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अब बगैर फ्रिज के आठ दिनों तक ताजा रखिए फल-सब्जियां, झारखंड ने खोजी है नयी तकनीक

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Published : Nov 25, 2022, 11:10 AM IST

हमारे देश में अब फलों और सब्जियों को फ्रिज में रखे बगैर आठ दिनों तक ताजा रखने की तकनीक विकसित की जा चुकी है. देश का चर्चित रांची स्थित राष्ट्रीय कृषि द्वितीयक संस्थान ने यह तकनीक विकसित की है. Fruits and Vegetables Can be Fresh One Week Without Refrigerator

Fruits and Vegetables Can be Fresh One Week Without Refrigerator
ताजा रखिए फल-सब्जियां

रांची : हमारे देश में अब फलों और सब्जियों को फ्रिज में रखे बगैर आठ दिनों तक ताजा रखने की तकनीक विकसित की जा चुकी है. देश का चर्चित रांची स्थित राष्ट्रीय कृषि द्वितीयक संस्थान ने यह तकनीक विकसित की है. इस तकनीक से सब्जियों और फलों पर लाह आधारित परत चढ़ाई जाती है, जिससे यह लगभग एक सप्ताह तक सुरक्षित व ताजा बना रहता है. इस लाह आधारित परत की खास बात यह है कि यह परत एडिबल कही जा रही है. इसका मतलब यह है कि यह लेयर खाने योग्य है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी नहीं है.

संस्थान के वैज्ञानिकों ने बताया कि लाह बेस्ड फ्रूट कोटिंग का टमाटर, शिमला मिर्च, बैगन और परवल पर टेस्ट किया गया है. यह कोटिंग सभी तरह के परीक्षणों में सफल पाई गई है. इसका इस्तेमाल करने से फलों व सब्जियों की सेल्फ लाइफ बढ़ जाएगी और किसान अपनी फसलों की मार्केटिंग बेहतर ढंग से कर सकेंगे. इसके तकनीकि पहलुओं पर काम पूरा हो गया है. एक अनुमान के अनुसार खेतों से उपभोक्ताओं तक फल और सब्जी पहुंचने के बीच लगभग 40 फीसदी माल सड़ जाता है. इस तकनीकि से बर्बादी पर भी रोक लगेगी.

Fruits and Vegetables Can be Fresh One Week Without Refrigerator
ताजा रखिए फल-सब्जियां

बता दें कि झारखंड पूरे देश में लाह का सबसे बड़ा उत्पादक प्रांत है. लाह बायो डिग्रेबल, नॉन टॉक्सिक और इको फ्रेंडली है. इसका उपयोग टैबलेट, कैप्सूल और दवाइयों के ऊपर कोटिंग में किया जाता है. दवा कंपनियां कैप्सूल के अंदर इनर्ट मटेरियल के रूप में इनका इस्तेमाल करती हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लाह की बढ़ती मांग को देखते हुए राज्य के 12 जिलों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर हो रही है और लगभग चार लाख परिवार इस खेती से जुड़े हैं.

Fruits and Vegetables Can be Fresh One Week Without Refrigerator
ताजा रखिए फल-सब्जियां

इसे भी पढ़ें .. देशभर में कम हो रही है बेरोजगारी, ऐसे हैं NSO के आंकड़ों से मिले संकेत

लाह के उत्पादन और इसके उपयोग पर अनुसंधान में रांची के नामकुम स्थित राष्ट्रीय कृषि द्वितीयक संस्थान की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही है. वर्ष 1924 में स्थापित यह राष्ट्रीय संस्थान पहले इंडियन लैक रिसर्च इंस्टीट्यूट और उसके बाद हाल तक भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान के रूप में जाना जाता था. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने इसी साल सितंबर में इसका नाम राष्ट्रीय कृषि द्वितीयक संस्थान रखने की मंजूरी दी है. अब यह संस्थान लाह के अलावा कई तरह के कृषि उत्पादों की उपज बेहतर करने और उनके विविध उपयोग पर भी रिसर्च करेगा.

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रांची : हमारे देश में अब फलों और सब्जियों को फ्रिज में रखे बगैर आठ दिनों तक ताजा रखने की तकनीक विकसित की जा चुकी है. देश का चर्चित रांची स्थित राष्ट्रीय कृषि द्वितीयक संस्थान ने यह तकनीक विकसित की है. इस तकनीक से सब्जियों और फलों पर लाह आधारित परत चढ़ाई जाती है, जिससे यह लगभग एक सप्ताह तक सुरक्षित व ताजा बना रहता है. इस लाह आधारित परत की खास बात यह है कि यह परत एडिबल कही जा रही है. इसका मतलब यह है कि यह लेयर खाने योग्य है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी नहीं है.

संस्थान के वैज्ञानिकों ने बताया कि लाह बेस्ड फ्रूट कोटिंग का टमाटर, शिमला मिर्च, बैगन और परवल पर टेस्ट किया गया है. यह कोटिंग सभी तरह के परीक्षणों में सफल पाई गई है. इसका इस्तेमाल करने से फलों व सब्जियों की सेल्फ लाइफ बढ़ जाएगी और किसान अपनी फसलों की मार्केटिंग बेहतर ढंग से कर सकेंगे. इसके तकनीकि पहलुओं पर काम पूरा हो गया है. एक अनुमान के अनुसार खेतों से उपभोक्ताओं तक फल और सब्जी पहुंचने के बीच लगभग 40 फीसदी माल सड़ जाता है. इस तकनीकि से बर्बादी पर भी रोक लगेगी.

Fruits and Vegetables Can be Fresh One Week Without Refrigerator
ताजा रखिए फल-सब्जियां

बता दें कि झारखंड पूरे देश में लाह का सबसे बड़ा उत्पादक प्रांत है. लाह बायो डिग्रेबल, नॉन टॉक्सिक और इको फ्रेंडली है. इसका उपयोग टैबलेट, कैप्सूल और दवाइयों के ऊपर कोटिंग में किया जाता है. दवा कंपनियां कैप्सूल के अंदर इनर्ट मटेरियल के रूप में इनका इस्तेमाल करती हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लाह की बढ़ती मांग को देखते हुए राज्य के 12 जिलों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर हो रही है और लगभग चार लाख परिवार इस खेती से जुड़े हैं.

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ताजा रखिए फल-सब्जियां

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लाह के उत्पादन और इसके उपयोग पर अनुसंधान में रांची के नामकुम स्थित राष्ट्रीय कृषि द्वितीयक संस्थान की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही है. वर्ष 1924 में स्थापित यह राष्ट्रीय संस्थान पहले इंडियन लैक रिसर्च इंस्टीट्यूट और उसके बाद हाल तक भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान के रूप में जाना जाता था. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने इसी साल सितंबर में इसका नाम राष्ट्रीय कृषि द्वितीयक संस्थान रखने की मंजूरी दी है. अब यह संस्थान लाह के अलावा कई तरह के कृषि उत्पादों की उपज बेहतर करने और उनके विविध उपयोग पर भी रिसर्च करेगा.

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