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कोलकाता में 'सुपर 30' की स्पेशल स्क्रीनिंग, ऋतिक की दमदार एक्टिंग ने जीता सबका दिल

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Published : Jul 11, 2019, 9:06 PM IST

Super 30 Movie Review

कोलकाता: अपनी मेहनत से अपने सपनों को सच करने की ताकत बहुत कम लोगों में होती है. कहते हैं कि सपनों को देखने में कोई बुराई नहीं होती, लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए जो संर्घष करना पड़ता है उसके लिए हर मुश्किल को पार करना पड़ता है. इस कलयुग में बहुत सी ऐसी हस्तियां हैं, जिन्होंने अपने दम पर अपनी पहचान बनाई है, जिनमें से एक हैं आंनद कुमार.

जी हां...आंनद कुमार एक ऐसा नाम है जिससे कुछ ही लोग परिचित होंगे. आंनद एक गणितग्य होने के साथ-साथ विभिन्न राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में संपादक भी है. इन सब से अलग इनकी पहचान एक संस्थान "सपुर 30" के संस्थापक के रुप में भी है. यह संस्थान बिहार में इनकें द्वारा सन 2002 में शुरू किया गया था. इसका मुख्य उद्देश्य गरीब छात्रों को आईआईटी और जेईई में प्रवेश के लिए तैयारी करवाना है.

इनकी जिंदगी की यात्रा को रुपहले पर्दे पर बेहतरीन तरीके से दिखाएंगे विकास बहल. जी हां...उनके द्वारा निर्देशित इस फिल्म में ऋतिक रोशन आंनद की भूमिका में नज़र आ रहे हैं. एक तरफ जहां ऋतिक की फिल्म 'सुपर 30' कल यानी 12 जुलाई को सिनेमाघरों में दस्तक देने को तैयार है. वहीं आज कोलकाता में इस फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग रखी गई. इस दौरान आंनद की जिंदगी के पहलू नजर आए.


तो चलिए आंनद की जिंदगी का संर्घष, ऋतिक का अभिनय और कई पहलुओं पर नजर डालते हैं.....

  • फिल्म जगत ने हमेशा से फिल्मी नायकों और अनोखी कहानियों से दर्शकों को उम्मीद और प्रेरणा दी है. इसमें कोई दो राय नहीं कि सिनेमा ने आम जनमानस को बहुत ज्यादा प्रभावित किया है, मगर जब ठीक इसका उल्टा होता है, तो नजारा कुछ और सुखद हो जाता है. असली जीवन के नायकों की कहानियां फिल्मों के जरिए लोगों तक पहुंचती है और दर्शक हैरान रह जाते है कि इन अनसंग हीरोज ने समाज को किस तरह से बदला है. ऐसी ही कहानी है 'सुपर 30' की, जो जाने-माने गणितज्ञ आनंद कुमार की जिंदगी पर आधारित है.
  • आनंद कुमार पटना के गणित के वैसे टीचर हैं, जिन्होंने निचले तबके के अति अभावग्रस्त कुशाग्र बच्चों को फ्री कोचिंग देकर आईएआईटी में उनके दाखिले का मार्ग प्रशस्त किया. जिस वक्त शिक्षा मंत्री श्रीराम सिंह (पंकज त्रिपाठी) आनंद कुमार (रितिक रोशन) को गणित की प्रतियोगिता के लिए रामानुजन मेडल दे रहे होते हैं, उस वक्त भी आनंद कुमार की निगाहें बगल में खड़े लड़के के हाथ की किताब पर होती है.
  • आनंद कुमार को अपनी बुद्धिमता और कड़ी मेहनत के बल पर कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में एडमिशन के लिए बुलावा आता है, मगर गरीबी उसका रास्ता रोक लेती है। बेटे को कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी न भेज पाने का गम आनंद कुमार के डाकिया पिता (वीरेन्द्र सक्सेना) को खा जाता है और उसके पेट की आग बुझाने के लिए उसे पापड़ तक बेचने पड़ते हैं. उसकी प्रेमिका रितु (मृणाल ठाकुर) भी उससे मुंह मोड़ लेती है. फिर एक दिन आनंद कुमार को लल्लन जी (आदित्य श्रीवास्तव) अपनी कोचिंग क्लासेज का स्टार टीचर बना कर पेश करते हैं और तब आनंद कुमार के गरीबी के दिन अमीरी की ऐश में बदल जाते हैं, मगर एक दिन उसे अहसास होता है कि वह सिर्फ राजा के बच्चों को राजा बनाने में लगा हुआ है.
    • " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="">
  • अर्जुन सरीखे साधन-सम्पन्न बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए उसे एकलव्य बनाकर उसका अंगूठा काटा जा रहा है. बस उसके बाद आनंद कुमार की सोच बदल जाती है। वह 'सुपर 30' की शुरुआत करता है, जिसके जरिए वह 30 ऐसे बच्चों को आईआईटी की तैयारी कराने का दुष्कर फैसला करता है, जिनके पास शिक्षा पाने की लगन तो है लेकिन साधन नहीं हैं. उसके इस फैसले में उसका भाई प्रणव कुमार (नंदीश सिंह) उसका पूरा साथ देता है, मगर उसका यह फैसला बहुत ही कांटों भरा साबित होता है.
  • निर्देशक विकास बहल की फिल्म का फर्स्ट हाफ काफी सधा हुआ है, मगर सेकंड हाफ में कहानी थोड़ी मेलोड्रमैटिक होकर खिंच जाती है. उन्होंने आनंद कुमार से जुड़े विवादों को अपनी कहानी से दूर ही रखा है, अतः उनसे जुड़े आरोपों का फिल्म में कोई जवाब नहीं मिलता, मगर इसमें कोई शक नहीं कि आनंद कुमार के जीवन के संघर्षों, परिवार के साथ उनके जज्बाती रिश्तों और गरीब बच्चों को रास्ते से उठाकर आईआईटियंस बनाने के जज्बे को वे अपने निर्देशन के जरिए बखूबी निभा ले गए हैं.
  • 'सुपर 30' बच्चों की भूख, बेबसी और उनके अविष्कारों को विकास ने कहानी में इमोशनल ढंग से पिरोया है. 'राजा का बेटा राजा नहीं रहेगा', 'आपत्ति से अविष्कार का जन्म होता है' जैसे संवाद तालियां पीटने पर मजबूर कर देते हैं. क्लाइमैक्स और असरकारक हो सकता था.
  • रितिक रोशन आनंद कुमार के किरदार के सत्व को समझकर उसमें पूरी तरह से घुलमिल गए हैं. हालांकि, शुरुआत के कुछ मिनट जब हम इस इस ग्रीक गॉड कहलाने वाले सुपर स्टार को टैन और डी-ग्लैम अवतार में देसी भाषा बोलते देखते हैं, तो थोड़ा अलग लगता है, मगर फिर रितिक अपने समर्थ अभिनय के बल पर किरदार और कहानी के साथ तारतम्यता साध लेते हैं. वे हमें एक ऐसे सफर पर ले जाते हैं, जो आंसुओं के साथ उम्मीद भी देती है.
  • मृणाल ने छोटी-सी भूमिका में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. नंदीश सिंह प्रणव कुमार की भूमिका में एकदम फिट बैठे हैं. शिक्षा मंत्री के रूप में पंकज त्रिपाठी ने खूब मनोरंजन किया है. पिता के रूप में वीरेन्द्र सक्सेना का अभिनय दिल को छू जाता है. आदित्य श्रीवास्तव, अमित साद और विजय वर्मा ने अच्छा काम किया है.
  • अजय-अतुल के संगीत में उदित नारायण और श्रेया घोषाल का गाया, 'जुगरफिया' गाना मधुर बन पड़ा है. रेडियो मिर्ची के चार्ट पर यह गाना दसवें पायदान पर है.

कोलकाता: अपनी मेहनत से अपने सपनों को सच करने की ताकत बहुत कम लोगों में होती है. कहते हैं कि सपनों को देखने में कोई बुराई नहीं होती, लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए जो संर्घष करना पड़ता है उसके लिए हर मुश्किल को पार करना पड़ता है. इस कलयुग में बहुत सी ऐसी हस्तियां हैं, जिन्होंने अपने दम पर अपनी पहचान बनाई है, जिनमें से एक हैं आंनद कुमार.

जी हां...आंनद कुमार एक ऐसा नाम है जिससे कुछ ही लोग परिचित होंगे. आंनद एक गणितग्य होने के साथ-साथ विभिन्न राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में संपादक भी है. इन सब से अलग इनकी पहचान एक संस्थान "सपुर 30" के संस्थापक के रुप में भी है. यह संस्थान बिहार में इनकें द्वारा सन 2002 में शुरू किया गया था. इसका मुख्य उद्देश्य गरीब छात्रों को आईआईटी और जेईई में प्रवेश के लिए तैयारी करवाना है.

इनकी जिंदगी की यात्रा को रुपहले पर्दे पर बेहतरीन तरीके से दिखाएंगे विकास बहल. जी हां...उनके द्वारा निर्देशित इस फिल्म में ऋतिक रोशन आंनद की भूमिका में नज़र आ रहे हैं. एक तरफ जहां ऋतिक की फिल्म 'सुपर 30' कल यानी 12 जुलाई को सिनेमाघरों में दस्तक देने को तैयार है. वहीं आज कोलकाता में इस फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग रखी गई. इस दौरान आंनद की जिंदगी के पहलू नजर आए.


तो चलिए आंनद की जिंदगी का संर्घष, ऋतिक का अभिनय और कई पहलुओं पर नजर डालते हैं.....

  • फिल्म जगत ने हमेशा से फिल्मी नायकों और अनोखी कहानियों से दर्शकों को उम्मीद और प्रेरणा दी है. इसमें कोई दो राय नहीं कि सिनेमा ने आम जनमानस को बहुत ज्यादा प्रभावित किया है, मगर जब ठीक इसका उल्टा होता है, तो नजारा कुछ और सुखद हो जाता है. असली जीवन के नायकों की कहानियां फिल्मों के जरिए लोगों तक पहुंचती है और दर्शक हैरान रह जाते है कि इन अनसंग हीरोज ने समाज को किस तरह से बदला है. ऐसी ही कहानी है 'सुपर 30' की, जो जाने-माने गणितज्ञ आनंद कुमार की जिंदगी पर आधारित है.
  • आनंद कुमार पटना के गणित के वैसे टीचर हैं, जिन्होंने निचले तबके के अति अभावग्रस्त कुशाग्र बच्चों को फ्री कोचिंग देकर आईएआईटी में उनके दाखिले का मार्ग प्रशस्त किया. जिस वक्त शिक्षा मंत्री श्रीराम सिंह (पंकज त्रिपाठी) आनंद कुमार (रितिक रोशन) को गणित की प्रतियोगिता के लिए रामानुजन मेडल दे रहे होते हैं, उस वक्त भी आनंद कुमार की निगाहें बगल में खड़े लड़के के हाथ की किताब पर होती है.
  • आनंद कुमार को अपनी बुद्धिमता और कड़ी मेहनत के बल पर कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में एडमिशन के लिए बुलावा आता है, मगर गरीबी उसका रास्ता रोक लेती है। बेटे को कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी न भेज पाने का गम आनंद कुमार के डाकिया पिता (वीरेन्द्र सक्सेना) को खा जाता है और उसके पेट की आग बुझाने के लिए उसे पापड़ तक बेचने पड़ते हैं. उसकी प्रेमिका रितु (मृणाल ठाकुर) भी उससे मुंह मोड़ लेती है. फिर एक दिन आनंद कुमार को लल्लन जी (आदित्य श्रीवास्तव) अपनी कोचिंग क्लासेज का स्टार टीचर बना कर पेश करते हैं और तब आनंद कुमार के गरीबी के दिन अमीरी की ऐश में बदल जाते हैं, मगर एक दिन उसे अहसास होता है कि वह सिर्फ राजा के बच्चों को राजा बनाने में लगा हुआ है.
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  • निर्देशक विकास बहल की फिल्म का फर्स्ट हाफ काफी सधा हुआ है, मगर सेकंड हाफ में कहानी थोड़ी मेलोड्रमैटिक होकर खिंच जाती है. उन्होंने आनंद कुमार से जुड़े विवादों को अपनी कहानी से दूर ही रखा है, अतः उनसे जुड़े आरोपों का फिल्म में कोई जवाब नहीं मिलता, मगर इसमें कोई शक नहीं कि आनंद कुमार के जीवन के संघर्षों, परिवार के साथ उनके जज्बाती रिश्तों और गरीब बच्चों को रास्ते से उठाकर आईआईटियंस बनाने के जज्बे को वे अपने निर्देशन के जरिए बखूबी निभा ले गए हैं.
  • 'सुपर 30' बच्चों की भूख, बेबसी और उनके अविष्कारों को विकास ने कहानी में इमोशनल ढंग से पिरोया है. 'राजा का बेटा राजा नहीं रहेगा', 'आपत्ति से अविष्कार का जन्म होता है' जैसे संवाद तालियां पीटने पर मजबूर कर देते हैं. क्लाइमैक्स और असरकारक हो सकता था.
  • रितिक रोशन आनंद कुमार के किरदार के सत्व को समझकर उसमें पूरी तरह से घुलमिल गए हैं. हालांकि, शुरुआत के कुछ मिनट जब हम इस इस ग्रीक गॉड कहलाने वाले सुपर स्टार को टैन और डी-ग्लैम अवतार में देसी भाषा बोलते देखते हैं, तो थोड़ा अलग लगता है, मगर फिर रितिक अपने समर्थ अभिनय के बल पर किरदार और कहानी के साथ तारतम्यता साध लेते हैं. वे हमें एक ऐसे सफर पर ले जाते हैं, जो आंसुओं के साथ उम्मीद भी देती है.
  • मृणाल ने छोटी-सी भूमिका में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. नंदीश सिंह प्रणव कुमार की भूमिका में एकदम फिट बैठे हैं. शिक्षा मंत्री के रूप में पंकज त्रिपाठी ने खूब मनोरंजन किया है. पिता के रूप में वीरेन्द्र सक्सेना का अभिनय दिल को छू जाता है. आदित्य श्रीवास्तव, अमित साद और विजय वर्मा ने अच्छा काम किया है.
  • अजय-अतुल के संगीत में उदित नारायण और श्रेया घोषाल का गाया, 'जुगरफिया' गाना मधुर बन पड़ा है. रेडियो मिर्ची के चार्ट पर यह गाना दसवें पायदान पर है.
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