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Birthday Special: दादासाहब फाल्के अवॉर्ड और बंगाली से हिंदी सिनेमा का कुछ ऐसा रहा सुचित्रा सेन का सफर

साल 1963 में सुचित्रा सेन ने वो कारनामा कर दिखाया जो अब तक भारत में किसी और अभिनेता या अभिनेत्री नहीं किया था. मास्को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में फिल्म 'सात पाके बंधा' के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार से नवाजा गया था.

Pic Courtesy; File Photo
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Published : Apr 6, 2019, 9:40 AM IST

मुंबई : बॉलीवुड में कुछ कम ही ऐसी एक्ट्रेसेस हुई हैं. जिन्होंने सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशो में भी अपने देश का खास कर रिजनल सिनेमा का झंडा गाढ़ा है. सुचित्रा सेन उन्हीं एक्ट्रेसेस में से एक थीं. आंधी फिल्म से लोगों के दिलों में आज भी घर करने वाली एक्ट्रेस सुचित्रा की आज 84वीं जयंती है. एक्ट्रेस की जयंती पर आज बात उनके बंगाली सिनेमा से हिंदी सिनेमा के सफर की.

सुचित्रा सेन का जन्म 6 अप्रैल 1931 को बांग्लादेश के पबना जिले में हुआ था, ये पहले भारत में हुआ करता था. सुचित्रा का नाम उनके जन्म के समय रोमदास गुप्ता रखा गया. सुचित्रा अपने मां-बाप की पांचवीं संतान थीं. सुचित्रा के पिता करूणोमय दासगुप्ता स्कूल में हेडमास्टर थे.

1952 में प्रदर्शित बांग्ला फिल्म 'सारे चतुर' उनकी पहली फिल्म थी. इसमें उनके साथ उत्तम कुमार थे. सुचित्रा सेन को भारतीय सिनेमा में एक ऐसी एक्ट्रेस के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशेष पहचान बनाई.

सुचित्रा सेन ने अपनी स्कूली पढ़ाई पवना से ही की. इसके बाद वह इंग्लैंड चली गईं और समरविले कॉलेज, ऑक्सफोर्ड से अपना ग्रेजुएशन किया. 1947 में उनकी शादी बंगाल के जाने माने बिजनेसमैन आदिनाथ सेन के बेटे दीबानाथ सेन से हुई.

1952 में सुचित्रा सेन ने एक्ट्रेस बनने के लिए फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा और बांग्ला फिल्म 'शेष कोथा' में काम किया. हालांकि फिल्म रिलीज नहीं हो सकी. 1952 में प्रदर्शित बांग्ला फिल्म 'सारे चतुर' उनकी पहली फिल्म थी. इसमें उनके साथ उत्तम कुमार थे. 1962 में 'बिपाशा' में काम करने के लिए उन्हें एक लाख रुपए मिले थे. जब कि हीरो उत्तम कुमार को सिर्फ अस्सी हजार रुपयों से संतोष करना पड़ा था.

1963 में सुचित्रा सेन की एक और सुपरहिट फिल्म 'सात पाके बांधा' रिलीज हुई. उन्हें इस फिल्म के लिए मास्को फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ फिल्म एक्ट्रेस के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. यह फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास में पहला मौका था जब किसी भारतीय एक्ट्रेस को विदेश में पुरस्कार मिला था. बाद में इसी कहानी पर 1974 में हिंदी में 'कोरा कागज' बनीं जिसमें सुचित्रा सेन का किरदार जया बच्चन ने निभाया.

मिसेज सेन के नाम से मशहूर सुचित्रा सेन शायद भारतीय फिल्म इतिहास की पहली अभिनेत्री थीं. जिन्होंने अपनी पहली फिल्म उस समय की जब वो एक बच्ची की मां बन चुकी थीं. उनका साड़ी बांधने का अंदाज़, बाल काढ़ने का ढंग और धूप का चश्मा पहनने की अदा युवाओं में उन्माद की हद तक लोकप्रिय थी.

हिंदी सिनेमा में सुचित्रा सेन की धमाकेदार एंट्री हुई बिमल रॉय की 'देवदास' से. साल 1955 में रिलीज हुई 'देवदास' में सुचित्रा सेन ने पारो की भूमिका में जान भर दी. वहीं सुचित्रा सेन 1975 में रिलीज हुई फिल्म 'आंधी' से अपनी एक अलग छाप छोड़ी.

गुलजार निर्देशित इस फिल्म में उन्हें अभिनेता संजीव कुमार के साथ काम करने का अवसर मिला. यह फिल्म कुछ दिनों के लिए बैन भी कर दी गई थी. बाद में जब यह रिलीज हुई तो अच्छी सफलता मिली. फिल्म के गाने आज भी सदाबहार गीतों की श्रेणी में आते हैं.

सुचित्रा सेन बड़े से बड़े फिल्मकारों के साथ काम करने का प्रस्ताव ठुकराती रहीं. सुचित्रा ने राज कपूर की एक फिल्म में काम करने का प्रस्ताव इसलिए ठुकराया क्योंकि राज कपूर द्वारा झुककर फूल देने का तरीका उन्हें पसंद नहीं आया था. यही नहीं सुचित्रा ने सत्यजीत राय की फिल्म को भी मना कर दिया था.

सत्यजीत राय ने फिल्म 'देवी चौधरानी' बनाने का विचार ही छोड़ दिया. 2005 में उन्होंने दादासाहेब फाल्के पुरस्कार का प्रस्ताव महज इसलिए ठुकरा दिया क्योंकि इसके लिए उन्हें कोलकाता छोड़कर दिल्ली जाना पड़ता.

सुचित्रा सेन आखिरी बार साल 1978 में प्रदर्शित बांग्ला फिल्म 'प्रणोय पाश' में दिखीं. इस फिल्म के बाद उन्होंने इंडस्ट्री से संन्यास ले लिया और रामकृष्ण मिशन की सदस्य बन गईं और सामाजिक कार्य करने लगीं.

1972 में सुचित्रा सेन को पद्मश्री पुरस्कार दिया गया. अपने दमदार अभिनय से दर्शकों के बीच खास पहचान बनाने वालीं सुचित्रा सेन 17 जनवरी 2014 को इस दुनिया को अलविदा कह गईं.

मुंबई : बॉलीवुड में कुछ कम ही ऐसी एक्ट्रेसेस हुई हैं. जिन्होंने सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशो में भी अपने देश का खास कर रिजनल सिनेमा का झंडा गाढ़ा है. सुचित्रा सेन उन्हीं एक्ट्रेसेस में से एक थीं. आंधी फिल्म से लोगों के दिलों में आज भी घर करने वाली एक्ट्रेस सुचित्रा की आज 84वीं जयंती है. एक्ट्रेस की जयंती पर आज बात उनके बंगाली सिनेमा से हिंदी सिनेमा के सफर की.

सुचित्रा सेन का जन्म 6 अप्रैल 1931 को बांग्लादेश के पबना जिले में हुआ था, ये पहले भारत में हुआ करता था. सुचित्रा का नाम उनके जन्म के समय रोमदास गुप्ता रखा गया. सुचित्रा अपने मां-बाप की पांचवीं संतान थीं. सुचित्रा के पिता करूणोमय दासगुप्ता स्कूल में हेडमास्टर थे.

1952 में प्रदर्शित बांग्ला फिल्म 'सारे चतुर' उनकी पहली फिल्म थी. इसमें उनके साथ उत्तम कुमार थे. सुचित्रा सेन को भारतीय सिनेमा में एक ऐसी एक्ट्रेस के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशेष पहचान बनाई.

सुचित्रा सेन ने अपनी स्कूली पढ़ाई पवना से ही की. इसके बाद वह इंग्लैंड चली गईं और समरविले कॉलेज, ऑक्सफोर्ड से अपना ग्रेजुएशन किया. 1947 में उनकी शादी बंगाल के जाने माने बिजनेसमैन आदिनाथ सेन के बेटे दीबानाथ सेन से हुई.

1952 में सुचित्रा सेन ने एक्ट्रेस बनने के लिए फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा और बांग्ला फिल्म 'शेष कोथा' में काम किया. हालांकि फिल्म रिलीज नहीं हो सकी. 1952 में प्रदर्शित बांग्ला फिल्म 'सारे चतुर' उनकी पहली फिल्म थी. इसमें उनके साथ उत्तम कुमार थे. 1962 में 'बिपाशा' में काम करने के लिए उन्हें एक लाख रुपए मिले थे. जब कि हीरो उत्तम कुमार को सिर्फ अस्सी हजार रुपयों से संतोष करना पड़ा था.

1963 में सुचित्रा सेन की एक और सुपरहिट फिल्म 'सात पाके बांधा' रिलीज हुई. उन्हें इस फिल्म के लिए मास्को फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ फिल्म एक्ट्रेस के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. यह फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास में पहला मौका था जब किसी भारतीय एक्ट्रेस को विदेश में पुरस्कार मिला था. बाद में इसी कहानी पर 1974 में हिंदी में 'कोरा कागज' बनीं जिसमें सुचित्रा सेन का किरदार जया बच्चन ने निभाया.

मिसेज सेन के नाम से मशहूर सुचित्रा सेन शायद भारतीय फिल्म इतिहास की पहली अभिनेत्री थीं. जिन्होंने अपनी पहली फिल्म उस समय की जब वो एक बच्ची की मां बन चुकी थीं. उनका साड़ी बांधने का अंदाज़, बाल काढ़ने का ढंग और धूप का चश्मा पहनने की अदा युवाओं में उन्माद की हद तक लोकप्रिय थी.

हिंदी सिनेमा में सुचित्रा सेन की धमाकेदार एंट्री हुई बिमल रॉय की 'देवदास' से. साल 1955 में रिलीज हुई 'देवदास' में सुचित्रा सेन ने पारो की भूमिका में जान भर दी. वहीं सुचित्रा सेन 1975 में रिलीज हुई फिल्म 'आंधी' से अपनी एक अलग छाप छोड़ी.

गुलजार निर्देशित इस फिल्म में उन्हें अभिनेता संजीव कुमार के साथ काम करने का अवसर मिला. यह फिल्म कुछ दिनों के लिए बैन भी कर दी गई थी. बाद में जब यह रिलीज हुई तो अच्छी सफलता मिली. फिल्म के गाने आज भी सदाबहार गीतों की श्रेणी में आते हैं.

सुचित्रा सेन बड़े से बड़े फिल्मकारों के साथ काम करने का प्रस्ताव ठुकराती रहीं. सुचित्रा ने राज कपूर की एक फिल्म में काम करने का प्रस्ताव इसलिए ठुकराया क्योंकि राज कपूर द्वारा झुककर फूल देने का तरीका उन्हें पसंद नहीं आया था. यही नहीं सुचित्रा ने सत्यजीत राय की फिल्म को भी मना कर दिया था.

सत्यजीत राय ने फिल्म 'देवी चौधरानी' बनाने का विचार ही छोड़ दिया. 2005 में उन्होंने दादासाहेब फाल्के पुरस्कार का प्रस्ताव महज इसलिए ठुकरा दिया क्योंकि इसके लिए उन्हें कोलकाता छोड़कर दिल्ली जाना पड़ता.

सुचित्रा सेन आखिरी बार साल 1978 में प्रदर्शित बांग्ला फिल्म 'प्रणोय पाश' में दिखीं. इस फिल्म के बाद उन्होंने इंडस्ट्री से संन्यास ले लिया और रामकृष्ण मिशन की सदस्य बन गईं और सामाजिक कार्य करने लगीं.

1972 में सुचित्रा सेन को पद्मश्री पुरस्कार दिया गया. अपने दमदार अभिनय से दर्शकों के बीच खास पहचान बनाने वालीं सुचित्रा सेन 17 जनवरी 2014 को इस दुनिया को अलविदा कह गईं.

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मुंबई : बॉलीवुड में कुछ कम ही ऐसी एक्ट्रेसेस हुई हैं. जिन्होंने सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशो में भी अपने देश का खास कर रिजनल सिनेमा का झंडा गाढ़ा है. सुचित्रा सेन उन्हीं एक्ट्रेसेस में से एक थीं. आंधी फिल्म से लोगों के दिलों में आज भी घर करने वाली एक्ट्रेस सुचित्रा की आज 84वीं जयंती है. एक्ट्रेस की जयंती पर आज बात उनके बंगाली सिनेमा से हिंदी सिनेमा के सफर की.  

सुचित्रा सेन का जन्म 6 अप्रैल 1931 को बांग्लादेश के पबना जिले में हुआ था, ये पहले भारत में हुआ करता था. सुचित्रा का नाम उनके जन्म के समय रोमदास गुप्ता रखा गया. सुचित्रा अपने मां-बाप की पांचवीं संतान थीं. सुचित्रा के पिता करूणोमय दासगुप्ता स्कूल में हेडमास्टर थे.  

1952 में प्रदर्शित बांग्ला फिल्म 'सारे चतुर' उनकी पहली फिल्म थी. इसमें उनके साथ उत्तम कुमार थे. सुचित्रा सेन को भारतीय सिनेमा में एक ऐसी एक्ट्रेस के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशेष पहचान बनाई.

सुचित्रा सेन ने अपनी स्कूली पढ़ाई पवना से ही की. इसके बाद वह इंग्लैंड चली गईं और समरविले कॉलेज, ऑक्सफोर्ड से अपना ग्रेजुएशन किया. 1947 में उनकी शादी बंगाल के जाने माने बिजनेसमैन आदिनाथ सेन के बेटे दीबानाथ सेन से हुई.

1952 में सुचित्रा सेन ने एक्ट्रेस बनने के लिए फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा और बांग्ला फिल्म 'शेष कोथा' में काम किया. हालांकि फिल्म रिलीज नहीं हो सकी. 1952 में प्रदर्शित बांग्ला फिल्म 'सारे चतुर' उनकी पहली फिल्म थी. इसमें उनके साथ उत्तम कुमार थे. 1962 में 'बिपाशा' में काम करने के लिए उन्हें एक लाख रुपए मिले थे. जब कि हीरो उत्तम कुमार को सिर्फ अस्सी हजार रुपयों से संतोष करना पड़ा था.

1963 में सुचित्रा सेन की एक और सुपरहिट फिल्म 'सात पाके बांधा' रिलीज हुई. उन्हें इस फिल्म के लिए मास्को फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ फिल्म एक्ट्रेस के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. यह फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास में पहला मौका था जब किसी भारतीय एक्ट्रेस को विदेश में पुरस्कार मिला था. बाद में इसी कहानी पर 1974 में हिंदी में 'कोरा कागज' बनीं जिसमें सुचित्रा सेन का किरदार जया बच्चन ने निभाया.

मिसेज सेन के नाम से मशहूर सुचित्रा सेन शायद भारतीय फिल्म इतिहास की पहली अभिनेत्री थीं. जिन्होंने अपनी पहली फिल्म उस समय की जब वो एक बच्ची की मां बन चुकी थीं. उनका साड़ी बांधने का अंदाज़, बाल काढ़ने का ढंग और धूप का चश्मा पहनने की अदा युवाओं में उन्माद की हद तक लोकप्रिय थी. 

हिंदी सिनेमा में सुचित्रा सेन की धमाकेदार एंट्री हुई बिमल रॉय की 'देवदास' से. साल 1955 में रिलीज हुई 'देवदास' में सुचित्रा सेन ने पारो की भूमिका में जान भर दी. वहीं सुचित्रा सेन 1975 में रिलीज हुई फिल्म 'आंधी' से अपनी एक अलग छाप छोड़ी.

गुलजार निर्देशित इस फिल्म में उन्हें अभिनेता संजीव कुमार के साथ काम करने का अवसर मिला. यह फिल्म कुछ दिनों के लिए बैन भी कर दी गई थी. बाद में जब यह रिलीज हुई तो अच्छी सफलता मिली. फिल्म के गाने आज भी सदाबहार गीतों की श्रेणी में आते हैं.

सुचित्रा सेन बड़े से बड़े फिल्मकारों के साथ काम करने का प्रस्ताव ठुकराती रहीं. सुचित्रा ने राज कपूर की एक फिल्म में काम करने का प्रस्ताव इसलिए ठुकराया क्योंकि राज कपूर द्वारा झुककर फूल देने का तरीका उन्हें पसंद नहीं आया था. यही नहीं सुचित्रा ने सत्यजीत राय की फिल्म को भी मना कर दिया था.

सत्यजीत राय ने फिल्म 'देवी चौधरानी' बनाने का विचार ही छोड़ दिया. 2005 में उन्होंने दादासाहेब फाल्के पुरस्कार का प्रस्ताव महज इसलिए ठुकरा दिया क्योंकि इसके लिए उन्हें कोलकाता छोड़कर दिल्ली जाना पड़ता.

सुचित्रा सेन आखिरी बार साल 1978 में प्रदर्शित बांग्ला फिल्म 'प्रणोय पाश' में दिखीं. इस फिल्म के बाद उन्होंने इंडस्ट्री से संन्यास ले लिया और रामकृष्ण मिशन की सदस्य बन गईं और सामाजिक कार्य करने लगीं.

1972 में सुचित्रा सेन को पद्मश्री पुरस्कार दिया गया. अपने दमदार अभिनय से दर्शकों के बीच खास पहचान बनाने वालीं सुचित्रा सेन 17 जनवरी 2014 को इस दुनिया को अलविदा कह गईं.





 


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