हैदराबाद : किसी भी देश के विकास में इंजीनियरों की भूमिका अहम होती है. भारतीय इंजीनियर व स्टेट्समैन, मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया (मोक्षगेवर्धन विश्वेश्वरैया') का इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अमूल्य योगदान है. इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उनके योगदान को याद करने के लिए हर साल 15 सितंबर को 'मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया' की जयंती को राष्ट्रीय इंजीनियर्स दिवस (National Engineers Day ) के रूप में जाना जाता है.
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National Engineers' Day 2023 was celebrated on 15th Sep at the #GMRT with a series of thought-provoking talk-cum-discussion sessions on diverse topics of #science & #technology along with the inauguration of a multipurpose building by Prof. J N Chengalur (Director, @TIFRScience) pic.twitter.com/wwZpmuJ4L0
— National Centre for Radio Astrophysics (@NCRA_Outreach) September 18, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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On National Engineers Day 2023, we salute the innovative minds that drive our success. Thank you for engineering a brighter future for us all! pic.twitter.com/OCntui4Sg0
— Swami Vivekananda University (@svu_official) September 16, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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इंजीनियर दिवस पहली बार 1968 में मनाया गया था. भारतीय तकनीकि शिक्षा जगत में इस दिवस को सबसे महत्वपूर्ण अवसरों में से एक माना जाता है, विशेष रूप से इंजीनियरों के बीच. विश्वेश्वरैया के योगदान को भारत, श्रीलंका और तंजानिया में भी 15 सितंबर को इंजीनियर्स दिवस के रूप में याद जाता है.
एम. विश्वेश्वरैया कौन थे?
15 सितंबर 1861 को सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म कर्नाटक के मुद्देनाहल्ली गांव में हुआ था. उन्हें 'सर' एमवी के नाम से जाना जाता है. 15 साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को खो दिया, जो संस्कृत के बड़े विद्वान थे. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा चिक्काबल्लापुर से पूरी की. इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए वे बैंगलोर चले गए.
उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पुणे के साइंस कॉलेज में दाखिला लिया, जहां से 1883 में उन्होंने परीक्षा में फस्ट रैंक हासिल किया. शिक्षा पूरी करने के बाद उन्हें बॉम्बे सरकार से नासिक में एक सहायक अभियंता के लिए नौकरी का प्रस्ताव मिला. एक इंजीनियर के रूप में उन्होंने विभिन्न परियोजनाओं को सफलतापूर्वक जमीन पर उतारा. इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स इंडिया (IEI) के अनुसार, उन्हें 'भारत में आर्थिक नियोजन का अग्रदूत' (Precursor Of Economic Planning In India) भी कहा जाता है.
भारतीय इंजीनियरिंग के जनक:
एम विश्वेश्वरैया 1912 से 1918 तक मैसूर के दीवान थे. वास्तव में, वह मैसूर में कृष्णराज सागर बांध (Krishna Raja Sagar Dam In Mysore) के पीछे के दिमाग के साथ-साथ हैदराबाद शहर के लिए बाढ़ सुरक्षा प्रणाली के मुख्य डिजाइनर भी थे. मैसूर के कृष्ण राजा वाडियार चतुर्थ महाराज ने राज्य की गंभीर वित्तीय स्थिति के बावजूद अकाल के दौरान बांध का निर्माण किया। बांध का नाम उनके सम्मान में रखा गया था. एम विश्वेश्वरैया को ब्लॉक सिस्टम, स्वचालित दरवाजे जो पानी के बहाव को बंद कर देते हैं, का आविष्कार करने का श्रेय दिया जाता है. सर विश्वेश्वरैया ने फ्लडगेट्स को डिजाइन किया और पेटेंट कराया, जो पहली बार 1903 में पुणे के खडकवासला जलाशय में स्थापित किए गए थे.
'याद रखें, आपका काम केवल रेलवे क्रॉसिंग को साफ करना हो सकता है, लेकिन आपका कर्तव्य है कि उसे इतना साफ रखें कि दुनिया का कोई भी चौराहा इतना साफ न हो .'-मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया
पुरस्कार और उपलब्धियों:
- इंजीनियरिंग में असाधारण योगदान के लिए भारत सरकार की ओर से एम विश्वेश्वरैया को 1955 में 'भारत रत्न' से सम्मानित किया था.
- उन्हें किंग जॉर्ज पंचम की ओर से ब्रिटिश नाइटहुड से भी सम्मानित (British knighthood By King George V) किया गया था.
- ब्रिटिश नाइटहुड सम्मान के कारण उन्हें 'सर' की उपाधि दी गई है.
- Google ने उनके योगदान का जश्न मनाने के लिए 2018 में जन्म दिन पर एक डूडल लॉन्च कर सम्मानित किया.
एक अनुकरणीय व्यक्ति:
एक इंजीनियर और शिक्षक के अलावा, वे काफी मेहनती थे. सर एम. विश्वेश्वरैया बैंगलोर में 'भारतीय विज्ञान संस्थान' (Indian Institute of Science Bangalore) की गवर्निंग काउंसिल के सदस्य थे. बाद में, वह टाटा आयरन एंड स्टील गवर्निंग बोर्ड के सदस्य बन गए. इसके अलावा एम. विश्वेश्वरैया ने अपने करियर में कई किताबें भी लिखी हैं - रिकंस्ट्रक्टिंग इंडिया, नेशन बिल्डिंग (Reconstructing India, Nation Building) मुख्य है. वर्ष 1962 में उनका निधन हो गया. लेकिन इंजीनियरों के दिमाग और कल्पना में आज भी राष्ट्र-निर्माण की उनकी विरासत और भावना जीवित है.