नई पहचान मिली. साथ ही इस फिल्म के जरिए कई नए चहरे उभर कर सामने आए. जिनमें से एक एमिल जेनिंग्स थे. एमिल एक जर्मन अभिनेता थे, जिन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए पहला अकादमी पुरस्कार जीता था.
दरअसल, ये पुरस्कार उन्हें उनकी फिल्म अंतिम आदेश और मार्ग के लिए दिया गया था. इसके बाद उनकी फिल्म द लास्ट लाफ एंड फॉस्ट डिट्रीचर्स ने उन्हें रातों-रात स्टारडम के शिखर पर पहुंचा दिया था. फिर क्या एमिल ने और मेहनत की और कई मूक स्थलों में अभिनय किया. जिसके जरिए कई वितरकों को फिल्म की पुनरावृत्ति के लिए प्रेरित किया गया.
1930 के दौर की सबसे ग्लैमरस अभिनेत्री.....
एमिल जेनिंग्स के साथ-साथ एक और शख्सियत थी, जिन्होंने सालों सिनेमा जगत पर राज किया. जी हां...हॉलीवुड में पनपने वाली पहली जर्मन अभिनेत्री के रूप में मार्लिन डिट्रिच को सबसे अच्छी तरह से जाना जाता है. 1930 और 1940 के दशक की सबसे ग्लैमरस प्रमुख महिलाओं में से एक, मार्लिन डिट्रिच को उनकी सुलगती हुई सेक्स अपील, विशिष्ट आवाज और असामान्य व्यक्तिगत शैली के लिए याद किया जाता है.
हालांकि, उन्होंने अपनी प्रतिभा का उपयोग करते हुए युद्ध के प्रयास में महत्वपूर्ण योगदान किया था. साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मार्लिन ने सामरिक सेवाओं के कार्यालय (आज के सीआईए के अग्रदूत) के लिए जर्मन में कई नाज़ी विरोधी एल्बमों को रिकॉर्ड किया था.
बता दें कि एल्बम ओएसएस मोरेल ऑपरेशंस ब्रांच द्वारा एक प्रयास का एक हिस्सा था, जिसे एक प्रोपेगैंडा के रुप में इस्तेमाल किया जाता था. दरअसल इसके जरिए जर्मन सैनिकों का मनोबल बढाया जाता था.
सिनेमा जगत में 1 अप्रैल को बना था दुनिया का सबसे अनोखा रिकॉर्ड..... - सिनेमा जगत
भारत और विश्व इतिहास में 1 अप्रैल का अपना ही एक खास महत्व है, क्योंकि इस दिन कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटी जो इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज होकर रह गईं. चलिए डालते हैं उनपर एक नज़र...
1930 में सिनेमा जगत में एक ऐसा दौर शुरू हुआ, जिसमें एक फिल्म के जरिए पहले अंतर्राष्ट्रीय स्टारडम की नीव रखी गई. जी हां...."द ब्लू एंजल" एक ऐसी ही फिल्म है. जिसे सिनेमा जगत में हमेशा ही एक ऐतिहासिक पल के रुप में याद किया जाता है.
पहली बार किसी फिल्म को मिला अंतर्राष्ट्रीय स्टारडम.....
बता दें कि उस दौर में मार्लिन डिट्रिच ही एक ऐसी अभिनेत्री और गायिका थी, जिन्होंने पहली बार किसी फिल्म को अंतर्राष्ट्रीय स्टारडम तक पहुंचाया था.
एमिल जेनिंग्स ने जीता पहला अकादमी पुरस्कार....
1929 ये वो दौर था जिसे ध्वनि युग के नाम से जाना जाता था. इस युग में इस तरह की फिल्म बनाना आसान नहीं था, लेकिन फिर भी ये सफल रही और सिनेमा जगत को नई पहचान मिली. साथ ही इस फिल्म के जरिए कई नए चहरे उभर कर सामने आए. जिनमें से एक एमिल जेनिंग्स थे. एमिल एक जर्मन अभिनेता थे, जिन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए पहला अकादमी पुरस्कार जीता था.
दरअसल, ये पुरस्कार उन्हें उनकी फिल्म अंतिम आदेश और मार्ग के लिए दिया गया था. इसके बाद उनकी फिल्म द लास्ट लाफ एंड फॉस्ट डिट्रीचर्स ने उन्हें रातों-रात स्टारडम के शिखर पर पहुंचा दिया था. फिर क्या एमिल ने और मेहनत की और कई मूक स्थलों में अभिनय किया. जिसके जरिए कई वितरकों को फिल्म की पुनरावृत्ति के लिए प्रेरित किया गया.
1930 के दौर की सबसे ग्लैमरस अभिनेत्री.....
एमिल जेनिंग्स के साथ-साथ एक और शख्सियत थी, जिन्होंने सालों सिनेमा जगत पर राज किया. जी हां...हॉलीवुड में पनपने वाली पहली जर्मन अभिनेत्री के रूप में मार्लिन डिट्रिच को सबसे अच्छी तरह से जाना जाता है. 1930 और 1940 के दशक की सबसे ग्लैमरस प्रमुख महिलाओं में से एक, मार्लिन डिट्रिच को उनकी सुलगती हुई सेक्स अपील, विशिष्ट आवाज और असामान्य व्यक्तिगत शैली के लिए याद किया जाता है.
हालांकि, उन्होंने अपनी प्रतिभा का उपयोग करते हुए युद्ध के प्रयास में महत्वपूर्ण योगदान किया था. साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मार्लिन ने सामरिक सेवाओं के कार्यालय (आज के सीआईए के अग्रदूत) के लिए जर्मन में कई नाज़ी विरोधी एल्बमों को रिकॉर्ड किया था.
बता दें कि एल्बम ओएसएस मोरेल ऑपरेशंस ब्रांच द्वारा एक प्रयास का एक हिस्सा था, जिसे एक प्रोपेगैंडा के रुप में इस्तेमाल किया जाता था. दरअसल इसके जरिए जर्मन सैनिकों का मनोबल बढाया जाता था.
1930 में सिनेमा जगत में एक ऐसा दौर शुरू हुआ, जिसमें एक फिल्म के जरिए पहले अंतर्राष्ट्रीय स्टारडम की नीव रखी गई. जी हां...."द ब्लू एंजल" एक ऐसी ही फिल्म है. जिसे सिनेमा जगत में हमेशा ही एक ऐतिहासिक पल के रुप में याद किया जाता है.
पहली बार किसी फिल्म को मिला अंतर्राष्ट्रीय स्टारडम.....
बता दें कि उस दौर में मार्लिन डिट्रिच ही एक ऐसी अभिनेत्री और गायिका थी, जिन्होंने पहली बार किसी फिल्म को अंतर्राष्ट्रीय स्टारडम तक पहुंचाया था.
एमिल जेनिंग्स ने जीता पहला अकादमी पुरस्कार....
1929 ये वो दौर था जिसे ध्वनि युग के नाम से जाना जाता था. इस युग में इस तरह की फिल्म बनाना आसान नहीं था, लेकिन फिर भी ये सफल रही और सिनेमा जगत को नई पहचान मिली. साथ ही इस फिल्म के जरिए कई नए चहरे उभर कर सामने आए. जिनमें से एक एमिल जेनिंग्स थे. एमिल एक जर्मन अभिनेता थे, जिन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए पहला अकादमी पुरस्कार जीता था.
दरअसल, ये पुरस्कार उन्हें उनकी फिल्म अंतिम आदेश और मार्ग के लिए दिया गया था. इसके बाद उनकी फिल्म द लास्ट लाफ एंड फॉस्ट डिट्रीचर्स ने उन्हें रातों-रात स्टारडम के शिखर पर पहुंचा दिया था. फिर क्या एमिल ने और मेहनत की और कई मूक स्थलों में अभिनय किया. जिसके जरिए कई वितरकों को फिल्म की पुनरावृत्ति के लिए प्रेरित किया गया.
1930 के दौर की सबसे ग्लैमरस अभिनेत्री.....
एमिल जेनिंग्स के साथ-साथ एक और शख्सियत थी, जिन्होंने सालों सिनेमा जगत पर राज किया. जी हां...हॉलीवुड में पनपने वाली पहली जर्मन अभिनेत्री के रूप में मार्लिन डिट्रिच को सबसे अच्छी तरह से जाना जाता है. 1930 और 1940 के दशक की सबसे ग्लैमरस प्रमुख महिलाओं में से एक, मार्लिन डिट्रिच को उनकी सुलगती हुई सेक्स अपील, विशिष्ट आवाज और असामान्य व्यक्तिगत शैली के लिए याद किया जाता है.
हालांकि, उन्होंने अपनी प्रतिभा का उपयोग करते हुए युद्ध के प्रयास में महत्वपूर्ण योगदान किया था. साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मार्लिन ने सामरिक सेवाओं के कार्यालय (आज के सीआईए के अग्रदूत) के लिए जर्मन में कई नाज़ी विरोधी एल्बमों को रिकॉर्ड किया था.
बता दें कि एल्बम ओएसएस मोरेल ऑपरेशंस ब्रांच द्वारा एक प्रयास का एक हिस्सा था, जिसे एक प्रोपेगैंडा के रुप में इस्तेमाल किया जाता था. दरअसल इसके जरिए जर्मन सैनिकों का मनोबल बढाया जाता था.
Conclusion: