आंध्र प्रदेश की राजनीति एनटीआर के शासनकाल में बहुत बड़े स्तर पर बदलाव की गवाह बनीं. उन्होंने पॉलिटिक्स और सिनेमा में जीत का स्वाद कुछ इस तरह चखा जैसा कभी किसी ने नहीं, खैर उन्होंने पॉलिटिक्स में अपने गहरे रूझान के चलते सिल्वर स्क्रीन को त्याग दिया.
एक कल्ट पर्सनालिटी, जिन्होंने पॉलिटिक्स का चेहरा ही बदल कर रख दिया, एनटीआर ने राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर भी काम किया. एक आइकॉन और रोल मॉडल, खासकर तेलुगू समुदाय के लिए, उन्होंने पार्टी स्थापित करने के सिर्फ 9 महीने बाद ही पॉवर में आकर इतिहास ही रच दिया. पॉलिटिक्स में तेलुगू अग्रदूत में से एक, उन्होंने देशभर में रीजनल पार्टी को महत्व दिलाया और उन्हीं की बदौलत राष्ट्र की सत्ता ने पूरे समुदाय को सम्मान और महत्व की नजरों से देखना शुरू कर दिया.
एनटीआर के बारे में यह पॉपुलर नजरिया है कि उन्होंने सिल्वर स्क्रीन पर जो माइथोलॉजिकल कैरेक्टर्स प्ले किए उसने भी इनके पॉलिटिकल करियर को आकार देने में बहुत अहम भूमिका निभाई. अभिनेता जिन्होंने करीब 17 फिल्मों में कृष्ण की भूमिका निभाई थी वह अपने मुख्यमंत्री के कार्यकाल के दौरान भी माइथोलॉजिकल कैरेक्टर्स के कॉस्ट्यूम्स को पहना करते थे.
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आंध्रा की अलग पहचान के नजरिए को लेकर अभिनेता ने अपनी पॉलिटिकल पार्टी का गठन किया और आखिर में वह आंध्र प्रदेश के तीन टर्म्स(15 सालों के लिए) तक मुख्यमंत्री के पद पर रहे.
इतिहास में पन्नों में अपना नाम दर्ज करते हुए, रामा राव का राजनीति में योगदान हमेशा ही सबसे बढ़कर रहेगा.
टूटी-फूटी झोंपड़ियों को हटाकर अभिनेता ने गरीबों के लिए 5 लाख से भी ज्यादा पक्के घरों का निर्माण कराया.
आंध्रा के लिए स्पेशल कंमाडो फॉर्स के गठन से लेकर किसानों और मजदूरों के लिए 2 रूपये प्रति किलोग्राम तक चावल उपलब्ध करवाने से नक्सलवाद के खिलाफ मिलिट्री और विचारधारा के स्तर पर निपटने तक, एनटीआर ने पॉलिटिक्स के क्षेत्र में एक नया मील का पत्थर कायम कर दिया. उनके टर्म के दौरान हैदराबाद में सामुदायिक दंगे भी शांत हो गए.
पॉलिटिक्स में कदम रखने से पहले पद्म श्री अवॉर्ड से सम्मानित तेलुगू सिनेस्टार ने अपने चार्म और करिश्में से सिल्वर स्क्रीन को भी जगमग रखा.
ऑल टाइम ग्रेटेस्ट लेजेंड एनटीआर ने तेलुगू सिनेमा की दुनिया में अपना अमूल्य योगदान दिया.
आंध्र प्रदेश के लिए गॉडफादर बनकर आए अभिनेता ने, राज्य को मद्रास स्टेट से अलग पहचान दिलाई.
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उस समय में जब स्टार फैमिली के एक्टर्स इंडस्ट्री पर राज करते थे और लोग सेलिब्रिटीज के सपोर्ट से नाम कमाते थे, तब एक बाहरी होते हुए भी रामा राव ने फिल्म फ्रेटर्निटी में अपना बड़ा ब्रेक 1949 की तेलुगू देशभक्ति फिल्म 'माना देसम' में हासिल किया.
भारतीय आजादी के संघर्ष के बैकड्रॉप में सेट, 'माना देसम' एक बंगाली उपन्यास 'विपर्दा' पर आधारित थी जिसे लिखा था शरतचंद चटोपाद्धयाय ने. एल.वी प्रसाद के डायरेक्टोरियल प्रोजेक्ट में उनके रोल ने उन्हें बहुतायत में प्रशंसा दिलाई.