कोलकाता : पश्चिम बंगाल का कोलकाता शहर एक ऐसा शहर है जो पुराने और नए कल्चर का मिश्रण है. आपने पुरानी फिल्मों (Old periodic films) में अक्सर हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शें देखे होंगे. इस तरह के रिक्शें आज भी कोलकाता की संकरी गलियों में दिखाई देते हैं. हाथ से खींचे जाने वाले ये रिक्शा औपनिवेशिक अतीत (Colonial past) के प्रतीक हैं.
आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं रिक्शा चालक
कोलकाता, भारत का एकमात्र ऐसा शहर है जहां आज भी हाथ से खींचने वाले रिक्शे सड़कों पर चलते हैं. हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शा चालकों की आजीविका इसी पर निर्भर करती है. लेकिन अब ये लोग आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं.
कुछ हाथ रिक्शा चलाकों का कहना है कि पुराने समय और आज में बहुत फर्क है. आज के समय इन रिक्शों के लिए सवारी नहीं मिल पाती. दिन भर मेहनत करने के बावजूद कोई खास आमदनी भी नहीं हो पाती.
एक रिक्शा चालक ने कहा, मैं पिछले 20 वर्षों से रिक्शा खींच रहा हूं. मैंने कुछ और काम करने की सोची, लेकिन मैं नहीं कर सका. हम बड़ी मुश्किलों के साथ जी रहे हैं और सरकार की ओर से कोई मदद भी नहीं मिल रही है.
जापानी शब्द 'जिनरिकिशा' से 'रिक्शा' शब्द की उत्पत्ति
दरअसल, जापान में 1869 में हैंड रिक्शा को जनता के लिए पेश किया गया था. हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शा को जापानी भाषा में जिनरिकिशा (JinrikiSha) के नाम से जाना जाता था (रिक्शा की उत्पत्ति जापानी शब्द जिनरीकिशा (jin = मानव, riki = शक्ति या बल, sha = वाहन) से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ है 'मानव-चालित वाहन'
पांच साल बाद, 1974 में चीन में आम जनता के परिवहन साधन के रूप में हाथ से खींचे गए रिक्शे पेश किए गए. ये रिक्शा जापान, चीन, सिंगापुर, मलेशिया और इंडोनेशिया में आम हो गए.
ब्रिटिश सरकार की योजनाओं में शामिल था 'हाथ रिक्शा'
भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान, हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शा सबसे पहले पश्चिम बंगाल की भूमि पर पेश किए गए थे. यह आम लोगों के लिए एक सस्ती और आसान सवारी हुआ करती थी.
ब्रिटिश सरकार ने अपने अधिकारियों और आम जनता के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा को आसान और सस्ता बनाने के लिए कई परियोजनाओं पर काम किया. ब्रिटिश सरकार की योजनाओं में हाथ से खींचा जाने वाला रिक्शा शामिल था.
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बता दें, पश्चिम बंगाल दुनिया भर में सुंदरबन, रॉयल बंगाल टाइगर, टीपू सुल्तान मस्जिद, ना खुदा मस्जिद, ईडन गार्डन, हावड़ा ब्रिज, शहीद मीनार और हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शें समेत कई चीजों के लिए प्रसिद्ध है.
चंद रिक्शा चालकों तक ही पहुंची 'ममता की मदद'
19वीं सदी में शुरू हुआ हैंड रिक्शा का सिलसिला 21वीं सदी तक जारी है. समय बदल गया है, हालात बदल गए हैं लेकिन कोलकाता की सड़कों पर अभी भी हैंड रिक्शा दौड़ते देखे जा सकते हैं.
2011 में, ममता बनर्जी की सरकार ने हाथ रिक्शा को पूरी तरह से खत्म करने के बजाय पेशे में लाइसेंस प्राप्त लोगों को बिजली और साइकिल रिक्शा प्रदान करने का वादा किया था.
सरकार ने चंद लोगों को साइकिल और इलेक्ट्रिक रिक्शा देकर अपना वादा पूरा किया, लेकिन उसके बाद यह सारे वादे और योजनाएं महज वादे ही रह गए.