हैदराबाद: विसालाक्षी अरीगेला के मुताबिक, यह जीव माइक्रोऑर्गैनिस्मस या माइक्रोब्स के नाम से जाने जाते हैं. इतना ही नहीं, इन्हे देखने के लिये एक खास उपकरण की जरुरत पड़ती हैं, जिसे माइक्रोस्कोप कहा जाता है.
माइक्रोबायोलॉजी में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद, विसालाक्षी अरीगेला ने इस विषय को आम भाषा में समझाते हुए, हमे यह बताया कि, यह माइक्रोब्स 4 प्रकार के होते हैं.
यह माइक्रोऑर्गैनिस्मस सब जगह पाये जाते हैं; मिटटी में, पानी में, पेड़ पौधों में, खाने में, इंसानों के शरीर में, आदि.
- जब हम किसी झील, तालाब, नदी में एक हरे रंग की लेयर यानि एक परत को देखते हैं, तो उसे एल्गी कहते हैं. यह एल्गी पानी में ही बढ़ती है.
- लैक्टोबैसिलस बैक्टीरिया दूध से दही बनाने में मदद करता है.
- ब्रेड जब काला पड़ने लगता है, तो ब्रेड पर फंगस लग जाता है.
- मालेरिया जैसे बीमारी प्रोटोजुआ से होती हैं और मच्छरों से यह बीमारी फेल जाती है.
- गोबर गैस माइक्रोब्स द्वारा ही बनायी जाती है.
- जितना भी वेस्ट मटेरियल यानि की फालतू सामान हमारे घरों से निकलता हैं, मरे हुए जानवर और पेड़ पौधे, सब इन माइक्रोब्स की वजह से डीकंपोज होने लगते हैं. यानि की गलने लगते हैं और मिटटी को ज्यादा उपजाऊ बना देते हैं.
विसालाक्षी के अनुसार, यह माइक्रोब्स हमारी रोजमर्रा की ज़िन्दगी में एक अहम भूमिका निभाते हैं. इनके कुछ फायदे हैं तो कुछ नुकसान भी हैं. जानवरों, पौधों और इंसानों में इन्ही माइक्रोब्स की वजह से कई बीमारियां हो जाती हैं. महामारी भी इन्ही माइक्रोब्स की वजह से होती है. सबसे जरूरी बात यह की, यही माइक्रोब्स वैक्सीन और एंटीबायोटिक्स बनाने में मदद करते हैं.
जरा सोचिए, अगर आप इन माइक्रोब्स को अपने इर्द गिर्द देख पाते तो कैसा लगता? अच्छा लगता या एक डरवाने सपने के जैसे महसूस होता. एक सच्चाई जो बदल नहीं सकती कि यह माइक्रोऑर्गैनिस्मस या माइक्रोब्स हमारे साथ ही रहते हैं.
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