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फैज की कविता पर कंट्रोवर्सी, शूजित सरकार ने कसा तंज

फिल्म निर्माता शूजित सरकार ने उर्दू के मशहूर शायर फैज अहमद फैज की नज्म को लेकर चल रही कंट्रोवर्सी के उपर तंज कसते हुए ट्वीट किया.

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Published : Jan 4, 2020, 3:16 PM IST

Shoojit Sircar's cryptic take on Faiz controversy
Shoojit Sircar's cryptic take on Faiz controversy

मुंबईः इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी(आईआईटी) कानपुर द्वारा मशहूर शायर फैज अहमद फैज की वर्ल्ड फेमस नज्म हम देखेंगे पर एक कमेटी का गठन किया है, जो यह फैसला करेगी कि यह नज्म हिंदू विरोधी है या नहीं, उसके बाद फिल्म निर्माता शूजित सरकार इस ज्वलंत मुद्दे पर तंज करते हुए अपनी राय रखी.

फिल्म निर्माता ने अपने ट्विटर पर पोस्ट किया, 'अमीर और छोटे बिजनेसेस के लिए पैसे कमाने का बहुत अच्छा मौका है क्योंकि जनसंख्या क्रांतिकारी शायर जिसका नाम फैज है उसमें लगी हुई है.'

आइकॉनिक शायर द्वारा 1979 में लिखी गई नज्म पर कंट्रोवर्सी तब शुरू हुई जब हाल ही में आईआईटी कानपुर में सीएए और एनआरसी के खिलाफ हो रहे आंदोलन के दौरान इस नज्म को पढ़ा गया.

  • Best time for the rich & small businesses to make money as most of the population are engaged with a revolutionary poet named Faiz:))

    — Shoojit Sircar (@ShoojitSircar) January 3, 2020 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">
इससे पहले, गुरूवार को मशहूर गीतकार और शायर जावेद अख्तर ने इस नज्म के एंटी-हिंदू होने वाले दावे को सिरे से खारिज किया और इस पूरे घटनाक्रम को 'फिजूल' और 'मजाकिया' बताया.

पढ़ें- 'भुजः द प्राइड ऑफ इंडिया' में स्कावड्रन लीडर बने अजय देवगन, फर्स्ट लुक रिलीज

आईआईटी कानपुर ने गुरूवार को इस पूरे मामले पर एक कमेटी बनाई थी.

यह सब तब शुरू हुआ जब कैंपस में स्टूडेंट्स 17 दिसंबर को सीएए के खिलाफ और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के स्टूडेंट्स के समर्थन में प्रोटेस्ट किया और प्रोटेस्ट के दौरान इस नज्म को गाया, जो बाकी समुदाय की भावनाओं को आहत करता है.

सीएए के जरिए भारत के तीन पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न के चलते 31 दिंसबर, 2014 से पहले इंडिया में आए हिदुओं, सिखों, जैनियों, पारसियों, बौद्ध और क्रिश्चियन्स को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है.

इनपुट्स- एएनआई

मुंबईः इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी(आईआईटी) कानपुर द्वारा मशहूर शायर फैज अहमद फैज की वर्ल्ड फेमस नज्म हम देखेंगे पर एक कमेटी का गठन किया है, जो यह फैसला करेगी कि यह नज्म हिंदू विरोधी है या नहीं, उसके बाद फिल्म निर्माता शूजित सरकार इस ज्वलंत मुद्दे पर तंज करते हुए अपनी राय रखी.

फिल्म निर्माता ने अपने ट्विटर पर पोस्ट किया, 'अमीर और छोटे बिजनेसेस के लिए पैसे कमाने का बहुत अच्छा मौका है क्योंकि जनसंख्या क्रांतिकारी शायर जिसका नाम फैज है उसमें लगी हुई है.'

आइकॉनिक शायर द्वारा 1979 में लिखी गई नज्म पर कंट्रोवर्सी तब शुरू हुई जब हाल ही में आईआईटी कानपुर में सीएए और एनआरसी के खिलाफ हो रहे आंदोलन के दौरान इस नज्म को पढ़ा गया.

  • Best time for the rich & small businesses to make money as most of the population are engaged with a revolutionary poet named Faiz:))

    — Shoojit Sircar (@ShoojitSircar) January 3, 2020 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">
इससे पहले, गुरूवार को मशहूर गीतकार और शायर जावेद अख्तर ने इस नज्म के एंटी-हिंदू होने वाले दावे को सिरे से खारिज किया और इस पूरे घटनाक्रम को 'फिजूल' और 'मजाकिया' बताया.

पढ़ें- 'भुजः द प्राइड ऑफ इंडिया' में स्कावड्रन लीडर बने अजय देवगन, फर्स्ट लुक रिलीज

आईआईटी कानपुर ने गुरूवार को इस पूरे मामले पर एक कमेटी बनाई थी.

यह सब तब शुरू हुआ जब कैंपस में स्टूडेंट्स 17 दिसंबर को सीएए के खिलाफ और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के स्टूडेंट्स के समर्थन में प्रोटेस्ट किया और प्रोटेस्ट के दौरान इस नज्म को गाया, जो बाकी समुदाय की भावनाओं को आहत करता है.

सीएए के जरिए भारत के तीन पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न के चलते 31 दिंसबर, 2014 से पहले इंडिया में आए हिदुओं, सिखों, जैनियों, पारसियों, बौद्ध और क्रिश्चियन्स को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है.

इनपुट्स- एएनआई

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फैज कंट्रोवर्सी पर शूजित सरकार ने कसा तंज

मुंबईः इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी(आईआईटी) कानपुर द्वारा मशहूर शायर फैज अहमद फैज की वर्ल्ड फेमस नज्म हम देखेंगे पर एक कमेटी का गठन किया है, जो यह फैसला करेगी कि यह नज्म हिंदू विरोधी है या नहीं, उसके बाद फिल्म निर्माता शूजित सरकार इस ज्वलंत मुद्दे पर तंज करते हुए अपनी राय रखी.

फिल्म निर्माता ने अपने ट्विटर पर पोस्ट किया, 'अमीर और छोटे बिजनेसेस के लिए पैसे कमाने का बहुत अच्छा मौका है क्योंकि जनसंख्या क्रांतिकारी शायर जिसका नाम फैज है उसमें लगी हुई है.'

आइकॉनिक शायर द्वारा 1979 में लिखी गई नज्म पर कंट्रोवर्सी तब शुरू हुई जब हाल ही में आईआईटी कानपुर में सीएए और एनआरसी के खिलाफ हो रहे आंदोलन के दौरान इस नज्म को पढ़ा गया.

इससे पहले, गुरूवार को मशहूर गीतकार और शायर जावेद अख्तर ने इस नज्म के एंटी-हिंदू होने वाले दावे को सिरे से खारिज किया और इस पूरे घटनाक्रम को 'फिजूल' और 'मजाकिया' बताया.

आईआईटी कानपुर ने गुरूवार को इस पूरे मामले पर एक कमेटी बनाई थी.

यह सब तब शुरू हुआ जब कैंपस में स्टूडेंट्स 17 दिसंबर को सीएए के खिलाफ और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के स्टूडेंट्स के समर्थन में प्रोटेस्ट किया और प्रोटेस्ट के दौरान इस नज्म को गाया, जो बाकी समुदाय की भावनाओं को आहत करता है.

सीएए के जरिए भारत के तीन पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न के चलते 31 दिंसबर, 2014 से पहले इंडिया में आए हिदुओं, सिखों, जैनियों, पारसियों, बौद्ध और क्रिश्चियन्स को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है.

इनपुट्स- एएनआई


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