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रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता जरूरी, अहम होगी निजी कंपनियों की भागीदारी - निजी कंपनियों की भागीदारी

भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि हमारी सेना की आवश्यकताओं के लिए अन्य देशों पर हमारी निर्भरता अस्थाई होनी चाहिए और आने वाले लंबे समय में हमें आवश्यक रक्षा उपकरणों को स्वयं बनाना चाहिए और आत्मनिर्भर होना चाहिए. रक्षा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में भारत की दूसरे देशों पर निर्भरता पिछले कई दशकों से बनी रही है, इसके लिए शासकों की अदूरदर्शिता को जिम्मेदार माना जा सकता है जिनमें 'अस्थाई' और 'आत्मनिर्भर' जैसे शब्दों को समझने के विवेक में कमी थी साथ ही वे इस बात को समझने में भी असफल रहे कि लगातार निर्यात करने से देश की सुरक्षा को भारी नुकसान पहुंच सकता है.

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रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता जरूरी
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Published : Aug 11, 2020, 8:44 PM IST

हैदराबाद : पिछले दो दशकों में, आठ समितियों और कार्य बलों ने स्थानीय स्तर पर रक्षा उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की दिशा में कई रिपोर्ट और सिफारिशें प्रस्तुत की हैं. लेकिन प्रभावी कार्यान्वयन योजना के अभाव के कारण मामला जस का तस रहा! केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा आत्मनिर्भर भारत (स्वावलंबन भारतवाणी) शीर्षक से जारी रणनीति पत्र में रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए भारत की दिशा में नीतिगत बयान दिए गए हैं.

रक्षा उत्पाद निर्यात विकास नीति फ्रेमवर्क जिसका लक्ष्य 75 लाख करोड़ रुपये का घरेलू कारोबार हासिल करना और 2025 तक 35 लाख करोड़ रुपये का निर्यात करना है. घरेलू रक्षा उत्पादों का वर्तमान कारोबार 80,000 करोड़ रुपये है और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और सरकारी हथियार कारखानों की हिस्सेदारी 63,000 करोड़ रुपये की है! हालांकि हम यह कहते आ रहे हैं कि रक्षा उत्पादों के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए 2001 से निजी कंपनियों को लाइसेंस दिया जा रहा है, लेकिन उनका कारोबार 17,000 करोड़ रुपये तक ही सीमित है.

रक्षा मंत्री ने घोषणा की है कि इस साल घरेलू रक्षा उद्योग में नई जान फूंकने के लिए 52,000 करोड़ रुपये का उपयोग घरेलू खरीद में किया जाएगा. 101 रक्षा उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगाया जाएगा और अगले छह वर्षों में घरेलू उद्योगों को चार लाख करोड़ रुपये का काम सौंपा जाएगा. आत्मानिर्भर बनने के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए इस तरह का प्रोत्साहन आवश्यक है.

भारत में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सशस्त्र सेना है, परंतु विडंबना यह है कि हथियारों और सैन्य उपकरणों का वह दूसरा सबसे बड़ा आयातक है. रक्षा के अतिरिक्त कलपुर्जों के लिए रूस पर दशकों से निर्भरता ने भारत को अक्सर समय पर गंभीर तनाव की स्थिति में डाला है. आज के दौर की नई सहस्राब्दी युद्ध में पैदल सेना का महत्व कम हो रहा है, और वायु, नौसेना, अंतरिक्ष और साइबर क्षेत्रों में वैज्ञानिक रक्षा अनुसंधान किसी भी देश के अस्तित्व के लिए अत्यधिक महत्व प्राप्त कर चुके हैं. यदि ऐसे में निजी क्षेत्र की अनदेखी की जाती है और आम तौर पर नौ सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और 41 आयुध कारखानों (ऑर्डिनेंस फैक्ट्री) पर भरोसा किया जाता है, तो रक्षा क्षेत्र की आत्मनिर्भरता को लेकर मृगतृष्णा की स्थिति बनी रहेगी.

भारत विभिन्न रक्षा उत्पादों की खरीद पर 1.3 लाख करोड़ रुपये खर्च करता है, जिसमें से 77,000 करोड़ रुपये को सार्वजनिक क्षेत्र में बदल दिया जाता है, जबकि निजी क्षेत्र, जिसमें साढ़े तीन हजार सूक्ष्म और लघु उद्योग हैं, को केवल 14,000 करोड़ रुपये मिलते हैं. केंद्र ने रक्षा के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ाकर 74 प्रतिशत कर दिया है, आज यदि वह आत्मनिर्भरता के लक्ष्य प्राप्त करना चाहते हैं तो उसे निजी क्षेत्र को सहायता प्रदान करनी होगी जो अभी भी प्रारंभिक अस्थिरताओं से बाहर नहीं है.

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड दुनिया के शीर्ष 100 रक्षा उद्योगों की सूची में 35वें स्थान पर है. केंद्र को यह सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक सावधानी बरतनी चाहिए कि भारतीय रक्षा क्षेत्र को समय-समय पर अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी प्राप्त कराई जा सके और स्थानीय स्तर पर अनुसंधान के माध्यम से अविनाशी हथियारों को डिजाइन करना जारी रखा जा सके. रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता केवल 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम को उदार बनाने और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश सहायता और घरेलू विनिर्माण उद्योगों के कौशल और शक्ति को बढ़ावा देने पर ध्यान रखते हुए हासिल की जा सकती है.

हैदराबाद : पिछले दो दशकों में, आठ समितियों और कार्य बलों ने स्थानीय स्तर पर रक्षा उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की दिशा में कई रिपोर्ट और सिफारिशें प्रस्तुत की हैं. लेकिन प्रभावी कार्यान्वयन योजना के अभाव के कारण मामला जस का तस रहा! केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा आत्मनिर्भर भारत (स्वावलंबन भारतवाणी) शीर्षक से जारी रणनीति पत्र में रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए भारत की दिशा में नीतिगत बयान दिए गए हैं.

रक्षा उत्पाद निर्यात विकास नीति फ्रेमवर्क जिसका लक्ष्य 75 लाख करोड़ रुपये का घरेलू कारोबार हासिल करना और 2025 तक 35 लाख करोड़ रुपये का निर्यात करना है. घरेलू रक्षा उत्पादों का वर्तमान कारोबार 80,000 करोड़ रुपये है और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और सरकारी हथियार कारखानों की हिस्सेदारी 63,000 करोड़ रुपये की है! हालांकि हम यह कहते आ रहे हैं कि रक्षा उत्पादों के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए 2001 से निजी कंपनियों को लाइसेंस दिया जा रहा है, लेकिन उनका कारोबार 17,000 करोड़ रुपये तक ही सीमित है.

रक्षा मंत्री ने घोषणा की है कि इस साल घरेलू रक्षा उद्योग में नई जान फूंकने के लिए 52,000 करोड़ रुपये का उपयोग घरेलू खरीद में किया जाएगा. 101 रक्षा उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगाया जाएगा और अगले छह वर्षों में घरेलू उद्योगों को चार लाख करोड़ रुपये का काम सौंपा जाएगा. आत्मानिर्भर बनने के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए इस तरह का प्रोत्साहन आवश्यक है.

भारत में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सशस्त्र सेना है, परंतु विडंबना यह है कि हथियारों और सैन्य उपकरणों का वह दूसरा सबसे बड़ा आयातक है. रक्षा के अतिरिक्त कलपुर्जों के लिए रूस पर दशकों से निर्भरता ने भारत को अक्सर समय पर गंभीर तनाव की स्थिति में डाला है. आज के दौर की नई सहस्राब्दी युद्ध में पैदल सेना का महत्व कम हो रहा है, और वायु, नौसेना, अंतरिक्ष और साइबर क्षेत्रों में वैज्ञानिक रक्षा अनुसंधान किसी भी देश के अस्तित्व के लिए अत्यधिक महत्व प्राप्त कर चुके हैं. यदि ऐसे में निजी क्षेत्र की अनदेखी की जाती है और आम तौर पर नौ सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और 41 आयुध कारखानों (ऑर्डिनेंस फैक्ट्री) पर भरोसा किया जाता है, तो रक्षा क्षेत्र की आत्मनिर्भरता को लेकर मृगतृष्णा की स्थिति बनी रहेगी.

भारत विभिन्न रक्षा उत्पादों की खरीद पर 1.3 लाख करोड़ रुपये खर्च करता है, जिसमें से 77,000 करोड़ रुपये को सार्वजनिक क्षेत्र में बदल दिया जाता है, जबकि निजी क्षेत्र, जिसमें साढ़े तीन हजार सूक्ष्म और लघु उद्योग हैं, को केवल 14,000 करोड़ रुपये मिलते हैं. केंद्र ने रक्षा के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ाकर 74 प्रतिशत कर दिया है, आज यदि वह आत्मनिर्भरता के लक्ष्य प्राप्त करना चाहते हैं तो उसे निजी क्षेत्र को सहायता प्रदान करनी होगी जो अभी भी प्रारंभिक अस्थिरताओं से बाहर नहीं है.

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड दुनिया के शीर्ष 100 रक्षा उद्योगों की सूची में 35वें स्थान पर है. केंद्र को यह सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक सावधानी बरतनी चाहिए कि भारतीय रक्षा क्षेत्र को समय-समय पर अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी प्राप्त कराई जा सके और स्थानीय स्तर पर अनुसंधान के माध्यम से अविनाशी हथियारों को डिजाइन करना जारी रखा जा सके. रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता केवल 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम को उदार बनाने और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश सहायता और घरेलू विनिर्माण उद्योगों के कौशल और शक्ति को बढ़ावा देने पर ध्यान रखते हुए हासिल की जा सकती है.

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