मुंबई: कश्मीरी पंडितों का दर्द बयां करती निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा की हालिया रिलीज फिल्म 'शिकारा' बीते कई दिनों से विवादों के घेरे में है. फिल्म पर कश्मीरी पंडितों के मुद्दे का व्यावसायीकरण करने का आरोप लगा है. इस मामले में फिल्म निर्माता विधु ने रविवार को एक ओपन लेटर लिखा.
इस लेटर में उन्होंने उन कष्टों को बयां किया. जब तीन दशक पहले इस्लामवादी विद्रोहियों द्वारा निशाना बनाए जाने के परिणामस्वरूप उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को उनके घर से बाहर निकाल दिया गया था.
पत्र में 'युवा भारतीयों' को संबोधित करते हुए चोपड़ा ने लिखा: "'शिकारा' से संबंधित हाल की घटनाओं ने मुझे बहुत परेशान किया है. मैं एक प्रभावित कश्मीरी हिंदू हूं. कश्मीर में मेरे घर में तोड़फोड़ की गई और मेरे परिवार पर हमला किया गया." मां जो 'परिंदा' (1989) के प्रीमियर के लिए बॉम्बे एक छोटा सूटकेस लेकर आई थी, वह घर वापस नहीं जा सकी. उसकी मुंबई में ही मृत्यु हो गई.
उन्होंने आगे कहा, "जबकि आप में से ज्यादातर लोग मुझे 'मुन्नाभाई' और '3 इडियट्स' जैसी फिल्मों के निर्माण के लिए जानते हैं, मैं वास्तव में पिछले 40 वर्षों से फिल्में बना रहा हूं - मेरी पहली लघु फिल्म 1979 में ऑस्कर के लिए नामांकित हुई थी. सिनेमा में मेरी यात्रा बेहद संतोषजनक रही है और मैंने कभी भी अपने मन में संदेह महसूस नहीं किया है कि मैं कभी प्रतिष्ठित फिल्म निर्माता इंगमार बर्गमैन की आज्ञाओं से भटक गया था जिन्होंने कहा था कि मनोरंजन करो लेकिन अपनी आत्मा को बेचे बिना."
चोपड़ा ने आरोपों को "निरर्थक" बताया.
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उन्होंने कहा, "अब मुझ पर कश्मीरी पंडितों के विषय का व्यावसायीकरण कर अपनी आत्मा को बेचने का आरोप लगाया जा रहा है. यह एक निरर्थक आरोप है क्योंकि अगर मैं पैसा कमाना चाहता तो मैं 'मुन्नाभाई' या '3 इडियट्स' का सीक्वल बनाता. लेकिन मैंने 'शिकारा' बनाने का फैसला इसलिए लिया कि मैंने खुद देखा है कि किसी घर के नुकसान का क्या मतलब है. और क्योंकि आप में से अधिकांश लोग हमारी त्रासदी से अनजान हैं. आप तब पैदा भी नहीं हुए थे जब 1990 में हमें हमारे घर और मातृभूमि से बाहर निकाल दिया गया था. और अगर आप इतिहास नहीं जानते हैं, तब ही इसे दोहराने की निंदा करेंगे.''
चोपड़ा ने लोगों से पिछली घटनाओं को न दोहराने की अपील की.
निर्देशक ने कहा, "फिल्म (शिकारा) मेरी सच्चाई है. यह मेरी मां की सच्चाई है. यह मेरे सह-लेखक राहुल पंडिता की सच्चाई है. यह एक समुदाय की सच्चाई है, जो इस तरह के आघात से गुजरने के बावजूद बंदूक नहीं उठाता है और न ही नफरत फैलाता है." ''शिकारा' ऐसा ही करने का प्रयास है - हिंसा के बीज बोए बिना अकल्पनीय पीड़ा की बात करना. और एक बातचीत शुरू करना जिससे कश्मीरी पंडितों को कश्मीर लौटने में आसानी हो.
उन्होंने आखिर में कहा, "हिंसा सिर्फ हिंसा को ही जन्म देगी. मैंने नफरत से अपने घर को नष्ट होते देखा है. आप ऐसा न करने दें. मैं चाहता हूं कि आपका भविष्य मेरे अतीत से अलग हो."
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